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हैदराबाद का इस तरह हुआ था भारतीय संघ में विलय

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अनिरुद्ध जोशी

15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष हिन्दुस्तान तथा पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटकर स्वतंत्र हो गया। भारत की आजादी के साथ जुड़ी देश-विभाजन की कथा बड़ी व्यथा-भरी है। कुछ लोग भारत विभाजन के खिलाफ थे, कुछ पक्ष में थे और कुछ ऐसे लोग थे, जो भारत के धर्म आधारित विभाजन के खिलाफ थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद और डॉ. राममनोहर लोहिया ने विभाजन को कभी सही नहीं ठहराया।
 
 
स्वतंत्रता के समय 'भारत' के अंतर्गत तीन तरह के क्षेत्र थे-
1. 'ब्रिटिश भारत के क्षेत्र'- ये लंदन के इंडिया ऑफिस तथा भारत के गवर्नर-जनरल के सीधे नियंत्रण में थे।
2. 'देसी राज्य'
3. फ्रांस और पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र (चंदननगर, पाण्डिचेरी, गोवा आदि)
 
1947 के भारत विभाजन के दौरान ही ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है जबकि अखंड भारत में ये सभी शामिल थे। इस तरह कुल मिलाकर भारतवर्ष में 662 रियासतें थीं जिसमें से 565 रजवाड़े ब्रिटिश शासन के अंतर्गत थे। 565 रजवाड़ों में से से 552 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। जूनागढ़, हैदराबाद, त्रावणकोर और कश्मीर को छोड़कर बाकी की रियासतों ने पाकिस्तान के साथ जाने की स्वीकृति दी थी।
 
 
भारत का विभाजन माउंटबेटन योजना ( '3 जून प्लान' ) के आधार पर तैयार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगे और उनको ब्रितानी सरकार सत्ता सौंप देगी। माउंटबेटन ने भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें यह प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। बचे रह गए थे त्रावणकोर, हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल। 662 देशी रियासतों में से ब्रिटिश शासन के अधीन थे 565 रजवाड़े। इनमें से 552 रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दे दी, बाकी बची 110 में से 105 ने पाकिस्तान में मिलने की स्वीकृति दी जबकि जूनागढ़, हैदराबाद, भोपाल, त्रावणकोर और कश्मीर ने स्वीकृति नहीं दी थी। वे खुद को आजाद मुल्क बनाना चाहते थे लेकिन भौगोलिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के चलते ऐसा होना संभव नहीं था।
 
 
इन पांचों क्षेत्र के राजा स्वेच्छाचारी थे। कश्मीर के राजा जहां अपना अधिकतर समय गोल्फ खेलने और जंगलों में शिकार के लिए बिताते थे तो जूनागढ़ के राजा को कुत्ते पालने का शौक था उनके पास देसी-विदेशी मिलाकर 500 से ज्यादा कुत्ते थे। भोपाल के नवाब तो नवाब ठहरे और हैदराबाद के निजाम अक्खड़ किस्म के थे जिनमें कट्टरपंथी सोच थी। मुस्लिम बहुल कश्मीर के हिन्दू राजा हरिसिंह अपने राज्य को आजाद मुल्क बनाना चाहते थे जबकि मुसलमान और हिन्दू पंडित भारत संघ में मिलना चाहते थे। दूसरी ओर हिन्दू बहुल हैदराबाद और भोपाल के मुस्लिम निजाम और नवाब आजाद मुल्क बनाना चाहते थे जबकि उनकी जनता भारत संघ में मिलने की इच्छुक थीं। दूसरी ओर जूनागढ़ के राजा मुसलमान थे जबकि उनका क्षेत्र हिन्दू बहुल था। वे अपने राज्य को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। यहां जानते हैं हैदराबाद के बारे में जानकारी।
 
 
इस तरह हुआ हैदराबाद का विलय : 1720 से चले आ रहे हैदराबाद के निजाम शासन को 1798 में ब्रिटिश भारत शासन के अंतर्गत करना पड़ा। 7 निजामों ने लगभग दो शताब्दियों यानी 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक हैदराबाद पर शासन किया। अंतिम निजाम उस्मान अली खान ने हैदराबाद पर 17 सितंबर 1948 तक शासन किया।
 
