इलाज नहीं मिलने पर कई बार डॉक्टर कुछ नया प्रयोग करते हैं, वो प्रयोग बाद में इलाज बन जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ डिप्रेशन की शिकार इस महिला के साथ।
सराह नाम की महिला पिछले कई सालों से डिप्रेशन की शिकार थी, डॉक्टर्स की जब सारी कोशिश बेकार हो रही थी। इसके बाद डॉक्टरों ने कुछ ऐसा कर डाला जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था।
करीब 36 साल की सराह भी डीप डिप्रेशन की शिकार थी। लेकिन कोई भी मनोवैज्ञानिक उनकी बीमारी का इलाज नहीं दे पा रहा था। उन्होंने कई डॉक्टरों को दिखाया, कई तरह की मेडिसिन खाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
सराह मानसिक समस्याओं से कई सालों तक जूझती रहीं। उनके ट्रीटमेंट के लिए एंटी डिप्रेशनेट्स, इलेक्ट्रोकॉन्वल्सिव थेरेपी और कई तरीके तरीके अपनाए गए।
जब मनोवैज्ञानिकों को उनकी बीमारी का इलाज नहीं मिला तो आखिरकार डॉक्टर्स ने एक प्रयोग किया। डॉक्टर्स ने उनके दिमाग को ही बदल दिया, यह प्रयोग बहुत रिस्की था, लेकिन इसकी वजह से सराह को पिछले एक साल में काफी राहत महसूस हुई है और वे पहले की तरह अपनी ज़िंदगी काफी बेहतर तरीके से जी पा रही हैं।
BBC मीडिया से बात करते हुए खुद सराह ने बताया कि उनकी ज़िंदगी का एक-एक दिन उनके लिए जीना मुश्किल हो रहा था। डिप्रेशन के कारण वो बिस्तर से उठना भी नहीं चाहती थीं। इसी बीच डॉक्टर्स ने पूरा एक दिन लगाकर उनके दिमाग में ब्रेन इम्प्लांट कर दिया। इस प्रक्रिया में सराह के सिर में छेद किया गया। इसके बाद उनकी दायीं खोपड़ी के नीचे एक पल्स जेनरेटर उनकी हड्डी में लगाया गया।
डॉक्टर कैथरीन ने बताया कि सराह के दिमाग में वेंट्रल स्ट्रैटम नाम की एक जगह मिली, जहां से उसकी डिप्रेशन की भावना लगातार बढ़ रही थी। दिमाग में ही एक एक्टिविटी एरिया भी ढूंढा गया, जहां से ये पता चल सकता था कि उसका डिप्रेशन कब सबसे ज्यादा बढ़ने वाला है। अब सराह के दिमाग में लगाया गया इम्प्लांट उसके दिमाग की गतिविधियों पर नज़र रखता है। जब भी उसको डिप्रेशन महसूस होता है, डॉक्टर बाहरी तौर पर उसकी इम्प्लांट डिवाइस को सक्रिय कर देते हैं और वो सकारात्मक महसूस करने लगती हैं।
इस डिवाइस को काम करने में कुल 15 मिनट लगते हैं। सराह पहली मरीज़ हैं, जिसके दिमाग में वैज्ञानिकों ने इम्प्लांट किया है। डिप्रेशन के मरीज़ों के लिए यह तरीका आगे चलकर इलाज में मदद कर सकता है।