emergency in india in hindi: भारत के इतिहास में 25 जून 1975 का दिन एक काली तारीख के तौर पर दर्ज है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में "आंतरिक अशांति" का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा कर दी थी। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अभूतपूर्व और संकटपूर्ण दौर था, जिसने देश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को झकझोर कर रख दिया था। आइए, 10 महत्वपूर्ण बिन्दुओं में आपातकाल की पूरी कहानी को समझते हैं:
1. पृष्ठभूमि: बढ़ता राजनीतिक तनाव आपातकाल की नींव 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश मुक्ति के बाद मजबूत होती आर्थिक चुनौतियों और बढ़ती राजनीतिक अशांति में निहित थी। गुजरात में छात्र आंदोलन और बिहार में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में "संपूर्ण क्रांति" आंदोलन ने सरकार के खिलाफ जन असंतोष को बढ़ावा दिया।
2. इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला: 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के रायबरेली से लोकसभा चुनाव को अनुचित साधनों के प्रयोग के आधार पर अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले ने इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री पद पर बने रहने पर सवालिया निशान लगा दिया, जिससे राजनीतिक संकट गहरा गया।
3. आपातकाल की घोषणा: अदालत के फैसले और जेपी के लगातार विरोध प्रदर्शनों के बीच, इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की रात को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत "आंतरिक अशांति" के आधार पर आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर करवा लिए। सुबह होते ही देश में आपातकाल लागू हो चुका था।
4. मौलिक अधिकारों का निलंबन: आपातकाल की घोषणा के साथ ही नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण ढंग से एकत्र होने का अधिकार छीन लिया गया। यह भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों पर एक सीधा हमला था।
5. प्रेस सेंसरशिप और मीडिया पर पाबंदी: आपातकाल के दौरान प्रेस पर कड़ी सेंसरशिप लागू की गई। अखबारों को कुछ भी छापने से पहले सरकारी अनुमति लेनी पड़ती थी। कई अखबारों ने विरोध स्वरूप संपादकीय पृष्ठ खाली छोड़ दिए। यह स्वतंत्र मीडिया के लिए एक काला अध्याय था।
6. विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी: आपातकाल लगते ही जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे प्रमुख विपक्षी नेताओं को रातों-रात गिरफ्तार कर लिया गया। हजारों की संख्या में राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बिना किसी मुकदमे के जेलों में डाल दिया गया, जिससे विरोध की आवाज को दबा दिया गया। इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डाला गया था कि जेलों में जगह ही नहीं बची।
7. जबरन नसबंदी कार्यक्रम: आपातकाल के दौरान संजय गांधी, इंदिरा गांधी के छोटे बेटे, एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनकर उभरे। उनके नेतृत्व में चलाए गए जबरन नसबंदी कार्यक्रम ने बड़े पैमाने पर जनता में आक्रोश पैदा किया। इस कार्यक्रम ने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया और इसे आपातकाल के सबसे अमानवीय पहलुओं में से एक माना जाता है।
8. शाह आयोग का गठन: आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल के दौरान हुए अत्याचारों और ज्यादतियों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए, जिन्होंने आपातकाल की क्रूरता को उजागर किया।
9. चुनाव और जनता की प्रतिक्रिया: 1977 में इंदिरा गांधी ने अचानक चुनाव कराने का फैसला किया। उन्हें लगा कि जनता उनके साथ खड़ी है, लेकिन आपातकाल के दौरान हुए दमन और ज्यादतियों से त्रस्त जनता ने उन्हें करारा जवाब दिया। कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई।
10. भारतीय लोकतंत्र की सीख: आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सबक था। इसने हमें सिखाया कि मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है और कैसे सत्ता का केंद्रीकरण खतरनाक हो सकता है।