आदि शंकराचार्य का परिचय

Webdunia
बुधवार, 7 अगस्त 2019 (18:05 IST)
- आर. हरिशंकर

भारत में आदि शंकराचार्य भारतीय दर्शन अद्वैत वेदांत के प्रचारक थे। उन्होंने ब्रह्मसूत्र और भगवद् गीता पर भाष्य लिखे हैं। उन्होंने हिन्दू और बौद्ध धर्म के बीच के अंतर को समझाया जिसमें कहा गया कि हिन्दू धर्म बताता है कि 'आत्मान (आत्मा, स्वयं) का अस्तित्व है, जबकि बौद्ध धर्म बताता है कि 'कोई आत्मा, कोई स्व' नहीं है।
 
शंकर ने संपूर्ण भारत का भ्रमण करके प्रवचनों के माध्यम से अपने दर्शन का प्रचार किया। उन्होंने 4 मठों की स्थापना भी की थी।
 
जन्म : आदिशंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर हुआ था। ऐसा माना जाता है कि शंकर का जन्म 509-477 ईसा पूर्व की अवधि के दौरान हुआ था।
 
 
जीवन : वे नम्बूद्री ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके माता-पिता ने उनका नाम शंकर रखा था। शंकर जब बहुत छोटे थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था। वे बचपन में ही संन्यास के प्रति आकर्षित हो गए थे। तब वे गोविंदा भगवत्पदा नामक एक शिक्षक के शिष्य बन गए।
 
भक्ति यात्रा : आदिशंकराचार्य ने भारत के भीतर व्यापक रूप से यात्रा की और हिन्दू दर्शन के भिन्न-भिन्न विद्वानों के साथ विभिन्न बहस में व्यापक रूप से भाग लिया। आदिशंकराचार्य के कई शिष्य थे जिनमें पद्मपाद, सुरेश्वरा, तोथाका, सिटसुखा, प्रिथविधारा, सिदविलासयाति, बोधेंद्र, ब्रह्मेंद्र, सदानंद और अन्य शामिल हैं।
 
 
निधन : माना जाता है कि आदि शंकर की मृत्यु 32 वर्ष की आयु में हिमालय के केदारनाथ में हुई थी।
 
रचनाएं :
1. आदि शंकराचार्य का ब्रह्मसूत्र पर एक भाष्य है जो कि हिन्दू धर्म का मूल पाठ है। ब्रह्म सूत्र पर आदिशंकराचार्य की टीका अच्छी तरह से प्राप्त होती है।
2. 10 प्रमुख उपनिषदों पर उनकी टीका विद्वानों द्वारा अच्छी मानी जाती है।
3. शंकर की अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में भगवद् गीता पर भाष्य शामिल हैं जिसे विद्वानों के बीच स्वीकार्यता है।
4. शंकर के स्तोत्रों को विद्वानों ने अच्छी तरह से माना है जिसमें कृष्ण और शिव पर स्तोत्र शामिल हैं।
 
 
निष्कर्ष : 
श्री आदि शंकर, जो अद्वैत के संस्थापक और वेदों और पुराणों के अच्छे जानकार थे, वे भगवान शिव और पार्वती के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। वे कोल्लूर मूकाम्बिका के बहुत समर्पित भक्त हैं और उनकी प्रशंसा में वहां गाया जाता है। हालांकि उन्होंने कई हजार साल पहले 32 साल की उम्र में ही अपने शरीर का त्याग कर दिया था, लेकिन वे अभी भी हमारी आत्मा में रह रहे हैं और ठीक से हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं।
 
वे इस कलियुग में भी अपने भक्तों की सभी प्रकार की समस्याओं से रक्षा करते हैं। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है, जो कि लोगों के कल्याण के लिए प्रकट हुए थे। आइए, हम महान संत की प्रार्थना करें और उनके पवित्र नाम का श्रद्धा-भक्ति से जप करें और धन्य हों।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Bhagwat katha benefits: भागवत कथा सुनने से मिलते हैं 10 लाभ

Vaishakha amavasya : वैशाख अमावस्या पर स्नान और पूजा के शुभ मुहूर्त

Dhan yog in Kundali : धन योग क्या है, करोड़पति से कम नहीं होता जातक, किस्मत देती है हर जगह साथ

Akshaya tritiya 2024 : 23 साल बाद अक्षय तृतीया पर इस बार क्यों नहीं होंगे विवाह?

Varuthini ekadashi: वरुथिनी एकादशी का व्रत तोड़ने का समय क्या है?

Guru asta 2024 : गुरु हो रहा है अस्त, 4 राशियों के पर्स में नहीं रहेगा पैसा, कर्ज की आ सकती है नौबत

Nautapa 2024 date: कब से लगने वाला है नौतपा, बारिश अच्‍छी होगी या नहीं?

Akshaya tritiya 2024: अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा

कालाष्टमी 2024: कैसे करें वैशाख अष्टमी पर कालभैरव का पूजन, जानें विधि और शुभ समय

Aaj Ka Rashifal: राशिफल 01 मई: 12 राशियों के लिए क्या लेकर आया है माह का पहला दिन

अगला लेख