जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थल

सुरेश एस डुग्गर
जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थल पुकार रहे हैं टूरिस्टों को


 
जम्मू-कश्मीर उत्तर भारत का एक ऐसा राज्य है, जहां पर्यटन की संभावनाएं बहुत ही प्रबल हैं। हालांकि 26 सालों से चल रहे आतंकवाद के कारण सब कुछ छिन्न-भिन्न हो चुका है। लेकिन बावजूद इसके आज भी इसके पर्यटन स्थल दुनियाभर के लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। इसके तीन क्षेत्रों- जम्मू, लद्दाख और कश्मीर के हजारों पर्यटन स्थल आज भी अपनी शोभा को बरकरार रखे हुए हैं। 
 
इस राज्य के पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारियां प्रस्तुत हैं : -
 
जम्मू 
 
जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू अपनी विशिष्टताओं के कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। अनेक जातियों, संस्कृतियों व भाषाओं का संगम बना यह प्रदेश एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। तवी नदी के खूबसूरत किनारों पर स्थित जम्मू-कश्मीर राज्य का यह मुख्य प्रवेश द्वार है। साथ ही प्रतिवर्ष वैष्णोदेवी जाने के लिए यहां लाखों तीर्थयात्री आते हैं। यहां स्थित अनगिनत मंदिरों के कारण इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। 
 
इस शहर के निर्माणकर्ता ‘जम्बूलोचन’ के नाम पर इसका नाम पड़ा, जो जम्बू का बिगड़ा हुआ नाम है, लेकिन फिलहाल यह अभी विवाद का विषय है कि इसके निर्माणकर्ता जम्बूलोचन थे या नहीं। कला, संस्कृति तथा ऐतिहासिकता की दृष्टि से भी जम्मू का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शहर व्यापार का एक प्रमुख केंद्र भी है। जम्मू के पर्वत पर्वतारोहण करने वालों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं। जम्मू से आगे कश्मीर घाटी की सुरम्य घाटियों में आतंकवादी गतिविधियों के कारण वह फिलहाल पर्यटक सम्बद्ध तो नहीं है लेकिन देशी-विदेशी पर्यटकों का तांता अब वहां पुनः बढ़ता जा रहा है। यह भी याद रखने योग्य बात है कि जम्मू एक जिले, शहर तथा प्रांत का नाम भी है। 
 
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कब जाएं : 



 
वैसे पर्यटक वर्ष के किसी भी महीने में जम्मू का कार्यक्रम बना सकते हैं, पर बरसात में घूमने-फिरने में होने वाली दिक्कतों के कारण वहां न जाना ह उचित है। 
 
कैसे जाएं :
वायुमार्ग : अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई, श्रीनगर तथा लेह से जम्मू के लिए इंडियन एयरलाइंस तथा मोदी लुफ्त की सीधी उड़ानें हैं। हवाई अड्डा पुराने शहर से 7 किमी दूर स्थित है।
 
रेलमार्ग : देश के सभी प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। कोलकाता, भोपाल, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई, पठानकोट, चेन्नई तथा कन्याकुमारी के लिए जम्मू से सीधी रेल सेवाएं हैं। 
 
सड़क मार्ग : राष्ट्रीय राजमार्ग से जम्मू देश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। जम्मू से अन्य प्रमुख शहरों के लिए प्रत्येक मौसम के लिए अच्छी सड़कें उपलब्ध हैं। जम्मू के लिए सीधी बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। 
 
 

क्या देखें : 


 

रघुनाथ मंदिर :- विभिन्न मंदिरों के शहर जम्मू में रघुनाथ मंदिर एक भव्य व आकर्षक मंदिर है। महाराजा गुलाब सिंह ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया था और बाद में उनके पुत्र महाराजा रणवीरसिंह ने 1860 में इसे पूरा करवाया था। इस मंदिर की आंतरिक सज्जा में सोने की पत्तियों तथा चद्दरों का प्रयोग किया गया है। इस मंदिर में देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियां दर्शनीय हैं। 


