जूनागढ़ किला: तपते रेगिस्तान में 'बादल महल' की ठंडी हवाएं...

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साधना अग्रवाल 
 
मरुभूमि राजस्थान की तपती दोपहरी... बीकानेर का जूनागढ़ किला... एक भव्य किला, जो अपराजेय शक्ति के साथ स्वाभिमान के साथ खड़ा है। इसी किले में भरी दोपहरी में किले के भ्रमण के दौरान पसीने से तरबतर अचानक बादलों के दर्शन होते हैं। महल की ऊंचाई पर पहुंचते ही अचानक ठंडी हवा के झकोरे आपको तरोताजा कर देते हैं, एक बेहद सुखद एहसास।
 
यह है बीकानेर के जूनागढ़ किले का 'बादल महल'। जूनागढ़ किला आज भी गर्व से यह अपना इतिहास बयान करता है और कहता है कि मुझे कभी कोई शासक हरा नहीं पाया। कहते हैं कि इतिहास में सिर्फ एक बार किसी गैर शासक द्वारा इस भव्य किले पर कब्जा किए जाने के प्रयास का जिक्र होता है।
 
कहा जाता है कि मुगल शासक कामरान जूनागढ़ की गद्दी हथियाने और किले पर फतह करने में कामयाब हो गया था, लेकिन 24 घंटे के अंदर ही उसे सिंहासन छोड़ना पड़ा। इसके अलावा कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता कि जूनागढ़ को किसी शासक ने फतेह करने के मंसूबे बनाए हों और वह कामयाब हुआ हो।
 
बरसात को तरसते रेगिस्तानी राजस्थान, खासतौर पर उस पुराने दौर में जब बारिश राजस्थान के लिए त्योहार होती थी, उस दौर में राज्य के शाही किलो में बादल महल बनाकर बरसात का एहसास राजा-महाराजा किया करते थे। जयपुर, नागौर किलों सहित अनेक किलों में बने बादल महल इसका उदाहरण हैं, लेकिन बीकानेर का जूनागढ़ किला खासतौर पर बने बादल महल के लिए काफी चर्चित है। जूनागढ़ दुर्ग परिसर में खासी ऊंचाई पर बने इस भव्य महल को किले में सबसे ऊंचाई पर स्थित होने के कारण बादल महल कहा जाता है। 
 
महल में पहुंचकर वाकई लगता है, जैसे आप आसमान के किसी बादल पर आ गए हों। नीले रंग के बादलों से सजी दीवारें बरखा की फुहारों का अहसास दिलाती हैं। यहां बहने वाली ताजा हवा पर्यटकों की सारी थकान छू कर देती है।
 
इस शानदार महल की स्थापत्य कला अद्भुत है। महल की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से शानदार पेंटिंग की गई है। कई सदियां गुजर जाने के बाद भी इन रं तरसतेगों की ताजगी और खूबसूरती दिल से महसूस की जा सकती है। महल की पेंटिंग्स बारिश के मौसम में राधा और कृष्ण के प्रेम की अधीरता और पूर्णता को एक साथ बयान करने में सक्षम है। 
 
इस महल में राजा अपनी रानी के साथ खास समय बिताते थे। यहां के 5 शताब्दी से अधिक प्राचीन बीकानेर के जूनागढ़ किले को सर्वश्रेष्ठ दुर्ग मानते हुए अमेरिका की प्रतिष्ठित ट्रेवल एजेंसी 'ट्रिप एडवाइजर’ ने हाल ही में 'सर्टिफिकेट ऑफ एक्सीलेंस-2015’ सम्मान से सम्मानित किया है। पर्यटन क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार जूनागढ़ को सम्मान मिलने पर बीकानेर ही नहीं, राजस्थान व भारत का गौरव बढ़ा है।
 
महाराजा रायसिंह ट्रस्ट की ओर से संचालित जूनागढ़ किले को 'ट्रिप एडवाइजर’ ने अनेक मानदंडों के आधार पर यह सम्मान प्रदान किया है। इनमें पर्यटकों को मिलने वाली मेहमानबाजी, आधारभूत सुविधा, प्राचीनता, स्थापत्य कला आदि को ध्यान में रखते हुए देश के विभिन्न किलों के सर्वे के बाद इसे पुरस्कार से नवाजा है। 
 
किले को मिली इस उपलब्धि पर पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी, राजकुमारी सिद्धि सिंह, राजा श्री सिंह, जन प्रतिनिधियों, पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों तथा स्थानीय नागरिकों ने खुशी जाहिर करते हुए इसे बीकानेर के पर्यटन विकास में महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है।
 
जूनागढ़ के विकास में महाराजा रायसिंह ट्रस्ट के साथ स्थानीय जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पर्यटकों के लिए विशेष तौर पर ऑडियो गाइड हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन व फ्रेंच भाषा में जूनागढ़ के वैभव की जानकारी देता है। 
 
बीकानेर के 6ठे शासक राजा रायसिंह ने नया दुर्ग चिंतामणि (वर्तमान जूनागढ़) को ईस्वी सन् 1589-1593 के बीच बनवाया। पूर्व में बीकानेर रियासत के राजाओं का बीकानेर में ही प्रवास रहता था। बीकानेर रियासत के अब तक हुए 24 राजाओं में से ज्यादातर सभी राजाओं ने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जूनागढ़ किला बीकानेर का एक बड़ा आकर्षण है। 
 
