एकनाथ षष्‍ठी 2023: जानिए संत एकनाथ महाराज के बारे में Saint Eknath Maharaj

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Marathi Saint Eknath Maharaj 
 
वर्ष 2023 में एकनाथ षष्‍ठी 13 मार्च 2023, दिन सोमवार को मनाई जा रही है। संत एकनाथ महाराज जी ने जिस दिन समाधि ली थी, वह दिन नाथ षष्ठी के नाम से जाना जाता है, इस दिन महाराष्ट्र, खास करके पैठण के क्षेत्रों में उनका समाधि उत्सव मनाया जाता है, यहां हजारों वारकरी देश-विदेश से वहां पहुंचकर इस उत्सव में भाग लेते हैं। यह दिन जत्रा के नाम से भी जनमानस में प्रचलित है। 
 
संत एकनाथ को श्रद्धावान, बुद्धिमान और अपूर्व संत कहा जाता है। उनके पिता का नाम सूर्यनारायण तथा माता का नाम रुक्मिणी था। 
 
वे एक महान संत होने के साथ-साथ कवि भी थे। उन्होंने अपने गुरु से ज्ञानेश्वरी, अमृतानुभव, श्रीमद्भागवत आदि ग्रंथों का अध्ययन किया था। उनकी रचनाओं में श्रीमद्भागवत एकादश स्कंध की मराठी-टीका, रुक्मिणी स्वयंवर, भावार्थ रामायण आदि प्रमुख हैं। संत एकनाथ ने जिस दिन समाधि ली, वह दिन एकनाथ षष्‍ठी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन पैठण में उनका समाधि उत्सव मनाया जाता है। 
 
यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं संत एकनाथ जी महाराज के जीवन से जुड़ें 3 प्रेरंक प्रसंग- 
 
प्रसंग 1 : उपकार
 
संत एकनाथ एक दिन वे नदी से स्नान कर अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे कि रास्ते में एक बड़े पेड़ से किसी ने उन पर कुल्ला कर दिया। 
 
एकनाथ ने ऊपर देखा तो पाया कि एक आदमी ने उन पर कुल्ला कर दिया था। वे एक शब्द नहीं बोले और सीधे नदी पर दोबारा गए, फिर स्नान किया। उस पेड़ के नीचे से वे लौटे तो उस आदमी ने फिर उन पर कुल्ला कर दिया। एकनाथ बार-बार स्नान कर उस पेड़ के नीचे से गुजरते और वह बार-बार उन पर कुल्ला कर देता। 
 
इस तरह से एक बार नहीं, दो बार नहीं, संत एकनाथ ने 108 बार स्नान किया और उस पेड़ के नीचे से गुजरे और वह दुष्ट भी अपनी दुष्टता का नमूना पेश करता रहा। एकनाथ अपने धैर्य और क्षमा पर अटल रहे। 
 
उन्होंने एक बार भी उस व्यक्ति से कुछ नहीं कहा। अंत में वह दुष्ट पसीज गया और महात्मा के चरणों में झुककर बोला- महाराज मेरी दुष्टता को माफ कर दो। मेरे जैसे पापी के लिए नरक में भी स्थान नहीं है। मैंने आपको परेशान करने के लिए खूब तंग किया, पर आपका धीरज नहीं डिगा। मुझे क्षमा कर दें। 
 
महात्मा एकनाथ ने उसे ढांढस देते हुए कहा- कोई चिंता की बात नहीं। तुमने मुझ पर मेहरबानी की कि आज मुझे 108 बार स्नान करने का तो सौभाग्य मिला। कितना उपकार है तुम्हारा मेरे ऊपर! संत के कथन से वह दुष्ट युवक पानी-पानी हो गया।
 
प्रसंग 2 : जब पुत्र ने मान लिया अपने पिता को 1000 विद्वान ब्राह्मणों के बराबर 
 
एक बार संत एकनाथ से किसी बात पर नाराज होकर रूढ़िवादियों ने उनके पुत्र हरि पंडित को उनके विरुद्ध यह कहकर भड़काना शुरू कर दिया कि तुम्हारा पिता धर्मग्रंथों का पाठ मराठी भाषा में करता है और किसी के भी हाथ का बना खा-पी लेता है। हरि जब इस बारे में बात करता तो एकनाथ तर्कों से उसे समझाने की कोशिश करते, लेकिन उनकी बातें हरि के गले नहीं उतरतीं। 
 
