Chandra Shekhar Azad | क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का शहीद दिवस आज

Webdunia
जन्म - 23 जुलाई 1906
मृत्यु - 27 फरवरी 1931
 

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर 'आजाद' का जन्म 23 जुलाई 1906 को श्रीमती जगरानी देवी व पंडित सीताराम तिवारी के यहां भाबरा (झाबुआ, मध्यप्रदेश) में हुआ था। वे पंडित रामप्रसाद 'बिस्मिल' की हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में थे और उनकी मृत्यु के बाद नवनिर्मित हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी/ एसोसिएशन (HSRA) के प्रमुख चुने गए थे।
 
 
मात्र 14 वर्ष की आयु में अपनी जीविका के लिए नौकरी आरंभ करने वाले आजाद ने 15 वर्ष की आयु में काशी जाकर शिक्षा फिर आरंभ की और लगभग तभी सब कुछ त्यागकर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। 
 
1921 में मात्र 13 साल की उम्र में उन्हें संस्कृत कॉलेज के बाहर धरना देते हुए पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने उन्हें ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- 'आजाद'। मजिस्ट्रेट ने पिता का नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- स्वाधीनता। मजिस्ट्रेट ने तीसरी बार घर का पता पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया- जेल।
 
 
उनके जवाब सुनने के बाद मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 कोड़े लगाने की सजा दी। हर बार जब उनकी पीठ पर कोड़ा लगाया जाता, तो वे 'महात्मा गांधी की जय' बोलते। थोड़ी ही देर में उनकी पूरी पीठ लहूलुहान हो गई। उस दिन से उनके नाम के साथ 'आजाद' जुड़ गया।
 
आजाद को मूलत: एक आर्य समाजी साहसी क्रांतिकारी के रूप में ही ज्यादा जाना जाता है। यह बात भुला दी जाती है कि रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान के बाद की क्रांतिकारी पीढ़ी के सबसे बड़े संगठनकर्ता आजाद ही थे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सहित सभी क्रांतिकारी उम्र में कोई ज्यादा फर्क न होने के बावजूद आजाद की बहुत इज्जत करते थे। 
 
उन दिनों भारतवर्ष को कुछ राजनीतिक अधिकार देने की पुष्टि से अंग्रेजी हुकूमत ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक आयोग की नियुक्ति की, जो 'साइमन कमीशन' कहलाया। समस्त भारत में साइमन कमीशन का जोरदार विरोध हुआ और स्थान-स्थान पर उसे काले झंडे दिखाए गए। 
 
जब लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध किया गया तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बेरहमी से लाठियां बरसाईं। पंजाब के लोकप्रिय नेता लाला लाजपतराय को इतनी लाठियां लगीं कि कुछ दिनों के बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह और पार्टी के अन्य सदस्यों ने लालाजी पर लाठियां चलाने वाले पुलिस अधीक्षक सांडर्स को मृत्युदंड देने का निश्चय कर लिया।
 
 
चंद्रशेखर 'आजाद' ने देशभर में अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया और अनेक अभियानों का प्लान, निर्देशन और संचालन किया। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के काकोरी कांड से लेकर शहीद भगत सिंह के सांडर्स व संसद अभियान तक में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है। काकोरी कांड, सांडर्स हत्याकांड व बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह का असेंबली बमकांड उनके कुछ प्रमुख अभियान रहे हैं।
 
देशप्रेम, वीरता और साहस की एक ऐसी ही मिसाल थे शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद। 25 साल की उम्र में भारतमाता के लिए शहीद होने वाले इस महापुरुष के बारे में जितना कहा जाए, उतना कम है। अपने पराक्रम से उन्होंने अंग्रेजों के अंदर इतना खौफ पैदा कर दिया था कि उनकी मौत के बाद भी अंग्रेज उनके मृत शरीर को आधे घंटे तक सिर्फ देखते रहे थे। उन्हें डर था कि अगर वे पास गए तो कहीं चंद्रशेखर आजाद उन्हें मार ना डालें। 
 
एक बार भगतसिंह ने बातचीत करते हुए चंद्रशेखर आजाद से कहा, 'पंडितजी, हम क्रांतिकारियों के जीवन-मरण का कोई ठिकाना नहीं, अत: आप अपने घर का पता दे दें ताकि यदि आपको कुछ हो जाए तो आपके परिवार की कुछ सहायता की जा सके।' 
 
चंद्रशेखर सकते में आ गए और कहने लगे, 'पार्टी का कार्यकर्ता मैं हूं, मेरा परिवार नहीं। उनसे तुम्हें क्या मतलब? दूसरी बात, उन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है और न ही मुझे जीवनी लिखवानी है। हम लोग नि:स्वार्थ भाव से देश की सेवा में जुटे हैं, इसके एवज में न धन चाहिए और न ही ख्याति।' 
 
27 फरवरी 1931 को जब वे अपने साथी सरदार भगतसिंह की जान बचाने के लिए आनंद भवन में नेहरूजी से मुलाकात करके निकले, तब पुलिस ने उन्हें चंद्रशेखर आजाद पार्क (तब एल्फ्रैड पार्क) में घेर लिया। बहुत देर तक आजाद ने जमकर अकेले ही मुकाबला किया। उन्होंने अपने साथी सुखदेवराज को पहले ही भगा दिया था। 
 
आखिर पुलिस की कई गोलियां आजाद के शरीर में समा गईं। उनके माउजर में केवल एक आखिरी गोली बची थी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं यह गोली भी चला दूंगा तो जीवित गिरफ्तार होने का भय है। अपनी कनपटी से माउजर की नली लगाकर उन्होंने आखिरी गोली स्वयं पर ही चला दी। गोली घातक सिद्ध हुई और उनका प्राणांत हो गया। 
 
पुलिस पर अपनी पिस्तौल से गोलियां चलाकर 'आजाद' ने पहले अपने साथी सुखदेव राज को वहां से सुरक्षित हटाया और अंत में एक गोली बचने पर अपनी कनपटी पर दाग ली और 'आजाद' नाम सार्थक किया।

ALSO READ: लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद पर हिन्दी निबंध

सम्बंधित जानकारी

Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

मेडिटेशन करते समय भटकता है ध्यान? इन 9 टिप्स की मदद से करें फोकस

इन 5 Exercise Myths को जॉन अब्राहम भी मानते हैं गलत

क्या आपका बच्चा भी हकलाता है? तो ट्राई करें ये 7 टिप्स

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

अगला लेख