 
रणवीरेश्वर मंदिर : जम्मू का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर ‘रणवीरेश्वर मंदिर’ है जिसकी ऊंचाई के आगे सारी इमारतें छोटी दिखाई पड़ती हैं। महाराजा रणवीर सिंह द्वारा 1883 में बनाया गया यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है तथा पत्थर की पट्टी पर बने प्रहत शिवलिंगों के कारण प्रसिद्ध है। 
 
पीर खो : शहर से 3.5 किमी की दूरी पर सर्कुलर रोड पर स्थित यह स्थान एक प्राकृतिक शिवलिंग के कारण प्रसिद्ध है जिसके इतिहास की जानकारी आज भी नहीं मिल पाई है लेकिन लोककथा यह है कि इस लिंगम के सामने स्थित गुफा देश के बाहर किसी अन्य स्थान पर निकलती है। 


 
अमर महल म्यूजियम : तवी नदी के किनारे पर पहाड़ी पर स्थित इस अनूठे महल का निर्माण फ्रेंच महल के नमूने पर किया गया है। अब म्यूजियम का रूप धारण कर चुके महल के भीतर शाही परिवार के चित्रों, पहाड़ी चित्रकला से संबंधित तथा पुस्तकालय को देखा जा सकता है, जो दर्शनीय है। 
 
डोगरा आर्ट गैलरी : पहले नए सचिवालय के पास स्थित डोगरा आर्ट गैलरी को अब पुराने सचिवालय में ले जाया गया है, जहां संग्रहालय के अतिरिक्त जम्मू तथा बसोहली की पहाड़ी कला तथा चित्रकला की चीजें संग्रहीत हैं। इनमें बसोहली शैली के आभूषण देखने लायक हैं। 
 
मुबारक मंडी : पुराने सचिवालय का असली नाम मुबारक मंडी है, जो पहले राजाओं के महल थे। हालांकि इसके कुछेक भाग गिर चुके हैं लेकिन बचे हुए अधिकांश भाग आज भी अपनी कारीगरी के लिए जाने जाते हैं, जो कला का एक बेजोड़ नमूना हैं। 
 
 

 


बाहू किला : शहर से 4 किमी दूर पहाड़ी पर स्थित बाहु किला जम्मू का सबसे पुराना किला है, जो तवी नदी के किनारे स्थित पहाड़ी पर है। राजा बाहुलोचन द्वारा यह किला 3,000 साल पहले बनाया गया था, जो आज भी सही दशा में है। किले के अंदर बने काली मंदिर में मंगलवार तथा रविवार को स्थानीय तीर्थ यात्रियों की भीड़ लगी रहती है। इसके नीचे बागे बाहु उद्यान पिकनिक के लिए उत्तम स्थान है, जहां से सारे शहर को देखा जा सकता है तथा यहां पर की जाने वाली रोशनी हमें एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती है। 


 
मानसर तथा सुरूइनसर झीलें : जम्मू से 65 किमी की दूरी पर स्थित मानसर झील पिकनिक के लिए एक आदर्श स्थल है। यहां प्रतिवर्ष अप्रैल के प्रथम सप्ताह में मानसर मेले का आयोजन भी होता है। झील में नौकायन की सुविधा है तथा उसके एक किनारे पुराने महल भी देखे जा सकते हैं, जो अब खंडहर में बदल चुके हैं। जम्मू से सीधी बस सेवा उपलब्ध है और रात को ठहरने के लिए पर्यटन विभाग का बंगला तथा हट्स उपलब्ध हैं। 
 
जम्मू से 42 किमी दूरी पर सुरिनसर झील है, जो मानसर जितनी बड़ी तो नहीं लेकिन खूबसूरत पर्यटन स्थल अवश्य है। हालांकि सुरिनसर जाने के लिए जम्मू से सीधी बस सेवा तो है ही मानसर झील की ओर से रास्ता भी जाता है, जहां से यह पास ही में पड़ती है। वैसे यह कथा भी प्रचलित है कि दोनों झीलों का भूमि के भीतर से संबंध है। रहने को पर्यटक बंगला उपलब्ध है। 


