'ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी' के लेखक, योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक और भारतीय रहस्यदर्शी परमहंस योगादंन का जन्म 5 जनवरी 1893 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ। उन्होंने क्रिया योग की शिक्षा दी थी। स्वामी परमहंस योगानंद के बचपन का नाम मुकुंदलाल घोष था।
- परमहंस योगानंद के गुरु स्वामी युत्तेश्वर गिरि थे और उनके गुरु लाहिड़ी महाशय थे। लाहड़ी महाशय को महावतार बाबा का शिष्य माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि महावतार बाबा ने आदिशंकराचार्य को क्रिया योग की शिक्षा दी थी और बाद में उन्होंने संत कबीर को भी दीक्षा दी थी। इसका जिक्र परमहंस योगानंद ने अपनी किताब 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी' (योगी की आत्मकथा, 1946) में किया है।
- उन्होंने 1915 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से इंटर पास किया फिर सीरमपुर कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उसके बाद वो अपने गुरु के पास आ गए और योग और मेडिटेशन की ट्रेनिंग ली। गुरु युक्तेश्वर ने मुकुन्द को 1914, में संन्यास में दीक्षा दी, उस दिन के बाद मुकुन्द स्वामी योगानंद बन गए।
- अंग्रेजी में लिखी किताब 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी' को दुनिया में सबसे ज्याद बिकने वाली किताबों में शामिल किया गया है। इसका हिन्दी संस्करण 'योगी कथामृत' योगी की आत्मकथा ने भी कई रिकार्ड कायम किए हैं।
- योगानंद ने भी महावतार बाबा से भेंट की थी। योगानंद जब उनसे मिले थे तो वे सिर्फ 19 साल के नजर आ रहे थे। योगानंद ने किसी चित्रकार की मदद से उन्होंने महावतार बाबा का चित्र भी बनवाया था, वही चित्र सभी जगह प्रचलित है। परमहंस योगानंद को बाबा ने 25 जुलाई 1920 में दर्शन दिए थे इसीलिए इस तिथि को प्रतिवर्ष बाबाजी की स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- लाहिड़ी महाशय ने अपनी डायरी में लिखा कि महावतार बाबाजी भगवान कृष्ण थे। योगानंद भी अक्सर जोर से 'बाबाजी कृष्ण' कहकर प्रार्थना किया करते थे। परमहंस योगानंद के दो शिष्यों ने लिखा कि उन्होंने भी कहा कि महावतार बाबाजी पूर्व जीवनकाल में श्री कृष्ण थे। कहते हैं कि महावतार बाबा की गुफा आज भी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कुकुछीना से 13 किलोमीटर दूर दूनागिरि में स्थित है।
- योगानंद ने आध्यात्मिक कार्य की शुरुआत 1916 में रांची में ब्रह्मचार्य विद्यालय की स्थापना से की। एक दिन विद्यालय में ध्यान करते हुए उन्हें दिव्य दृष्टि से बुलावा महसूस हुआ। उनको अपने गुरुओं द्वारा दी भविष्यवाणी को पूरा करना होगा। योग की पवित्र शिक्षाओं को भारत से पश्चिमी देशों में ले जाना होगा। जिसके चलते वे फिर वे अमेरिका में बॉस्टन के लिए चल पड़े।
- पश्चिमी देशों में पहली बार योग के संदेश को संगठित रूप में पहुंचाने में योगदा सत्संग सोसाइटी के संस्थापक परमहंस योगानंद का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। 1920 में पहली बार अमेरिका गए और तभी से योग विज्ञान के प्रचार-प्रसार में लग गए थे। उस वक्त उनकी उम्र 27 वर्ष की थी। परमहंस योगानंद पहले भारतीय योग गुरु थे जिन्होंने पश्चिमी देशों में अपना स्थायी निवास बनाया।
- 1935 में योगानंद ने भारत आकर अपने गुरु के काम को आगे बढ़ाया। उनके गुरु ने उनके कार्य और चेतना को देखते हुए उन्हें परमहंस की उपाधि दी। वे महात्मा गांधी से मिले। गांधी ने उनके संदेश को लोगों तक पहुंचाया। एक साल के बाद वे पुन: अमेरिका लौट गए।
- योगानंद ने अपनी आत्मकथा 'योगी कथामृत' में शरीर, मन व आत्मा के सुसंगत विकास के लिए उन्होंने क्रिया योग प्रविधि की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करते हुए देश के कई रहस्यदर्शी संतों के चमत्कार और रहस्यों का भी उल्लेख किया है।
- कहते हैं कि उनको उनकी मृत्यु का पूर्वाभास होने लगा था। 7 मार्च 1952 की शाम को अमेरिका में भारत के राजदूत बिनय रंजन सपत्नीक लॉस एंजिल्स के होटल में खाने पर थे। जिसमें उनके साथ योगानंद भी थे। इसी कार्यक्रम में योगानंद ने संबोधन दिया और अंत में अपनी कविता की चंद लाइने कहीं जिसमें भारत की महिमा बताई गयी थी। इसके बाद उनका देहांत हो गया।