 
हैदराबाद की रियासत की जनसंख्या का 80 प्रतिशत भाग हिन्दू था, लेकिन हैदराबाद के कट्टरपंथी मुस्लिम रज़ाकारों के प्रमुख कासिम रिजव ने निजाम पर दबाव बनाया और उन्हें भारतीय संघ में नहीं मिलने के लिए राजी किया।
 
केएम मुंशी ने कासिम रिजवी के बारे में लिखा कि उसने राज्य की मुस्लिम जनता को भड़काकर दंगे करवाए और निजाम से कहकर उदार मंत्री मिर्जा अस्माइल को प्रधानमंत्री पद से हटवा दिया और छतारी के नवाब को इस पर बैठा दिया। छतारी के नवाब ने जिन्ना से पूछा कि यदि भारत ने हैदराबाद पर आक्रमण किया तो क्या पाकिस्तान उसकी मदद के लिए आएगा? जिन्ना ने दो-टूक शब्दों में उत्तर दिया- नहीं आ सकते। यह सुनकर छतारी के नवाब के पैरों तले की जमीन खिसक गई और उन्होंने हैदराबाद छोड़ दिया।
 
 
कासिम रिजवी की कट्टरपंथी बातों में फंसकर हैदराबाद का निजाम भारत विरोधी बन गया था। बहुत इंतजार के बाद जब निजाम ने भारत में विलय का पत्र नहीं सौंपा तो सरदार पटेल ने पुलिस एक्शन लिया। इसके चलते रिजवी भाग गया और निजाम को सरदार के सामने झुकना पड़ा। 
 
सरदार ने कहा कि हैदराबाद के मुसलमानों ने हमारा साथ दिया जिसका निश्चित रूप से अच्छा प्रभाव पड़ा। निजाम ने रिजवी की कट्टरपंथी इस्लामिक सोच को कोसा और अपने किए पर प्रायश्चित किया। सरदार पटेल ने निजाम को लिखा- महामहिम जैसा कि मैंने आपसे कहा, गलती करना मनुष्य की कमजोरी है। ईश्वरीय निर्देश भूल जाने व क्षमा करने का संकेत देते हैं।
 
 
हैदराबाद का इतिहास : हैदराबाद आंध्रप्रदेश का हिस्सा रहा है परंतु आंध्र के दो हिस्से हो चले हैं। पहला आंध्र और दूसरा तेलंगाना। हैदराबाद अब तेलंगाना का हिस्सा है। इसका इतिहास तो बहुत पुराना है परंतु ज्ञात रूप से पहले ककातीय नरेश गणपति इस पर शासन किया, फिर 14वीं सदी में यह क्षेत्र मुस्लिम राजाओं के अधिकार में आ गया। यहां बहमनी राज्य स्थापित हुआ। 482 ई. में बहमनी राज्य के एक सूबेदार सुल्तान क़ुलीकुतुबुलमुल्क ने नरेश गणपति के शासन काल में बना गोलकुंडा पहाड़ी पर जो कच्चा किला बनाया था उसे पक्का करने गोलकुंडा में अपनी राजधानी बनवायी।
 
 
इसके बाद कुतुबशाही वंश के पांचवें सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने 1591 ईस्वी में गोलकुंडा से अपनी राजधानी हटाकर मूसी नदी के दक्षिणी तट पर बसाई जहां आज हैदराबाद स्थित है। यह भी कहा जाता है कि वर्तमान हैदराबाद के स्थान पर पूर्व में पाटशिला नामक नगर बसा हुआ था जिसे कुतुबशाह ने अपनी प्रेमिका भागमति के नाम पर भागनगर नाम दिया। बाद में भागमती को कुतुबशाह ने 'हैदरमल' की उपाधि प्रदान की और फिर यह कालांतर में हैदराबाद हो गया।

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