 
पटनीटाप : जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 108 किमी की दूरी पर स्थित यह विश्वप्रसिद्ध स्थल वर्षभर ठंडा रहता है, क्योंकि 2024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यह प्राकृतिक सौंदर्य से लदा हुआ है। अब तो सर्दियों में यहां पर स्कीइंग का आनंद भी उठाया जा सकता है और स्की उपकरण पर्यटन विभाग के पास उपलब्ध हैं। छुट्टियां मनाने वालों के लिए यह अति उत्तम स्थान है, जहां सरकारी के अतिरिक्त प्राइवेट आवास की भी सुविधा है। वर्ष के किसी भी मौसम में आप वहां जा सकते हैं। 
 
सनासर : पटनीटाप से 18 किमी की दूरी पर पहाड़ियों तथा चीड़ के पेड़ों से घिरा हुआ यह स्थान अपनी झील के कारण भी प्रसिद्ध है। अब तो वहां पर गोल्फ खेलने की सुविधा भी उपलब्ध है जबकि सनासर में पैराग्लाइडिंग भी की जा सकती है। पटनीटाप से नत्था टाप की ओर जाने पर, जो सनासर के रास्ते में आता है सबसे ऊंचाई पर जाकर आदमी हैरान रह जाता है जहां से कुद, पटनीटाप, सनासर, ऊधमपुर जिले को भी देखा जा सकता है। रहने के लिए पर्यटक बंगला तथा हट्स उपलब्ध हैं। 
 
 
 

 


सुद्धमहादेव : जम्मू से 120 किमी की दूरी पर स्थित 1225 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मनोहारी दृश्यों वाला स्थल प्रत्येक पर्यटक तथा तीर्थयात्री को आकर्षित करता है, क्योंकि भगवान शिव-पार्वती के जीवन से जुड़ी कई कथाओं का यह प्रमुख स्थल रहा है। रहने के लिए स्थान तथा सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है। 



 
मानतलाई : सुद्धमहादेव से 7 किमी आगे जाने पर मानतलाई का स्थान आता है, जो इससे भी अधिक रमणीक स्थल है। स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक गुरु तथा विवादास्पद व्यक्ति स्व. धीरेंद्र ब्रह्मचारी द्वारा बनाया गया होटल तथा अन्य चीजें देखने लायक हैं। 



 
रामनगर : जम्मू से 102 किमी की दूरी पर स्थित रामनगर भारत की सबसे पुरानी तहसील है। यहां कई किले आदि तथा तीर्थ स्थल देखने लायक हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण स्वास्थ्यवर्द्धक है। सीधी बस सेवा तथा रहने का स्थान उपलब्ध है। 
 


 

वैष्णोदेवी : जम्मू आकर वैष्णोदेवी जाने के लिए तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। जम्मू से वैष्णोदेवी की दूरी 42 किमी है तथा बाकी 14 किमी की दूरी पैदल चढ़ाई या खच्चर द्वारा तय करनी पड़ती है। 
 
क्या खरीदें : जम्मू से पर्यटक खाने की चीजें जैसे बादाम, अखरोट, चेरी, बासमती चावल, राजमा आदि खरीद सकते हैं। इसके अलावा सिल्क के कपड़े, बेंत का सामान तथा कालीन भी खरीदी जा सकती है। खरीददारी के लिए सरकारी एम्पोरियम, खादी ग्रामोद्योग भवन को ही प्राथमिकता दें।
 
 
आगे पढ़ें धरती के स्वर्ग कश्मीर से संबंधित विशेष जानकारी...  


 

कश्मीर
 

 
कश्मीर जिसे मुगल बादशाहों ने धरती का स्वर्ग भी कहा था। सालों के आतंकवाद के दौर के उपरांत अब पुनः एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरकर सामने
आया है। हालांकि इस आतंकवाद के दौर के दौरान पर्यटकों की सुख-सुविधाओं के साधन अपनी आभा खो चुके हैं लेकिन उन स्थलों की आभा अभी भी बरकरार है, जो देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं। 
 
