धर्मगुरु डॉ. सैयदना साहब

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बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब मानवता की मिसाल हैं। उन्होंने बोहरा समाज को एक नई दिशा दी है। डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन का जन्म सूरत में सन् 1915 में हुआ था।

उनके वालिद साहब हिज होलीनेस डॉ. सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने यह फरमाया था कि उनका बेटा फातेमी दावत (इमाम का वह मिशन जो अल-दई-अल मुतलक द्वारा चलाया जाता है) के सम्मान तथा प्रतिष्ठा का अग्रदूत होगा।

डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन एक श्रेष्ठतम शिक्षाविद्‍, उदार मन, मानवतावादी और भलाई के अग्रदूत थे।


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वे दुनियाभर में फैले दाऊदी बोहरा समाज के प्रमुख थे। मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में अपने वालिद की देखरेख में ली गई तालीम के परिणामस्वरूप सैयदना साहब ने पूरी की पूरी कुरान-ए-मजीद को याद कर लिया था।

उन्नीस बरस की आयु में 51वें दई-अल-मुतलक सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने सैयदना को अल-दई-अल-मुतलक का वारिस मुकर्रर कर दिया था। 1941 में सैयदना को अल-अलीम-उर-रासिक का खिताब अता किया गया था। साथ ही एक बरस बाद सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने उन्हें उमादातुल उलमा एल मुवाहेदीन का खिताब अता किया था। यह वह दुर्लभ सम्मान है, जो समुदाय के सबसे ज्यादा विद्वान इंसान को ही दिया जाता है।

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सैयदना साहब ने हजारों बोहराओं की नगरी तथा 4 सदियों से दावत की गद्दी यमन की यात्रा की थी जिसके परिणामस्वरूप यमन सरकार और वहां के लोगों ने बोहराओं को मान्यता प्रदान की। इस महान उपलब्धि पर सैयदना ताहेर सैफुद्दीन ने अपने बेटे को 'मंसूर-उल-यमन' नामक ऐतिहासिक खिताब से भी नवाजा था। यह खिताब इससे पहले एक मर्तबा 12 सदी पहले दिया गया था।


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सैयदना ताहेर सैफुद्दीन का इंतकाल होने पर सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन अल-दाइल-अल मुतलक की गद्दी पर 52वें गद्दीनशीन जलवा अफरोज हुए। अपने पूर्वजों और वालिद की परंपरा को अपनाते हुए सैयदना साहब ने पहला रिसाला रमदानिया इस्तिफताहो जोबादिल मारिफ, जो कि अरब साहित्य की रचना है, लिखा।

दुनिया की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी और सर्वाधिक प्रतिष्ठित शिक्षण केंद्र अल-अजहर यूनिवर्सिटी ऑफ कैरो, इजिप्ट ने सैयदना साहब को उनके सम्मानजनक कार्य के लिए डॉक्टर ऑफ इस्लामिक स्टडीज की उपाधि प्रदान की थी।

सैयदना साहब ने सिखाया है कि न कोई बड़ा है और न कोई छोटा बल्कि सब एक समान हैं। वे कहते थे- सबका भला करो, गुस्सा मत करो, मीठा बोलो। उनका बताया मार्ग मानवता का रास्ता है। सैयदना साहब के व्यापक तथा उदारवादी मानवीय कार्यों के प्रति समस्त बोहरा समुदाय सदैव नतमस्तक हैं और हमेशा रहेगा।

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