खजाने की खोज में खोई दुनिया

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
यह सच है कि दुनियाभर की जमीन, समुद्र या गुफाओं के अंदर अभी भी ऐसा खजाना दबा पड़ा है, जहां आधुनिक इंसान की नजर अभी तक नहीं गई है। सोना, चांदी, जेवरात, हीरे और मोती के अलावा कई महत्वपूर्ण धातुएं और सोने-चांदी के सिक्के भी इतने दबे पड़े हैं कि गिनते-गिनते जिंदगी गुजर जाए।

आपको ध्यान दिला दें कि दक्षिण भारत के पद्मनाभ मंदिर में छिपा था 5,00,000 करोड़ का खजाना है जिसे गिनने में आधुनिक मशीनें और कई लोगों की टीमें लगीं। फिर की तहखाने से पाए गए खजाने में से कुछ तहखाने को खोलकर देखने की मनाही थी, क्योंकि मंदिर प्रशासन और भक्तजनों को किसी अननोही घटना और अशुभ के होने का डर था।

पुट्टपर्थी के सत्य सांई बाबा के शयनकक्ष में तो मात्र दो-ढाई सौ करोड़ का खजाना मिला था तब अनेक लोगों की सांसें फूल गई थीं। अटलांटिक महासागर में खजाने की खोज करने वाली एक प्राइवेट कंपनी ने 200 टन चांदी की सिल्लियां ढूंढ़ निकाली थीं। आधुनिक इतिहास में समुद्र की तली में मिला यह अब तक मिला सबसे बड़ा खजाना है। इस खजाने की कीमत 23 करोड़ डॉलर आंकी गई है जिसमें से 80 प्रतिशत हिस्सा उस कंपनी का होगा जिसने इस खजाने की खोज की है।

लोगों को मिला खजाना : ऐसे भी किस्से देखे हैं कि किसी ने पुराना मकान खरीदा और उसे बनवाना शुरू किया। भाग्य कहें या परिश्रम वह अपने व्यवसाय में अमीर हो गया तो लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि खुदाई में उनको खजाना मिला होगा। ऐसे भी किस्से सुनने को मिले हैं कि लोगों को उनके घरों में सोने या चांदी का घड़ा मिला जिसमें गिन्नियां थीं।

आज भी अफ्रीका के जंगलों में लोग सोने और खजाने की खोज में जाते हैं। आज भी धरती के दबी पड़ी हैं कई प्राचीन सभ्यताएं और उनके खजाने। आज भी धरती के विभिन्न इलाकों में बेशुमार धन और दौलत दबी पड़ी है‍ जिसे ढूंढने के लिए लोग न मालूम क्या-क्या उपाय कर रहे हैं। रातोरात करोड़पति बनने के लिए कुछ लोग इसी रास्ते को अपनाते हैं।

 

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प्राचीनकाल से ही खजाना छिपान े की परंपरा या कहें प्रवृत्ति रही है। राजा-महाराजा, पंडित-पुरोहित और सेठजनों के पास जरूरत से ज्यादा धन-संपत्ति होती थी तो वे उन्हें दूसरे राज्य के राजा और लुटेरों से बचाने के लिए उसे कहीं छिपाकर रखते थे। इसके अलावा लुटेरे भी लूटी गई संपत्ति को आपस में बांटकर फिर उसे कहीं छिपाकर रख देते थे।

इसके अलावा आमजन भी अपनी संपत्ति को घर या खेत में गाड़ देते थे। कुछ तो आंगन में गाड़कर उसके ऊपर झाड़ उगा देते या गेहूं की खंडार बना देते।

जब भारत में विदेशियों का आक्रमण बढ़ने लगा तब राजाओं और लोगों ने अपनी धन-संपत्ति को सुरक्षित स्थान पर रखना शुरू किया। ईरान और तुर्की के मुस्लिम आक्रमणकारी यहां का सोना और स्त्रियां लूटकर ले जाते थे। इसके लिए वे ऐसे स्थान और राजाओं के इलाके चुनते थे, जो कमजोर होते थे।

बाद में जब नवाबों का काल शुरू हुआ तो मुगलों में इधर-उधर से एकत्रित धन-संपत्ति और हीरे-जवाहरातों को ‍अंग्रेजों से छिपाने का प्रचलन बढ़ा। दूसरे विश्वयुद्ध के समय जापान की बमबारी के भय से कई नवाबों और दूसरे लोगों ने भूमिगत कमरे और सुरंगें बनाई थीं, जहां वे अपने खजाने को छिपाकर रखते थे।

अंग्रेजों के काल में सबसे ज्यादा नजर सोना, चांदी, हीरे और मोती पर रखी जाती थी। उन्होंने सभी कीमती धा‍तुओं को सरकार की देखरेख में और उसका लेखा-जोखा रखने के आदेश दिए थे जिसके चलते नवाबों और राजाओं सहित सभी ने अपने-अपने खजाने को गाड़ना या छिपाना शुरू कर दिया था।