ललितादित्य मुख्तापिद हिन्दू साम्राज्य का आखिरी सम्राट था जिसने 1339 तक कश्मीर पर शासन किया था जबकि वर्ष 1420 से 70 एडी तक इस पर सम्राट जैन-उल-द्दीन का राज्य रहा था, जो सिर्फ बड़शाह के नाम से ही नहीं जाना जाता था बल्कि वह संस्कृत भाषा का एक स्नातक भी था। जबकि बादशाह अकबर ने मुगलों के लिए कश्मीर पर कब्जा इसलिए कर लिया, क्योंकि उन्हें श्रीनगर बहुत ही खूबसूरत लगा था तभी तो उन्होंने श्रीनगर शहर में मुगल उद्यानों तथा अनेक मस्जिदों का निर्माण करवाया था। लेकिन मुगलों का शासन भी अधिक देर तक नहीं चला, क्योंकि सिखों के बादशाह महाराजा रणजीत सिंह ने मुगलों को कश्मीर से 1839 में उखाड़ फेंका तो 1846 में डोगरा शासकों ने अमृतसर संधि के तहत 75 लाख रुपयों में खरीद लिया और देश के विभाजन के समय 1947 में जम्मू-कश्मीर एक राज्य के रूप में भारत का एक हिस्सा बन गया। 
 
श्रीनगर


 
कश्मीर का सबसे बड़ा शहर श्रीनगर है, जो जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी है और अपनी विशिष्टताओं के कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। अनेक जातियों, संस्कृतियों व भाषाओं का संगम बना यह शहर एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। इस शहर की खासियत झरने तथा मुगल शासकों द्वारा बनवाए गए उद्यान हैं, जो 4थी और 5वीं सदी की खूबसूरती को भी प्रस्तुत करते हैं। 
 
कश्मीर के हृदय में बसा श्रीनगर कस्बा दरिया झेलम के दोनों किनारों पर फैला हुआ है। नगीन और डल जैसी विश्वप्रसिद्ध झीलें श्रीनगर कस्बे की जान कही जा सकती हैं जबकि अपने लुभावने मौसम के कारण श्रीनगर पर्यटकों को सारा वर्ष आकर्षित करता रहता है। 
 
‘राजतरंगिनी’ के लेखक कल्हण का कहना है कि ‘श्रीनगरी’ की स्थापना महाराजा अशोक ने तीसरी सदी बीसी में की थी जबकि वर्तमान के श्रीनगर शहर का निर्माण परावरशना द्वितीय तथा हून तसेंग ने 631 एडी में उस समय किया था, जब उन्होंने इस शहर का दौरा किया था। 
 
आज कश्मीर का सबसे खूबसूरत शहर श्रीनगर विश्वभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, जो 103.93 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला हुआ और समुद्र तल से 1730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 
 
 


 


कब जाएं : वैसे पर्यटक वर्ष के किसी भी महीने में श्रीनगर का कार्यक्रम बना सकते हैं, पर सर्दियों में थोड़ी सर्दी अधिक होती है। श्रीनगर का तापमान गर्मियों में 29.5 डि.से. अधिकतम व 10.6 डि.से. न्यूतम और सर्दियों में अधिकतम 7.3 डि.से. तथा न्यूतनम शून्य से 2 डिग्री से. कम होता है अतः उसी प्रकार कार्यक्रम बनाएं तथा गर्म कपड़ों का इंतजाम करके जाएं। 
 
कैसे जाएं : 

वायुमार्ग : अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई तथा लेह से श्रीनगर के लिए इंडियन एयरलाइंस, जेट एयरवेज तथा मोदी लुफ्त की सीधी उड़ाने हैं। हवाई अड्डा शहर से 14 किमी दूर स्थित है। 
 
रेलमार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू 300 किमी की दूरी पर है और देश के सभी प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। कोलकाता, भोपाल, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई, पठानकोट, चेन्नई, तथा कन्याकुमारी के लिए जम्मू से सीधी रेल सेवाएं हैं। 
 
सड़क मार्ग : राष्ट्रीय राजमार्ग से श्रीनगर देश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। श्रीनगर से अन्य प्रमुख शहरों के लिए प्रत्येक मौसम के लिए अच्छी सड़कें उपलब्ध हैं। श्रीनगर के लिए सीधी बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं। 
 
 


 

क्या देखें : 
 
