ॐ त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षरों में छुपा है ऐसा राज, जानकर दंग रह जाएंगे आप

Webdunia
सोमवार, 23 मई 2022 (12:32 IST)
Mahamrityunjaya : हिन्दू धर्म में दो मंत्रों को महत्वपूर्ण माना गया है- पहला 24 अक्षरों का गायत्री मंत्र और दूसरा 33 अक्षरों का महामृत्युंजय मंत्र। कहते हैं कि ॐ त्र्यम्बकं मंत्र के 33 अक्षर 33 देवताओं का प्रतीक है। इसमें से 8 वसु 11 रुद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति और 1 षटकार हैं। मान्यता है कि इन 33 देवताओं की संपर्ण शक्तियां महामृत्युंजय मंत्र में निहित है। आओ जानते हैं इस मंत्र के 33 अक्षरों के 33 देवताओं का रहस्य।
 
 
महामृत्युंजय मंत्र निरोगी रखकर आयुवृद्धि करता है। यह अकाल मृत्यु से भी बचाता है। इसका निरंतर जप करने से व्यक्ति सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति करता है।
 
ॐ- ईश्वर, त्रिशक्ति।
त्रि- सिर में स्थित ध्रुववसु प्राण का घोतक है।
यम- मुख में स्थित अध्ववरसु प्राण का घोतक है।
ब- दक्षिण कर्ण में स्थित सोम वसु शक्ति का घोतक है।
कम- वाम कर्ण में स्थित जल वसु देवता का घोतक है।
य- दक्षिण बाहु में स्थित वायु वसु का घोतक है।
जा- वाम बाहु में स्थित अग्नि वसु का घोतक है।
म- दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है।
हे- मणिबन्धत में स्थित प्रयास वसु है।
सु- दक्षिण हस्त के अंगुलि के मूल में स्थित वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है।
ग- दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित शुम्भ् रुद्र का घोतक है।
न्धिम्- बाएं हाथ के मूल में स्थित गिरीश रुद्र शक्ति का मूल घोतक है।
पु- वाम हस्त के मध्य भाग में स्थित अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है।
ष्टि- वाम हस्त के मणिबन्ध में स्थित अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है।
व- बाएं हाथ की अंगुलि के मूल में स्थित पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है।
र्ध- वाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है।
नम्- उरु मूल में स्थित कपाली रुद्र का घोतक है।
उ- यक्ष जानु में स्थित दिक्पति रुद्र का घोतक है।
र्वा- यक्ष गुल्फ् में स्थित स्थाणु रुद्र का घोतक है।
रु- चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित भर्ग रुद्र का घोतक है।
क - यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित धाता आदित्यद का घोतक है।
मि- वाम उरु मूल में स्थित अर्यमा आदित्यद का घोतक है।
व- वाम जानू में स्थित मित्र आदित्यद का घोतक है।
ब- वाम गुल्फा में स्थित वरुणादित्या का बोधक है।
न्धा- वाम पादंगुलि के मूल में स्थित अंशु आदित्यद का घोतक है।
नात्- वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित भगादित्य का बोधक है।
मृ- दक्ष पार्श्वि में स्थित विवस्वान (सूर्य) का घोतक है।
र्त्यो्- वाम पार्श्वि भाग में स्थित दन्दाददित्य् का बोधक है।
मु- पृष्ठै भगा में स्थित पूषादित्यं का बोधक है।
क्षी- नाभि स्थिल में स्थित पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है।
य- गुहय भाग में स्थित त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है।
मां- शक्ति स्वरूप दोनों भुजाओं में स्थित विष्णुय आदित्य का घोतक ।
मृ- कंठ भाग में स्थित प्रजापति का घोतक है।
तात्- हदय प्रदेश में स्थित अमित वषट्कार का घोतक है।
।।इति।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
 
मंत्र का अर्थ :
हम त्रिनेत्र को पूजते हैं,
जो सुगंधित हैं, हमारा पोषण करते हैं,
जिस तरह फल, शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है,
वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
 

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