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राजा तो अपने खजाने को छिपान े के लिए बाकायदा बड़ी-बड़ी सुरंगें या तहखाने बनाते थे। कुछ तो लंबी-चौड़ी बावड़ियां बनाते थे जिसमें पानी के बहुत अंदर जाने के बाद नीचे गुफा या सुरंगों का निर्माण करते थे, जहां वे सोना चांदी और हीरे जेवरात रखते थे और फिर बाहर से उस सुरंग को बाद कर देते थे। आज भी ऐसी कई बावड़ियां हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता।

सोचिए, सुनसान और वीराने में बावड़ी की जरूरत क्या? एक बावड़ी से दूर 20-25 किलोमीटर पर दूसरी बावड़ी होती थी, जो पहली से सुरंग के माध्यम से जुड़ी रहती थी। यह खजाना छिपाने और दूसरे राजाओं के आक्रमण के बाद भागने के काम आती थी।

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हिन्दू समाज के बंजारा समुदाय को 'खानाबदोश' मानवों का समुदाय कहा जाता है, जो एक ही स्थान पर बसकर जीवन-यापन करने के बजाय एक से दूसरे स्थान पर निरंतर भ्रमणशील रहते हैं। भारत में वर्तमान में बंजारा समाज कई प्रांतों से निवास करता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश तथा मप्र प्रांतों में बंजारा समाज की संख्या अधिक है। इस समाज को दुनिया के बहुत से रहस्यों का पता रहता है।

बंजारा समुदाय के लोग और आदिवासियों के पास भी बहुत मात्रा में सोना, चांदी और जेवरात होते थे। वे उनकी सुरक्षा के लिए अपने डेरे से कहीं दूर जमीन में गाड़ देते थे और उस स्थान पर अपनी कोई 'निशानी' बना देते थे या कुछ लोग उक्त स्थान पर किसी 'देवता' की स्थापना कर देते या पीपल या बड़ का झाड़ लगा देते थे। पहले उनकी महिलाओं को सोने से लदी देखा जा सकता था, लेकिन अब नहीं।

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धन की चौकी : बंजारा या आदिवासी समाज अपने धन को जमीन में गाड़ने के बाद उस जमीन के आस-पास तंत्र-मंत्र द्वारा 'नाग की चौकी' या 'भूत की चौकी' बिठा देते थे जिससे कि कोई भी उक्त धन को खोदकर प्राप्त नहीं कर पाता था। और जिस किसी को उनके खजाने के पता चल जाता और वह उसे चोरी करने का प्रयास करता तो उसके सामना नाग या भूत से होता था।

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कहते हैं पिंडारियों के पास अथाह सोना था, जो उन्होंने व्यापारियों से लूटा था। भारतीय इतिहास की बीती दो सदियां लुटेरे पिंडारी या ठगों की करतूतों से रंगी हुई हैं। पिंडारियों का एक बड़ा वर्ग लूटपाट और ठगी करने लगा था।

ये ठग पीढ़ी-दर-पीढ़ी व्यापारियों और यात्रियों के काफिलों को लूटते रहे। मुखबिरों के जरिए लुटेरों और ठगों को इनके लौटने की राह, ठिकाना और माल की खबर लग जाती थी। लूटा हुआ सोना-चांदी को ये लोग खेत में, सुनसान जगहों पर या किसी मंदिर के पास गाड़ देते थे। गिन्नियां, कपड़े और खाने-पीने का सामान खुद अपने पास रखते थे।

करीब दो सदी पहले तक ठगों का इतना आतंक था कि अंग्रेजों को उनके खात्मे के लिए अलग दस्ता तैनात करना पड़ा था जिसका नेतृत्व एक आला अंग्रेज अफसर विलियम स्लीमैन करते थे। इतिहास में स्लीमैन का नाम इसलिए हमेशा याद रखा जाएगा, क्योंकि उन्होंने समूचे मध्योत्तर भारत को इन लुटेरों और ठगों के जाल से मुक्ति दिलाई थी। 17वीं सदी के उत्तरार्ध से लेकर 18वीं सदी तक इनका आतंक रहा। खासकर वारेन हेस्टिंग्ज को इनका अंत करने का श्रेय जाता है।

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पहले सिकंदर आया था फिर चंगेज खां इसके बाद भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमणकारी था मुहम्मद बिन कासिम। उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों और लुटेरों की फौज की फौज भारत में घुसी और भारत को तहस-नहस कर लूट ले गई। कहा जाता है कि सोमनाथ का मंदिर मोहम्मद गजनवी ने लूटा था। उसमें ढेर सारा सोना था। बाबर भी यहां लूटने ही आया था। औरंगजेब, मुहम्मद गौरी, तैमूरलंग ने लूट के साथ-साथ यहां के लोगों को जबरन मुसलमान भी बनाया।
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