पत्थर मस्जिद : शहर से 6 किमी दूर यह मस्जिद पूरी तरह से पत्थर से बनी हुई है और शहर के बीचोबीच होने के साथ ही शाह हमदान मस्जिद के सामने है। इसका निर्माण नूरजहां ने करवाया था और इसमें तब सिर्फ शिया मुसलमान इबादत किया करते थे। 
 
शाह हमदान मस्जिद : दरिया झेलम के किनारे शहर से 5 किमी दूर स्थित यह मस्जिद शहर की सबसे पुरानी मस्जिद है। इसकी दीवारों पर पेपरमाशी की कारीगरी प्रस्तुत की गई है। इस तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग या फिर शिकारे से झेलम से होते हुए जाया जा सकता है। 
 
जामिया मस्जिद : इसका निर्माण तो सुलतान सिकंदर ने 1400 एडी में करवाया था और बाद में उनके बेटे जेन-उल-अबीदीन ने इसके क्षेत्रफल को और बढ़ाया था। तीन बार आग इसको क्षति पहुंचा चुकी है और हर बार इसका निर्माण किया जा चुका है। वर्तमान में जो मस्जिद अपने पांवों पर खड़ी है उसका निर्माण डोगरा शासक महाराजा प्रतापसिंह ने करवाया था, जो 5 किमी की दूरी पर है। 
 
हरि पर्वत किला : श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में शरीका पर्वत पर, जो हिन्दुओं के लिए पवित्र माना जाता है, स्थित इस किले का निर्माण अत्ता मुहम्मद खान ने 18वीं सदी में करवाया था। अत्ता मुहम्मद खान एक अफगान शासक था। इस किले की चारदीवारी का निर्माण हिन्दुस्तान के महाराजा अकबर ने 1592-98 एडी में करवाया था। इस किले के चारों ओर बादाम के बाग हैं। बसंत ऋतु में जब पेड़ों पर अंकुर फूटने लगते हैं तो ये बाग अपनी छटा से सभी का मन मोह लेते हैं। इस किले में जाने के लिए राज्य पुरातत्व विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक है जिसका कार्यालय लाल मंडी चौक में स्थित है। 
 
नगीन झील : इस झील को अंगुली में हीरे की तरह कहा जाता है, जो शहर से 8 किमी की दूरी पर है। हालांकि यह डल झील का ही एक हिस्सा है लेकिन अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। इस तक पहुंचने के लिए सबसे छोटा रास्ता हजरत बल की ओर से है। इसके नीले पानी तथा चारों ओर अंगूठी की तरह दिखने वाले पेड़ों के झुंड के कारण इसका नाम नगीन पड़ा है। इसमें वॉटर स्कीइंग तथा तैराकी की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। 
 

 
हजरत बल दरगाह : यह दरगाह डल झील के पश्चिमी किनारे पर निशात बाग के बिलकुल सामने शहर से 9 किमी की दूरी पर है। एक ओर झील तथा दूसरी ओर पर्वत श्रृंखला होने के कारण यह बहुत ही खूबसूरत दृश्य पेश करती है। इसकी महत्ता कश्मीर के इतिहास में इसलिए है, क्योंकि हजरत मुहम्मद साहब की निशानी के रूप में उनका एक पवित्र बाल इसमें रखा गया है। इसका प्रदर्शन विशेष अवसरों पर किया जाता है। 
 
 

 


परी महल : शहर से 11 किमी की दूरी पर स्थित यह महल कभी बौद्ध मठ था। मुगल बादशाह शाहजहां के बेटे दाराशिकोह ने इसे ज्योतिष के एक स्कूल के रूप में बदल दिया था। 
 
शंकराचार्य मंदिर : यह मंदिर शहर से एक हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है उसे तख्त-ए-सुलेमान के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा अशोक के बेटे जलुका ने 200 बीसी में करवाया था जबकि मंदिर के भीतर जो वर्तमान ढांचा है उसका निर्माण किसी अज्ञात हिन्दू श्रद्धालु ने जहांगीर के शासनकाल के दौरान करवाया था। इस मंदिर से पूरी पीरपंजाल पर्वत श्रृंखला और शहर का प्रत्येक भाग देखा जा सकता है। 
 