एक दिन वह अपने पिता से बोला कि हम दोनों के सोचने का तरीका बिलकुल भिन्न है। इसलिए जब हम एकमत नहीं हो सकते तो बेहतर है कि मैं घर छोड़ दूं। यह कहकर वह घर से निकल गया और वाराणसी जाकर बस गया। हरि के जाने से उसकी मां गिरिजा दुःखी रहने लगीं। 
 
उन्होंने एकनाथ से बेटे को वापस बुला लाने की जिद की। हरि इस शर्त पर पैठण वापस आया कि उसके पिता उसकी बात मानेंगे। इसके बाद एकनाथ ने संस्कृत में पाठ करना शुरू कर दिया। इससे उनके श्रोताओं की संख्या घट गई।
 
इस बीच एक गरीब वृद्धा एकनाथ के पास आकर बोली- मैं एक हजार ब्राह्मणों को जिमाना चाहती हूं, लेकिन यह मेरे बस में नहीं। आप जैसे व्यक्ति को जिमाकर मेरा संकल्प पूरा हो जाएगा। इसीलिए कृपया मेरा आग्रह स्वीकारें। अगले दिन वृद्धा के घर जाकर हरि पंडित ने भोजन पकाया और पिता-पुत्र ने खाया। खाने के बाद हरि ने जैसे ही एकनाथ की पत्तल उठाई तो उसकी जगह दूसरी प्रकट हो गई। 
 
यह क्रम तब रुका जब हजार पत्तलें इकट्ठा हो गईं। हरि पंडित इसका मर्म समझ गया कि उसके पिता हजार विद्वान ब्राह्मणों के बराबर हैं। वह उनके पैरों में गिरकर क्षमा मांगते हुए बोला- पिताजी, आज के बाद मैं आपकी किसी बात में बाधा नहीं डालूंगा। 
 
प्रसंग 3 : परमेश्वर का गुलाम बनो
 
संत एकनाथजी के पास एक व्यक्ति आया और बोला, नाथ! आपका जीवन कितना मधुर है। हमें तो शांति एक क्षण भी प्राप्त नहीं होती। कृपया मार्गदर्शन करें।
 
तू तो अब आठ ही दिनों का मेहमान है, अतः पहले की ही भांति अपना जीवन व्यतीत कर। सुनते ही वह व्यक्ति उदास हो गया। 
 
घर में वह पत्नी से जाकर बोला, मैंने तुम्हें कई बार नाहक ही कष्ट दिया है। मुझे क्षमा करो। फिर बच्चों से बोला, बच्चों, मैंने तुम्हें कई बार पीटा है, मुझे उसके लिए माफ करो। जिन लोगों से उसने दुर्व्यवहार किया था, सबसे माफी मांगी। इस तरह आठ दिन व्यतीत हो गए और नौवें दिन वह एकनाथजी के पास पहुंचा और बोला, नाथ, मेरी अंतिम घड़ी के लिए कितना समय शेष है?
 
तेरी अंतिम घड़ी तो परमेश्वर ही बता सकता है, किंतु यह आठ दिन तेरे कैसे व्यतीत हुए? भोग-विलास और आनंद तो किया ही होगा? क्या बताऊं नाथ, मुझे इन आठ दिनों में मृत्यु के अलावा और कोई चीज दिखाई नहीं दे रही थी। इसीलिए मुझे अपने द्वारा किए गए सारे दुष्कर्म स्मरण हो आए और उसके पश्चाताप में ही यह अवधि बीत गई।
 
मित्र, जिस बात को ध्यान में रखकर तूने यह आठ दिन बिताए हैं, हम साधु लोग इसी को सामने रखकर सारे काम किया करते हैं। यह देह क्षणभंगुर है, इसे मिट्टी में मिलना ही है। इसका गुलाम होने की अपेक्षा परमेश्वर का गुलाम बनो। सबके साथ समान भाव रखने में ही जीवन की सार्थकता है। 

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