कामना ही मनुष्य के दुखों का कारण

- स्वामी नित्यानंद गिरि

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मनुष्य के दुख का, संताप का, परेशानियों व दुर्गति का कारण है कामना, इच्छा, वासना, इच्छा पूरी होती है तो सुख होता है और इच्छा की अपूर्ति में दुख होता है इच्छा में बाधा लगने से ही क्रोध की उत्पत्ति होती है।

अगर कोई क्रोधी है, तो इसका कारण है उसके भीतर इच्छाएं दबी पड़ी हैं। सत्संग से, सेवा से परोपकार से इच्छाओं का संबंध होता है कर्मयोगी दूसरों की इच्छाएं (शस्त्रयुक्त) पूरी करके सेवा करके सुख पहुंचा के अपनी इच्छाओं से रहित हो जाता है जो दूसरों की शास्त्रोंचित इच्छाएं पूरी करता है। उसे अपनी इच्छाओं से दुखी नहीं होना पड़ता।

ज्ञान योगी इच्छओं का कारण अज्ञान को मिटाकर इच्छा रहित होना है। मुझे चाह रहित बना देंगे इच्छा के दो कारण हैं। एक तो पूर्व जन्म के संस्कार जो अर्न्तमन में पड़े रहते हैं। समय-समय पर वो प्रकट होते रहते हैं और उनमें इच्छाएं, वासनाएं उत्पन्न होती रहती हैं। पूर्वजन्म के भोगों के संस्कार हैं वो और दूसरा कारण है।

वर्तमान में किसी वस्तु व्यक्ति को हम देखकर बहुत महत्व देते हैं तो उसकी इच्छा पैदा हो जाती है। इसका मूल कारण है देहाभिमान। इच्छा किसी कारण से उत्पन्न हुई हो साधक को विवेक पूर्वक उसका परिणाम देखना चाहिए।

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