डल झील : शहर के बीच में ही स्थित विश्वप्रसिद्ध डल झील शहर के पूर्व में स्थित है और श्रीधरा पर्वत के चरणों में है। वर्तमान में डल झील का क्षेत्रफल 12 वर्ग किमी रह गया है जबकि कभी यह 28 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में होती थी। इसके बीच में अनेक द्वीप भी स्थित हैं, जो अपने आप में खूबसूरती के केंद्र हैं। 
 
इसके अतिरिक्त शहर में कई उद्यान भी हैं, जो मुगल उद्यानों के रूप में जाने जाते हैं और वे सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुले रहते हैं। 
 
श्रीनगर शहर के अतिरिक्त कश्मीर में अनेक ऐसे स्थान हैं जिनका चक्कर लगाए बगैर कश्मीर की यात्रा पूरी नहीं हो सकती। उनमें से कुछ निम्न हैं-
 
 

 


मट्टन : पहलगाम मार्ग पर स्थित यह हिन्दुओं का पवित्र स्थल माना जाता है जिसमें एक शिव मंदिर है और खूबसूरत झरना भी। श्रीनगर से यह 61 किमी की दूरी पर है। 


 
मार्तण्ड : मट्टन से 3 किमी आगे चलकर एक पठार पर मार्तण्ड में कश्मीर के इतिहास के कुछ खंडहर हैं, जो सूर्य मंदिर के नाम से भी जाने जाते हैं। इसका निर्माण 7वीं व 8वीं सदी में ललितादित्य मुख्तापिद ने करवाया था, जो कश्मीर का एक योद्धा था। 
 
अच्छाबल : अनंतनाग से इस तक पहुंचने का रास्ता है, जो श्रीनगर से 58 किमी दूर तथा 1677 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान कभी नूरजहां के पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता था। जहां मुगल उद्यान भी हैं, जो अपनी खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं। 
 
अवंतिपुर : 29 किमी की दूरी पर अंवतिपुर में अवंतिवर्मा के शासनकाल के खंडहर हैं। यह भी पुराने और 9वीं सदी के मंदिरों के अवशेष हैं। 
 
कोकरनाग : करीब 2020 मीटर की ऊंचाई पर और श्रीनगर शहर से 70 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान अपने लाभ पहुंचाने वाले झरनों के लिए जाना जाता है। 
 
वेरीनाग : कश्मीर घाटी जिस दरिया झेलम के लिए जानी जाती है वेरीनाग उसी झेलम का स्रोत स्थल है। यह 80 किमी दूर और 1876 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 
 
चरारे शरीफ : कश्मीर के प्रसिद्ध सूफी संत शेख नूर-उ-द्दीन, जो नंद ऋषि के नाम से भी जाने जाते हैं, की यह दरगाह यूसमर्ग के रास्ते में है, जो 30 किमी की दूरी पर है। 
 
अहरबल : यह क्षेत्र अपने उस झरने के लिए प्रसिद्ध है, जो 24.4 मीटर की ऊंचाई से गिरता है। यह 2400 मीटर की ऊंचाई तथा 51 किमी की दूरी पर स्थित है। 


 
वुल्लर झील : यह एशिया की स्वच्छ और ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है, जो 125 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैली हुई है। यह करीब 60 किमी की दूरी पर है। 
 
 

 

गुलमर्ग : विश्व के प्रसिद्ध हिल स्टेशनों में यह एक माना जाता है। अगर सोनामार्ग को सोने की घाटी कहा जाता है तो इसे फूलों की घाटी कहा जा सकता है और यहीं पर देश के सर्दियों की खेलें होती हैं, क्योंकि यह अपनी बर्फ के लिए भी प्रसिद्ध है। हालांकि सारा साल आप यहां जा सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च का मौसम सबसे बढ़िया रहता है। 
 

 

पहलगाम : श्रीनगर से 96 किमी की दूरी पर स्थित पहलगाम एक बहुत ही रमणीय पर्यटन स्थल है, जो दरिया लिद्दर के किनारे पर स्थित है तथा अमरनाथ की वार्षिक यात्रा का बेस कैम्प भी है। पहलगाम जाने के लिए अप्रैल से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक का मौसम सबसे बढ़िया होता है। 
 
सोनामार्ग : यहां भी अक्टूबर से मार्च तक आने का मौसम बहुत बढ़िया है। यह श्रीनगर से लेह की ओर जाने वाले मार्ग में आता है तथा इस स्थान के बारे में प्रसिद्ध है कि इसका पानी अपने आप में सोने को समेटे हुए है और सभी को सोना बना देता है। 
 
आगे पढ़ें तीनों रंगों की धरती लद्दाख के बारे में जानकारी...  

