भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास में सिंधु नदी, सिंधु देश और सिंधि भाषा का बहुत ही महत्व है। भारत का बंटवारा हुआ तो यह सभी पाकिस्तान के हिस्से में चले गए और फिर इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास, भाषा और संस्कृति को मिटाने का कूचक्र चला। परंतु अब पाकिस्तान में भी इस संबंध में सोच जाने लगा है कि हमें अपने मूल को भूलना नहीं चाहिए और बच्चों को सच्चे इतिहास से अवगत कराना चाहिए। तो आओ जानते हैं इन तीनों का परिचय।
सिन्धु नदी : सिन्धु और सरस्वती नदी को भारतीय सभ्यता में सबसे प्राचीन नदी माना जाता है। गंगा से पहले भारतीय संस्कृति में सिन्धु की ही महिमा थी। सिन्धु का अर्थ जलराशि होता है। सिंधु के इतिहास के बगैर भारतीय इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती। 3,600 किलोमीटर लंबी और कई किलोमीटर चौड़ी इस नदी का उल्लेख वेदों में अनेक स्थानों पर है। इस नदी के किनारे ही वैदिक धर्म और संस्कृति का उद्गम और विस्तार हुआ है। वाल्मीकि रामायण में सिन्धु को महानदी की संज्ञा दी गई है। जैन ग्रंथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिन्धु नदी का वर्णन मिलता है। सिन्धु के तट पर ही भारतीयों (हिन्दू, मुसलमानों आदि) के पूर्वजों ने प्राचीन सभ्यता और धर्म की नींव रखी थी। सिन्धु घाटी में कई प्राचीन नगरों को खोद निकाला गया है। इसमें मोहनजोदड़ो और हड़प्पा प्रमुख हैं। सिन्धु घाटी की सभ्यता 3000 हजार ईसा पूर्व थी।
नए शोध परिणामों के मुताबिक सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत के गेजी काउंटी में कैलाश के उत्तर-पूर्व से होता है। नए शोध के मुताबिक, सिन्धु नदी 3,600 किलोमीटर लंबी है, जबकि पहले इसकी लंबाई 2,900 से 3,200 किलोमीटर मानी जाती थी। इसका क्षेत्रफल 10 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है। सिन्धु नदी भारत से होकर गुजरती है लेकिन इसका मुख्य इस्तेमाल भारत-पाक जल संधि के तहत पाकिस्तान करता है।
पहले माना जाता था कि यह तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक स्थान से सिन्धु नदी निकलती है। यह नदी हिमालय की दुर्गम कंदराओं से गुजरती हुई कश्मीर और गिलगिट से होती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है। सिन्धु भारत से बहती हुई पाकिस्तान में 120 किमी लंबी सीमा तय करती हुई सुलेमान के निकट पाक-सीमा में प्रवेश करती है। पाकिस्तान के मैदानी इलाकों में बहती हुई यह नदी कराची के दक्षिण में अरब सागर में गिरती है। इस नदी ने पूर्व में अपना रास्ता कई बार बदला है। 1245 ई. तक यह मुल्तान के पश्चिमी इलाके में बहती थी। 200 वर्ष पूर्व यह नदी गुजरात के पास कच्छ में विचरण करते हुए अरब सागर में गिरती थी। अनुसंधान कहते हैं कि 1819 के भूकंप के कारण भुज के पास प्राकृतिक बांध बन गए और सिन्धु नदी का पानी का आना वहां रुक गया जिससे कच्छ का रण धीरे-धीरे सूख गया।
सिन्धु की सहायक नदियां : सिन्धु की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों- कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का उल्लेख भी ऋग्वेद में है। इस नदी की सहायक नदियां- वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा और शुतुद्री है। इसमें शुतुद्री सबसे बड़ी उपनदी है। शुतुद्री नदी पर ही एशिया का सबसे बड़ा भागड़ा-नांगल बांध बना है। झेलम, चिनाब, रावी, व्यास एवं सतलुज सिन्ध नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं। इनके अतिरिक्त गिलगिट, काबुल, स्वात, कुर्रम, टोची, गोमल, संगर आदि अन्य सहायक नदियां हैं।
