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18 दिसंबर : सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास की जयंती

हमें फॉलो करें 18 दिसंबर : सतनाम पंथ के संस्थापक गुरु घासीदास की जयंती
guru ghasidas jayanti 
 
18 दिसंबर 1756 को गुरु घासीदास (Guru Ghasidas) का जन्म ऐसे समय हुआ जब समाज में ऊंच-नीच, छुआछूत, झूठ और कपट का बोलबाला था। उनका जन्मस्थान छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में गिरौद नामक ग्राम में बताया जाता है। पिता मंहगू दास तथा माता अमरौतिन के घर जन्मे गुरु घासीदास ने समाज को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उनकी सत्य के प्रति अटूट आस्था थी, उसी कारण उन्होंने बचपन में कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा। Guru Ghasidas Jayanti 2021
 
घासीदास जी ने जहां समाज में एकता बढ़ाने का कार्य किया, वहीं भाईचारे और समरसता का संदेश भी दिया। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा करने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग उन्होंने मानवता के सेवा कार्य के लिए किया। उनके इस व्यवहार और प्रभाव के चलते लाखों लोग उनके अनुयायी बन गए और इस तरह छत्तीसगढ़ में 'सतनाम पंथ' Satnam Panth की स्थापना हुई। 
 
सतनाम संप्रदाय के लोग गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष (Avatari purush) के रूप में मानते हैं। उन्होंने अपनी तपस्या से अर्जित की शक्तियों से कई चमत्कारिक कार्य करके लोगों को दिखाएं। समाज के लोगों को उनके द्वारा दिया गया प्रेम, मानवता का संदेश और उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। उनके भक्त मानते हैं कि गुरु घासीदास जी द्वारा बताया गया रास्ता अपना कर ही अपने जीवन तथा परिवार की उन्नति हो सकती है। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके 7 वचन सतनाम पंथ के 'सप्त सिद्धांत' के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है। 
 
गुरु घासीदास की जन्मस्थली एवं तपोभूमि एवं सतनामी समाज का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल गिरौदपुरी में भक्तों का मेला लगता हैं, जहां उनके चरणकुंड, अमृतकुंड, छाता पहाड़ आदि स्थलों के दर्शन वे लाभ लेते हैं। गुरु घासीदास की जयंती पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में 18 दिसंबर से करीब एक माह तक बड़े पैमाने पर उत्सव के रूप में पूरे मनाई जाती है। सद्विचार तथा एकाग्रता बढ़ाने के लिए बाबा घासीदास की जयंती मनाना अतिआवश्यक हो जाता है, क्योंकि इससे लोगों को सद्कार्य करने की प्रेरणा मिलती हे। 
 
घासीदास जयंती पर उनके भक्त पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ उनके मुख्य मंदिर में स्थित जैतखांब (जैतखंभ) को लंबी दूरी से दंडवत प्रणाम करते हुए गिरौदपुरी पहुंचते है। उनके भक्त मानते हैं कि ऐसा करने से उनके शरीर को कोई कष्ट नहीं होता, बल्कि उनके मन को शांति मिलती है।

घर, परिवार और संतान की कामना से उनके कई भक्त बाबा गुरु घासीदास की जयंती पर उनके यहां मत्था टेकने जाते हैं। 18 दिसंबर को उनकी जयंती के अवसर पर जहां विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, वहीं पंथी नृत्य panthi dance की धूम रहेगी। guru ghasidas jayanti 


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