 

लद्दाख


 
तीनों रंगों की धरती लद्दाख अपने आप में अनेक रहस्यों को समेटे हुए है। आकाश से इस पर अगर एक नजर दौड़ाई जाए तो मिट्टी रंग की जमीन में सफेद चादर बर्फ की देख आनंदित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। जबकि घाटी में सफेद बर्फ से ढंके इन पहाड़ों की परछाइयां भी भयानक और खूबसूरत काली जमीन को प्रस्तुत करती हैं। और यूं आदमी धरती की ओर लौटता है तो उसे यह धरती और भी खूबसूरत नजर आने लगती है, जहां फूलों की घाटियों के साथ-साथ लामाओं की कतारें देख लगता है जैसे आदमी किसी परीलोक में आ गया हो। 
 
लद्दाख आरंभ से ही इतिहास के पृष्ठों में रहस्यों से भरी भूमि के रूप में जाना जाता रहा है। कहा जाता है कि एक चीनी यात्री फाह्यान द्वारा 399 एडी में इस प्रदेश की यात्रा करने से पहले तक यह धरती रहस्यों की धरती थी और इसे दर्रों की भूमि के रूप में भी जाना जाता है तभी इसका नाम ‘ला’ और ‘द्दागस’ के मिश्रण से लद्दाख पड़ा है, जो समुद्र तल से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित और करीब 97,000 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला होने के कारण राज्य का सबसे बड़ा प्रदेश है। 
 
जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा प्रदेश होने के साथ-साथ लद्दाख विशिष्टताओं के कारण देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। अनेक जातियों, संस्कृतियों व भाषाओं का संगम बना यह प्रदेश एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है। यह एक ओर पाकिस्तान तो दूसरी ओर चीन से घिरा हुआ है। लद्दाख के पर्वत पर्वतारोहण करने वालों के मध्य काफी लोकप्रिय हैं। 
 
 

 

कब जाएं : हमेशा बर्फ से ढंके रहने के कारण लद्दाख के अधिकतर भाग कई-कई महीने समस्त विश्व से कटे रहते हैं लेकिन फिर भी मई से लेकर नवंबर तक का मौसम इस क्षेत्र में जाने का सबसे अच्छा समय है। 
 
कैसे जाएं : वायुमार्ग : जम्मू, चंडीगढ़, दिल्ली, श्रीनगर से लेह के लिए इंडियन एयरलाइंस की सीधी उड़ानें हैं। 
 
लेह शहर में आपको टैक्सी, जीपें तथा जोंगा को किराए पर लेना पड़ता है। ये स्थानीय ट्रांसपोर्ट तथा बाहरी क्षेत्रों में जाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। 
 
रेलमार्ग : सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू है, जो 690 किमी दूर है। जम्मू रेलवे स्टेशन देश के प्रत्येक भाग से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। 
 
सड़क मार्ग : लेह तक पहुंचने के लिए जम्मू-श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग है जिसमें सबसे ऊंचा दर्रा 13,479 फुट की ऊंचाई पर फोतुला है। लेह से श्रीनगर 434 किमी, कारगिल 230 किमी तथा जम्मू 690 किमी दूर है। 
 
क्या देखें : लेह अपने बौद्ध मंदिरों तथा मठों के लिए प्रसिद्ध है। जो पूरे लेह में स्थान-स्थान पर बहुतायत में दिखते हैं। असल में ये बौद्ध मंदिर पुराने धार्मिक दस्तावेजों तथा चित्रों को सुरक्षित रखने के स्थान हैं, जो आज भी अपनी ओर सबको आकर्षित करते हैं। 
 
