संसार में सुख ज्यादा, दुख कम

परहित : जीवन का सबसे बड़ा पुण्य

Webdunia
ND

- आचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री

यदि आप जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो दूसरों को सुख देने की कोशिश करें। याद रखें संसार में सुख ज्यादा है दुख कम। 85 प्रतिशत दुख हम अपनी बेवकूफी से पैदा करते हैं। 15 प्रतिशत दुख दुष्कर्म से प्राप्त होता है। किसी को तीन लड़कियां हैं, लड़का नहीं, तो दुख। किसी को व्यापार में घाटा हो गया तो दुख। लड़का तो पैदा हुआ, परंतु आज्ञाकारी नहीं निकला तो और ज्यादा दुख होता है।

यह दुख तो प्रयत्न एवं पुरुषार्थ तथा मालिक की कृपा से सुख में बदल सकते हैं। लेकिन संसार में सबके दुख का कारण एक ही है। आज का इंसान अपने दुख से बहुत कम दुखी है, परंतु दूसरे के सुख को देखकर ज्यादा दुखी है।

आज का इंसान अपने बनते हुए घर को देखकर कम खुश है, परंतु दूसरे के जलते हुए घर को देखकर ज्यादा खुश है। एक बार राजा जनक के पास तत्ववेत्ता ऋषि पहुंचे। राजा अपना सिंहासन छोड़कर आए और ऋषि को दंडवत प्रणाम कर आसन पर बैठा कर कहने लगे ऋषिवर, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? ऋषि बोले- हे राजन्‌! आपके इस नगर के समीप मेरा गुरुकुल आम है। वहां एक हजार ब्रह्मचारी विद्या अर्जन करते हैं। मुझे आम के विद्यार्थियों के दूध पीने के लिए गौ चाहिए।

राजा जनक महान ज्ञानी एवं विद्वत्‌ अनुरागी तो थे ही, जिज्ञासु स्वभाव के भी थे। ऋषिवर से बोले- मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। बताइए कि मेरी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं? ऋषि बोले- आप दान ज्यादा देते हैं, इसलिए आपकी हथेली में बाल नहीं हैं। राजा संतुष्ट नहीं हुए।

ND
इसी प्रकार आदित्य ब्रह्मचारी ऋषि दयानंद ने संसार के लोगों को एक संदेश दिया कि प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए। इस प्रकार विचारधारा रखने वाले लोग शांति को प्राप्त करते हैं।

जो व्यक्ति दूसरे के सुख को देखकर जलता हो तो यह मानना चाहिए कि वह राजयक्ष्मा रोग का शिकार है। अगर दुष्टता मनुष्य में आ जाए, तो वहीं कोढ़ है।

तुलसी जी ने इसे मानस रोग कहा है। - 'पर सुख देखि जरनि सोई छुई। कुष्ट दुष्टता मान कुटिलई।' जहां राजयक्ष्मा और कोढ़ दोनों एक ही जगह हो तो मानना सर्वनाश ही सर्वनाश है। शांति का द्वार सदा बंद है। जिसका स्वभाव दूसरे के सुख को देखकर जलने का हो तो मानना चाहिएक कि उसके जीवन में मंथरा है।

' त्रिविधं नरकस्येदं द्वारनाशमात्मनः।
काम क्रोधस्तथा लोभ तस्मादेतत्‌ त्रयं त्यजेत्‌॥'

- नरक के तीन द्वार हैं - काम, क्रोध तथा लोभ इसलिए इन तीनों को छोड़ देवें। ये तीन राक्षसियां हैं, शूर्पणखा ये काम की प्रतीक है, ताड़का, क्रोध की प्रतीक है, मंथरा लोभ की प्रतीक है। लोभी आदमी को अपना लाभ हो तो उसे शांति मिलती है, वह चाहता भी है कि पड़ोसी का जरूर घाटा हो। मंथरा, कैकेयी को सलाह देती है कि दो वरदान मांग लो- भरत को राजगद्दी और राम को वनवास।

इस प्रकार के स्वभाव वाले लोग सदा दुख, क्लेश, तनाव से ग्रसित रहते हैं। यदि जीवन में शांति, प्रसन्नता, आनंद चाहते हो तो दूसरे के सुख में सुखी रहो, दूसरे के दुख में दुखी रहने का स्वभाव बनाओ।

Show comments

Buddha purnima 2024: भगवान बुद्ध के 5 चमत्कार जानकर आप चौंक जाएंगे

Buddha purnima 2024: बुद्ध पूर्णिमा शुभकामना संदेश

Navpancham Yog: सूर्य और केतु ने बनाया बेहतरीन राजयोग, इन राशियों की किस्मत के सितारे बुलंदी पर रहेंगे

Chankya niti : करोड़पति बना देगा इन 4 चीजों का त्याग, जीवन भर सफलता चूमेगी कदम

Lakshmi prapti ke upay: माता लक्ष्मी को करना है प्रसन्न तो घर को इस तरह सजाकर रखें

22 मई 2024 : आपका जन्मदिन

22 मई 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Nautapa 2024 date: 25 मई से 2 जून तक रहेगा नौतपा, रहें सावधान

Chanakya Niti : बिना कारण दूसरों के घर जाने से होंगे 3 नुकसान

Buddh purnima 2024 : गौतम बुद्ध की पूजा करने का क्या है शुभ मुहूर्त