गुरुओं के गुरु श्री दत्तात्रेय

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- ज्योत्स्ना भोंडवे

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ईश्वर और गुरु की एकरूपता यानी श्री दत्तात्रेय, जिन्हें गुरुओं का श्री गुरुदेवदत्त या सद्गुरु भी कहते हैं। दुनिया के दुःख, दर्द और तकलीफों की मुक्ति का मार्ग स्वयं अपने आचरण से बताने वाले श्री दत्तगुरु। दत्त यानी साक्षात खड़ा।

अपने भक्तों को अचानक आकर मदद करने वाली शक्ति यानी दत्त, जिनकी निर्मिती भारतीय संस्कृति के इतिहास का अद्भुत चमत्कार है। शैव, वैष्णव और शाक्त तीनों ही संप्रदायों को एकजुट करने वाले श्री दत्तात्रेय का प्रभाव हजारों सालों से महाराष्ट्र में ही नहीं, वरन विश्व में टिका हुआ है और उनके जन्म का यानी भक्तों के उत्साह का दिन 12 दिसंबर को दत्त जयंती।

एकमुखी दत्त यानी विष्णुरूपी दत्तात्रेय महासती अनुसूया और ऋषि अत्रि के आश्रम में जन्म लेकर ब्रह्मा और महेश तो अंतर्ध्यान हो गए, लेकिन विष्णु वहीं रह गए। सो विष्णुरूपी श्री दत्तात्रेय के नाम से जाने गए, जिनमें सृष्टि की तीनों शक्ति समाहित हैं- उत्पत्ति, स्थिति और लय। दत्त यानी दिया हुआ। साधक जिस योग के माध्यम से ईश्वर से एकरूप होता है, वह साधन है योग। आत्मा और परमात्मा से योग साधना से जन्मा दत्त।

ऋषि अत्रि और सती अनुसूया महाभावों के संयोग से जन्मे भगवान श्री दत्तात्रेय ईश्वर का साधक को दिया वरदान है, जो चिरंजीव अवतार है। मान्यता है कि प्रयाग सिंहाचल के समीप आश्रम से वे रोज पाचाळेश्वर में स्नान व कोल्हापुर में भिक्षा माँगने के उपरांत मादुरगढ़ में शयन करते हैं।

श्री दत्तात्रेय के शिष्य- सहस्रार्जुन, कार्तवीर्य, भार्गव, परशुराम, यदु, अलर्क, आयु और प्रह्लाद। भगवान दत्तात्रेय ने इस ब्रह्मांड में अलग-अलग रूपों में 24 लोगों को अपना गुरु माना।

श्री दत्तात्रेय के 24 गुरु- पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्र, कीड़े, कबूतर, अजगर, समुद्र, पक्षी, भँवरा, मधुमक्खी, हाथी, हिरण, मछली, वेश्या, टिटहरी, चूड़ी, धनुर्धारी, साँप, मछुआरा, बालक।

श्री दत्तावतार में चारों संप्रदायों- नाथ संप्रदाय, महानुभाव संप्रदाय, वारकरी संप्रदाय और समर्थ संप्रदाय की अगाध श्रद्धा है। ऐसे दत्त भक्ति की परंपरा को सैकड़ों वर्षों से कायम रखने वाले दत्त संप्रदाय में हिन्दुओं के ही बराबर मुसलमान भक्त भी बड़ी संख्या में शामिल हैं।

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