जन्‍मदिवस पर विशेष

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हमारे देश को अँग्रेजों की गुलामी से मुक्‍त करवाने में उन्‍होंने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 23 जुलाई, 1856 में उनका जन्‍म हुआ। आज उनकी जयंती के अवसर पर प्रस्‍तुत है, उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग।

कठि न सवालो ं स े क्‍य ा डरन ा...
तिलक बचपन से ही बहुत साहसी और निडर थे। गणित और संस्‍कृत उनके प्रिय विषय थे। स्‍कूल में जब उनकी परीक्षाएँ होतीं, गणित के पेपर में तिलक हमेशा कठिन सवालों को हल करना ही पसंद करते थे। उनकी इस आदत के बारे में उनके एक मित्र ने कहा कि तुम हमेशा कठिन सवालों को ही क्‍यों हल करते हो? अगर तुम सरल सवालों को हल करोगे तो तुम्‍हें परीक्षा में ज्‍यादा अंक मिलेंगे।

इस पर तिलक ने जवाब दिया कि मैं ज्‍यादा-से-ज्‍यादा सीखना चाहता हूँ। इसलिए कठिन सवालों को हल करता हूँ। अगर हम हमेशा ऐसे काम ही करते रहेंगे, जो हमें सरल लगते हैं तो हम कभी कुछ नया नहीं सीख पाएँगे।

यही बात हमारी जिंदगी पर भी लागू होती है, अगर हम हमेशा आसान विषय, सरल सवाल और साधारण काम की तलाश में लगे रहेंगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएँगे। जीवन की हर कठिनाई को एक चुनौती की तरह लो, उसके सामने घुटने टेकने के बजाए उसे जीतकर दिखाओ।

उनके स्‍कूली जीवन की एक और यादगार घटना है। एक बार उनकी कक्षा के सारे बच्‍चे बैठे मूँगफली खा रहे थे। उन लोगों ने मूँगफली के छिल्‍के कक्षा में ही फेंक दिए और चारों ओर गंदगी फैला दी।

कुछ देर बाद जब उनके शिक्षक कक्षा में आए तो कक्षा को गंदा देखकर बहुत नाराज हो गए। उन्‍होंने अपनी छड़ी निकाली और लाइन से सारे बच्‍चों की हथेली पर छड़ी से दो-दो बार मारने लगे।

जब तिलक की बारी आई तो उन्‍होंने मार खाने के लिए अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। जब शिक्षक ने कहा कि अपना हाथ आगे बढ़ाओ तब उन्‍होंने कहा कि मैंने कक्षा को गंदा नहीं किया है। इसलिए मैं मार नहीं खाऊँगा।

उनकी बात सुनकर टीचर का गुस्‍सा और बढ़ गया। टीचर ने उनकी शिकायत प्राचार्य से कर दी। इसके बाद तिलक के घर पर उनकी शिकायत पहुँची और उनके पिताजी को स्‍कूल आना पड़ा।

स्‍कूल आकर तिलक के पिता ने बताया कि उनके बेटे के पास पैसे ही नहीं थे। वो मूँगफली नहीं खरीद सकता था। बाल गंगाधर तिलक अपने जीवन में कभी भी अन्‍याय के सामने नहीं झुके।

उस दिन अगर शिक्षक के डर से तिलक ने स्‍कूल में मार खा ली होती तो शायद उनके अंदर का साहस बचपन में ही समाप्‍त हो जाता।

इस घटना से हम सभी को एक सबक मिलता है। यदि गलती न होने पर भी हम सजा स्‍वीकार कर लें तो यह माना जाएगा कि गलती में हम भी शामिल थे।
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