लेह महल : इस महल का निर्माण सिगें नामग्यान ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। यह महल शहर के बीचोबीच खड़ा हर आने-जाने वाले को अपनी ओर आकर्षित करता तो है ही, साथ ही में अपनी कला और भगवान बुद्ध के जीवन को जीवंत रूप से चित्रित करती पेंटिंग्स इसकी खासियत है। 
 
नामग्याल तेस्मो : लेह शहर जो एक घाटी में स्थित है इसके कारण और खूबसूरत नजर आता है, जो कस्बे तथा लेह महल पर अपना प्रभाव छोड़ता है। यह पवित्र राजा का प्रभाव भी दिखाता है। इस मठ में भगवान बुद्ध की एक मूर्ति, दीवार की पेंटिंग्स, पुराने दस्तावेज तथा अन्य ऐतिहासिक और धार्मिक वस्तुएं रखी गई हैं। 
 
लेह मस्जिद : इसका निर्माण 17वीं सदी में देलदन नामग्याल ने किया था, जो उनकी मुस्लिम मां के प्रति एक श्रद्धांजलि थी। तुर्क और ईरानी कलाकृति को अपने आप में समेटने वाली यह मस्जिद आज भी मुख्य बाजार में यथावत अपने स्थान पर है। 
 
स्टाक पैलेस म्यूजियम : लेह कस्बे से 17 किमी दूर स्टाक में स्थित इस संग्रहालय में कीमती पत्थर, थंका (लद्दाखी चित्र), पुराने सिक्के, शाही मुकुट तथा अन्य शाही वस्तुएं रखी गई हैं। यह संग्रहालय सुबह 7 से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। 
 
गोम्पा तेस्मो : लेह महल के पास ही स्थित यह गोम्पा भगवान बुद्ध की डबल स्टोरी मूर्ति के लिए जाना जाता है जिसमें भगवान बुद्ध को बैठी हुई मुद्रा में दिखाया गया है। यह भी शाही मठ है। 
 
इसके अतिरिक्त लेह के आसपास आलचरी गोम्पा, चोगमलसार, हेमिस गोम्पा, लामायारू, लीकिर गोम्पा, फियांग गोम्पा, शंकर गोम्पा, शे मठ तथा महल, स्पीतुक मठ, स्तकना बौद्ध मंदिर, थिकसे मठ तथा हेमिस नेशनल पार्क भी देखने योग्य हैं जिनको देखने के लिए ही लोग इस कस्बे में आते हैं, जो लेह कस्बे से 2 से 60 किमी की दूरी तक हैं। 
 
 

उत्सव : 


 
हेमिस उत्सव : यह जून में मनाया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष गुरु पद्यसंभवा, जिनके प्रति लोगों का मानना है कि उन्होंने स्थानीय लोगों को बचाने के लिए दुष्टों से युद्ध किया था, की याद में मनाया जाता है। इस उत्सव की सबसे खास बात मुखौटा नृत्य है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से कई लाख लोग आते हैं।
 
 


 
लोसर : यह प्रतिवर्ष बौद्ध वर्ष के 11वें महीने में मनाया जाता है। यह 15वीं सदी से मनाया जाता है। इसको मनाने के पीछे यही सोच होती है कि युद्ध से पूर्व इसे इसलिए मनाया जाता था, क्योंकि न जाने कोई युद्ध में जीवित बचेगा भी या नहीं। 



 

लद्दाख उत्सव : यह प्रत्येक वर्ष अगस्त में मनाया जाता है और इसका आयोजन पर्यटन विभाग की ओर से किया जाता है। इसके दौरान विभिन्न बौद्ध मठों में होने वाले धार्मिक उत्सवों का आनंद पर्यटक उठाते हैं। 
 
कारगिल : लद्दाख क्षेत्र का सबसे बड़ा और दूसरा कस्बा कारगिल है, जो श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच आता है, जहां पर द्रास, सुरू घाटी, रंगदुम, मुलबेक, जंस्कार, करशा, बुरदान, फुगताल, जोंगखुल आदि स्थान देखने योग्य हैं, जो अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। 
 
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