शांति के दूत महाराजा अग्रसेन

Webdunia
* परम प्रतापी महाराजा अग्रसेन 
 
महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व प्रतापनगर के सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के यहां हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी थे। महाराज अग्रसेन आज भी इतिहास में परम प्रतापी, धार्मिक, सहिष्णु, समाजवाद के प्रेरक महापुरुष के रूप में उल्लेखित हैं। अग्रवाल शिरोमणि महाराजा अग्रसेन का स्मरण करना गंगाजी में स्नान करने के समान ही है। महाराजा अग्रसेन समानता पर आधारित आर्थिक नीति को अपनाने वाले संसार के प्रथम सम्राट थे। 
 
राज्य में बसने की इच्छा रखने वाले हर आगंतुक को, राज्य का हर नागरिक उसे मकान बनाने के लिए ईंट, व्यापार करने के लिए एक मुद्रा दिए जाने की राजाज्ञा महाराजा अग्रसेन ने दी थी। 
 
वे पिता की आज्ञा से नागराज कुमुट की कन्या 'माधवी' के स्वयंवर में गए। वहां अनेक वीर योद्धा राजा, महाराजा, देवता आदि सभा में उपस्थित थे। सुंदर राजकुमारी माधवी ने उपस्थित जनसमुदाय में से युवराज अग्रसेन के गले में वरमाला डालकर उनका वरण किया। इसे देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और वे महाराजा अग्रसेन से कुपित हो गए। जिससे उनके राज्य में सूखा पड़ गया। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा के कष्ट निवारण के लिए राजा अग्रसेन ने अपने आराध्य देव शिव की उपासना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने अग्रसेन को वरदान दिया तथा प्रतापगढ़ में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली लौटाई। 
 
धन-संपदा और वैभव के लिए महाराजा अग्रसेन ने महालक्ष्मी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया। महालक्ष्मीजी ने उनको समस्त सिद्धियां, धन-वैभव प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया और कहा कि तप को त्याग कर गृहस्थ जीवन का पालन करो, अपने वंश को आगे बढ़ाओ। तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।
 
इसी आशीर्वाद के साथ कोलपुर के नागराजाओं से अपने संबंध स्थापित करने को कहा जिससे राज्य शक्तिशाली हो सके। वहां के नागराज महिस्थ ने अपनी कन्या सुंदरावती का विवाह महाराज अग्रसेन के साथ कर दिया। उनके 18 पुत्र थे। उन्होंने 18 यज्ञ किए थे। यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। 17 यज्ञ पूर्ण हो चुके थे।

जिस समय 18वें यज्ञ में जीवित पशुओं की बलि दी जा रही थी, महाराज अग्रसेन को उस दृश्य को देखकर घृणा उत्पन्न हो गई। उन्होंने यज्ञ को बीच में ही रोक दिया और कहा कि भविष्य में मेरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यज्ञ में पशुबलि नहीं देगा, न पशु को मारेगा, न मांस खाएगा और राज्य का हर व्यक्ति प्राणीमात्र की रक्षा करेगा।
 
इस घटना से प्रभावित होकर उन्होंने क्षत्रिय धर्म को अपना लिया। महाराजा अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा थी। उनके शासन में अनुशासन का पालन होता था। जनता निष्ठापूर्वक स्वतंत्रता के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करती थी। महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। उन्होंने जिन जीवन मूल्यों को ग्रहण किया उनमें परंपरा एवं प्रयोग का संतुलित सामंजस्य दिखाई देता है। उन्होंने एक ओर हिन्दू धर्म ग्रथों में वैश्य वर्ण के लिए निर्देशित कर्मक्षेत्र को स्वीकार किया और दूसरी ओर देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नए आदर्श स्थापित किए। 
 
उनके जीवन के मूल रूप से तीन आदर्श हैं- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था, आर्थिक समरूपता एवं सामाजिक समानता। एक निश्‍चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु के हाथों में सौंप कर तपस्या करने चले गए।

देश में जगह-जगह अस्पताल, स्कूल, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि अग्रसेन के जीवन मूल्यों का आधार हैं और यह जीवन मूल्य मानव आस्था के प्रतीक हैं। ऐसी महान विभूति का जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था। जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। ऐसे कर्मयोगी लोकनायक महाराजा अग्रसेन को शत्‌-शत्‌ नमन‌।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सर्दियों में बहुत गुणकारी है इन हरे पत्तों की चटनी, सेहत को मिलेंगे बेजोड़ फायदे

2024 में ऑनलाइन डेटिंग का जलवा : जानें कौन से ऐप्स और ट्रेंड्स रहे हिट

ये थे साल 2024 के फेमस डेटिंग टर्म्स : जानिए किस तरह बदली रिश्तों की परिभाषा

सर्दियों में इन 4 अंगों पर लगाएं घी, सेहत को मिलेंगे गजब के फायदे

सर्दियों में पानी में उबालकर पिएं ये एक चीज, सेहत के लिए है वरदान

सभी देखें

नवीनतम

क्या होता है फेक पनीर, कहीं आप भी तो नहीं खा रहे नकली पनीर?

कॉफी लवर हैं तो कॉफी में इस चीज को मिलाकर पिएं, मिलेगा सेहत और स्वाद का बेहतरीन कॉम्बो

Workout Tips : वर्कआउट के दौरान डिहाइड्रेशन से बचाएगा ये सुपरफूड, जानिए कैसे

एगलेस चॉकलेट स्टार क्रिसमस केक कैसे बनाएं, अभी नोट करें रेसिपी

कवयित्री गगन गिल को ‘मैं जब तक आई बाहर’ के लिए साहित्‍य अकादमी सम्‍मान

अगला लेख