आचार्य रामचरण प्रभु के बारे में 7 खास बातें

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आचार्य रामचरण महाराज की 302वीं जयंती मनाई जाएगी। रामचरण जी का जन्म माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आता है। उनका जन्म संवत् 1776 (1719 ई.) को राजस्थान के जयपुर जिले के मालपुरा नामक नगर के पास सोडा नामक ग्राम में हुआ था। जो उनका ननिहाल था। वे मालपुरा के समीप बनवाडा नामक ग्राम के रहने वाले थे। आओ जानते हैं उनके बारे में 7 खास बातें। 
 
 
1. विजयवर्गीय वैश्य गौत्र कापडी समाज के स्वामीजी का बचपन का नाम रामकिशन था। इनके पिताजी का नाम बख्तराम जी तथा माताजी का नाम देउजी था। इनका विवाह चांदसेन नामक ग्राम में, एक सम्पन्न परिवार में गिरधारीलाल खूंटेटा की कन्या गुलाब कंवर बाई के साथ हुआ। स्वामी जी की एक पुत्री थी जिनका नाम जडाव कंवर था।
 
2. महराज रामचरण प्रभु जयपुर राज्य के अंतर्गत उच्च पद पर निष्ठा पूर्वक राजकीय सेवा करते थे। कुछ अन्य लेखकों एवं श्री लालदास जी की परची के अनुसार उन्होंने जयपुर राज्य के दीवान पद पर काम किया था। 
 
3. जयपुर नरेश के मन्त्री रहने के बाद उन्होंने अचानक सन्यास ग्रहण कर लिया तथा सन्तदास के शिष्य महाराज कृपाराम को उन्होंने अपना गुरु बनाकर राम भक्त में डूब गए।
 
4. दीक्षा लेने के बाद इन्होंने कठोर साधना की और अन्त में शाहपुरा में बस गए। इन्होंने यहां पर मठ स्थापित किया तथा राज्य के विभिन्न भागों में रामद्वारे बनवाए। इस प्रकार वे अपने विचारों तथा राम नाम का प्रचार करते रहे।
 
5 रामस्नेही संप्रदाय के आद्य संस्थापक महाप्रभु स्वामी रामचरण महाप्रभु शाहपुरा की रामस्नेही शाखा के प्रवर्तक थे, जबकि संत दरियाबजी रैण के रामस्नेही शाखा के थे। ये निर्गुण भक्ति शाखा के संत रहे हैं।
 
6. गुरु कृपाराम जी महाराज से इन्होंने रामभक्ति की शिक्षा ली और सन्न 1817 में ये भीलवाड़ा गए। वहीं इन्होंने अपनी अणभैवाणी की रचना की। इनके निवास हेतु विक्रम संवत 1822 में देवकरणजी तोषनीवाल ने रामद्वारा का निर्माण कराया था। 
 
7. स्वामी रामचरण जी महाराज वैशाख कृष्ण पंचमी गुरुवार सं. 1855 को शाहपुरा में ही ब्रह्मलीन हुए। इनके बारे में अधिकतर जानकारी विनतीरामजी द्वारा लिखित जीवन चरित्र पुस्तक और श्रीजगन्नाथजी कृत गुरु लीला विलास में मिलती है।

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