इतिहास इस पूरे किले से बहुत गहरी जड़ों तक जुड़ा है इसलिए सैलानी इसकी ओर बहुत आकर्षित होते हैं। यह किला पूरी तरह से थार रेगिस्तान के लाल बलुआ पत्थरों से बना है। हालांकि इसके भीतर संगमरमर का काम किया गया है। इस किले में देखने लायक कई शानदार चीजें हैं। यहां राजा की समृद्ध विरासत के साथ उनकी कई हवेलियां और कई मंदिर भी हैं। 
 
यहां के कुछ महलों में 'बादल महल' सहित गंगा महल, फूल महल आदि शामिल हैं। इस किले में एक संग्रहालय भी है जिसमें ऐतिहासिक महत्व के कपड़े, चित्र और हथियार भी हैं। यह संग्रहालय सैलानियों के लिए राजस्थान के खास आकर्षणों में से एक है। 
 
यहां आपको संस्कृत और फारसी में लिखी गई कई पांडुलिपियां भी मिल जाएंगी। जूनागढ़ किले के अंदर बना संग्रहालय बीकानेर और राजस्थान में सैलानियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। इस किला संग्रहालय में कुछ बहुत ही दुर्लभ चित्र, गहने, हथियार, पहले विश्वयुद्ध के बाइप्लेन आदि हैं। 
 
इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग के पाये की नींव 30 जनवरी 1589 को गुरुवार के दिन डाली गई थी। इसकी आधारशिला 17 फरवरी 1589 को रखी गई। इसका निर्माण 17 जनवरी 1594 गुरुवार को पूरा हुआ। स्थापत्य, पुरातत्व व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस किले के निर्माण में तुर्की की शैली अपनाई गई जिसमें दीवारें अंदर की तरफ झुकी हुई होती हैं। दुर्ग में निर्मित महल में दिल्ली, आगरा व लाहौर स्थिति महलों की भी झलक मिलती है। 
 
दुर्ग चतुष्कोणीय आकार में है, जो 1078 गज की परिधि में निर्मित है तथा इसमें औसतन 40 फीट ऊंचाई तक के 37 बुर्ज हैं, जो चारों तरफ से दीवार से घिरे हुए हैं। इस दुर्ग के 2 प्रवेश द्वार हैं- करण प्रोल व चांद प्रोल। करण प्रोल पूर्व दिशा में बनी है जिसमें 4 द्वार हैं तथा चांद प्रोल पश्चिम दिशा में बनी है, जो एक मात्र द्वार ध्रुव प्रोल से संरक्षित है।
 
सभी प्रोलों का नामकरण बीकानेर के शाही परिवार के प्रमुख शासकों एवं राजकुमारों के नाम पर किया गया है। इनमें से कई प्रोल ऐसी हैं, जो दुर्ग को संरक्षित करती हैं। पुराने जमाने में कोई भी युद्घ तब तक जीता हुआ नहीं माना जाता था, जब तक कि वहां के दुर्ग पर विजय प्राप्त न कर ली जाती। शत्रुओं को गहरी खाई को पार करना पड़ता था, उसके बाद मजबूत दीवारों को पार करना होता था, तब कहीं जाकर दुर्ग में प्रवेश करने के लिए प्रोलों को अपने कब्जे में लेना होता था। प्रोलों के दरवाजे बहुत ही भारी व मजबूत लकड़ी के बने हुए हैं। इसमें ठोस लोहे की भालेनुमा कीलें लगी हुई हैं। 
 
दुर्ग की सूरजप्रोल मुख्य द्वार रही है। इसका निर्माण महाराजा गजसिंह के शासनकाल में किया गया था। प्रोल के निर्माण के लिए पत्थर जैसलमेर से लाया गया। सूरज प्रोल आकर्षक मेहराबदार बड़े कमरे के आकार में बनी है, जो दोनों तरफ खुलती है। इस प्रोल के पास भगवान गणेश का मंदिर होने के कारण इसको गणेश प्रोल के नाम से जाना जाता है। प्रोल से निकलते ही देवीद्वारा है जिसे देवी नवदुर्गा मंदिर भी कहा जाता है। 
 
देवीद्वारे के पिछवाड़े जनानी ड्योढ़ी एवं पीपलियों का चौक है। जनानी ड्योढ़ी से अतीत से आज तक धूमधाम से गणगौर व तीजमाता की सवारी निकलती है। इसके अलावा मर्दानी ड्योढ़ी, हुजूर की पेड़ी अपने आप में इतिहास व अतीत की अनेक घटनाओं का स्मरण दिलाती है। 
 
बीकानेरी दुलमेरा के लाल पत्थर से निर्मित तीन मंजिला दलेल निवास का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। महाराजा दलेल सिंह, महाराजा गंगासिंह के पितामह थे। दलेल निवास के सामने एक गहरा कुआं है जिसे 'रामसर’ के नाम से जाना जाता है। जूनागढ़ के विक्रम विलास की पेड़ी लाल पत्थर से बनी है, जो आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती है।
 
जूनागढ़ के 33 करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर भी आस्था व विश्वास का केंद्र बना है। इसमें महाराजा अनूप सिंह द्वारा दक्षिण से लाई गई 700 बहूमूल्य कांस्य प्रतिमाएं प्रतिस्थित हैं। 
 
मीना ड्योढ़ी, करण महल, कुंवरपदा महल, अनूप महल, फूलमहल, बादल महल, चंदर महल, राय निवास कचहरी, सरदार निवास (बादल महल), सुर मंदिर चौबारा, गज मंदिर, चतर निवास, डूंगर निवास, लाल निवास, गंगा निवास महल एवं गंगा निवास दरबार हॉल में मुगल व बीकानेर की स्थापत्य व चित्रकला शैली को दर्शाया गया है। (वीएनआई)
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