सिन्धु के तीर्थ : मु्ल्तान में सिन्धु-चिनाब के किनारे पर श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की याद में एक सूर्य मंदिर बना है। इसका वर्णन महाभारत में भी है। इस मंदिर का स्वरूप कोणार्क के सूर्य मंदिर से मिलता-जुलता है, लेकिन अब सब कुछ नष्ट कर दिया गया है। यही नहीं, सिन्धु किनारे के सारे हिन्दू तीर्थ मुस्लिम उत्थान काल में तोड़ दिए गए। सिन्धु नदी के मुहाने पर (हिंगोल नदी के तट पर) पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगलाज नामक स्थान पर, कराची से 144 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। माता हिंगलाज (या हिंगलाज) का मंदिर, जो 52 शक्तिपीठों में से एक है।
सिंधु देश : महाभारत में राजा जयद्रथ का उल्लेख मिलता है जो धृतराष्ट्र की पुत्री दुःश्शाला का पति था। यह राजा जयद्रथ सिंधु नरेश था। इसका वध अर्जुन ने बहुत ही कठिन परिस्थितियों में किया था। वर्तमान में सिंधु देश पाकिस्तान के सिंध प्रांत को कहते हैं। कराची के आसपास के सभी क्षेत्र सिंधु देश के अंतर्गत आते हैं। सिंधु देश का तात्पर्य प्राचीन सिन्धु सभ्यता से है। यह स्थान न केवल अपनी कला और साहित्य के लिए विख्यात था, बल्कि वाणिज्य और व्यापार में भी यह अग्रणी था। वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रांत को प्राचीनकाल में सिंधु देश कहा जाता था। रघुवंश में सिंध नामक देश का रामचंद्रजी द्वारा भरत को दिए जाने का उल्लेख है। युनान के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आक्रमण के संबंध में सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा सिंधु देश के दो बड़े नगर थे।
सिंधी भाषा : भारत में ऐसी कई भाषाएं हैं जो हिन्दी से भी पुरानी है। यदि हम प्राचीन सिंधु देश या सिंधु घाटी की लिपि या भाषा की बात करेंगे तो यह तो आज भी रहस्य बरकरार है। सिंधु घाटी की लिपि आज तक नहीं पढ़ी जा सकी, जो किसी युग में निश्चय ही जीवंत भाषा रही होगी। नए शोधानुसार हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले बर्तन समेत अन्य वस्तुओं पर सिंधु घाटी सभ्यता की अंकित चित्रलिपियों को पढ़ने की कोशिशें लगातार जारी हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि सिन्धु घाटी सभ्यता की भाषा द्रविड़ पूर्व (प्रोटो द्रविड़ीयन) भाषा थी। भाषा को लिपियों में लिखने का प्रचलन भारत में ही शुरू हुआ। प्राचीनकाल में ब्राह्मी और देवनागरी लिपि का प्रचलन था।
सिंधी भाषा भारतीय-आर्य भाषाओं के पश्चिमोत्तर समूह की भाषा है। इसकी उत्पत्ति वेदों के लेखन या सम्भवत: उससे भी पहले सिन्ध क्षेत्र में बोली जाने वाली भारतीय-आर्य बोली या प्राकृत भाषा से हुई है। प्राकृत परिवार की अन्य भाषाओं की तरह सिंधी भी विकास के प्राचीन भारतीय-आर्य (संस्कृत) व मध्य भारतीय-आर्य (पालि, द्वितीयक प्राकृत तथा अपभ्रंश) के दौर से गुजरक एक परिपक्व भाषा बनी। परंतु लगातार ईरान और अरब के आक्रमणों के चलते इस भाषा की लिपि भी बदली और इसमें अरबी एवं फारसी शब्दों की संख्या भी बढ़ी जो कि चिंता का विषय है। अब सिंधी भाषा मुख्यत: दो लिपियों में लिखी जाती है, अरबी-सिंधी लिपि तथा देवनागरी-सिंधी लिपि। परंतु इसकी मूली लिपि 'सिंधी' ही है, जिसकी उत्पत्ति आद्य-नागरी, ब्राह्मी और सिंधु घाटी लिपियों से हुई है। संस्कृत और प्राकृत सिन्धी ज़बान की बुनियाद रही हैं।
परंतु जब से भारत का बंटवारा हुआ है सिंध प्रांत ही नहीं पाकिस्तान के हर प्रांत पर ऊर्दू भाषा और अरबी लिपि को थोपा गया जिसके चलते वहां की मूल भाषा अब लुप्त होने की स्थिति में ही। पाकिस्तान की चाहें सिंधी भाषा हो, पंजाबी हो या पख्तून। सभी भाषाएं अब पहले जैसी नहीं रही, उनमें फारसी और अरबी के शब्दों की भारमार हो चली है। बंटवारे ने जब इंसानी बस्तियों को अपनी जड़ों से बेदखल किया, तो इसमें नदी, नाले, इमारतें और दरख़्त तो वहीं रह गए, मगर ज़बान इंसान के साथ साथ चली आई तभी आज भारत में सिंधि और पंजाबी बच गई।