जब 8 भारतीयों को उठाकर ले गए थे एलियंस, सिर्फ 2 ही लौट पाए

WD Feature Desk
गुरुवार, 9 जनवरी 2025 (17:59 IST)
Secrets of the Himalaya Alien: दुनियाभर के वैज्ञानिकों में इस वक्त दूसरे ग्रह के प्राणियों का धरती पर आने को लेकर शोध बढ़ गया है। हर देश का वैज्ञानिक इस खोज में लगा हुआ है कि क्या सचमुच अपने देश भी एलियंस आए थे और क्या किसी ने इसे देखा है? विश्वभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन जगहों में से एक हिमालय है। यदि हम अंतरिक्ष से देखेंगे तो धरती पर दो चीजें सबसे पहले नजर आएगी। पहला विशालकाय हिमालय और दूसरा प्रशांत महासागर। इसके बाद उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव और धरती के जंगल। तमाम सोशल मीडिया और मीडिया खबरों को खंगालने के बाद हमें भारत के हिमालय को लेकर चौंकाने वाली जानकारी मिली। आओ जानते हैं कि क्या है हिमालय में एलियंस के आने का रहस्य।ALSO READ: भारत में एलियंस के उतरने के 7 स्थान, 10 चौंकाने वाली बातें
 
हिमालय में रहते हैं एलियंस? 
1. यहां कैलाश पर्वत, मानसरोवर, देवात्म हिमालय और ज्ञानगंज को रहस्यमयी स्थान माना जाता है। विश्वभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन जगहों में से एक हिमालय है। भारतीय सेना और वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार नहीं करते लेकिन वे अस्वीकार भी नहीं करते हैं। हिस्ट्री चैनल्स की एक सीरिज में इसका खुलासा किया गया।
 
2. मीडिया खबरों के अनुसार भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की यूनिटों ने सन् 2010 में जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उड़ने वाली अनजान वस्तुओं (यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी थी, लेकिन बाद में इस खबर को दबा दिया गया, लेकिन सोशल मीडिया पर इस खबर की खासी चर्चा रही। यह सच है या झूठ यह कहना कठिन है।ALSO READ: क्या एलियंस ने बनाया था एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर? जानिए क्या है कैलाश मंदिर का रहस्य
 
पहली घटना :  20 अक्टूबर 2011, सुबह 4.15 बजे, रात की ड्यूटी कर रहे भारतीय सेना के एक जवान ने तश्तरी के आकार वाला चमकती रोशनी से आच्छादित एक अंतरिक्ष यान सीमा रेखा के नजदीक एक सीमांत बस्ती में उतरते देखा। दो प्रकाश उत्सर्जक करीब 3 फुट ऊंचे जीव, जिनमें प्रत्येक के 6 पैर और 4 आंखें थीं। यान के किनारे से एक ट्यूब से उभरे वो जवान के पास पहुंचे और अंग्रेजी के भारी-भरकम उच्चारण के साथ जोर्ग (Jorg) ग्रह का रास्ता पूछा। हालांकि इस घटना में कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता लेकिन सोशल मीडिया में यह खासा चर्चा का विषय बना रहा।
 
दूसरी घटना : एक अन्य सूचित घटना में 15 फरवरी दोपहर तकरीबन 2.18 पर भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और 8 भारतीय कमांडो, 1 कुत्ते, 3 पहाड़ी बकरियों और 1 बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले जाने से पहले वह गायब हो गई। हालांकि कुछ मानते हैं कि वह ले जाने में कामयाब नहीं हो पाई। कहा जाता है कि बाद में 6 कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल से बचाया गया। 2 लापता हैं। बचे हुए लोगों को यह घटना याद नहीं। इस घटना का गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नजदीक भेड़ चरा रहा था।
तीसरी घटना : 22 जून को शाम 5.42 बजे एक बड़ा अंडाकार अंतरिक्ष यान उच्च हिमालय में गायब होने से पहले अस्थायी रूप से चीन की तरफ एक सैन्य पड़ाव के ऊपर मंडराता नजर आया, ऐसा कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा। रिपोर्टों में उद्धृत किया गया कि वो करीब एक बड़े वायुयान के माप का था, जो चमकते चक्रों और पीछे घसीटते कपड़ों से आच्छादित था।
 
आईटीबीपी की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों का मानना है कि ये गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी) हैं और न ही ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं। ड्रोन पहचान में आ जाता है और इनका अलग रिकॉर्ड रखा जाता है। यह वह नहीं था। सेना ने 2011 जनवरी से अगस्त के बीच 99 चीनी ड्रोन देखे जाने की रिपोर्ट दी है। इनमें 62 पूर्वी सेक्टर के लद्दाख में देखे गए थे और 37 पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश में। इनमें से तीन ड्रोन लद्दाख में चीन से लगी 365 किमी लंबी भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए थे, जहां आईटीबीपी की तैनाती है।ALSO READ: क्या हम कभी एलियन भाषा को समझ पाएंगे?
 
पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गए हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चीन अधिकृत अक्साई चिन के बीच 86,000 वर्ग किमी में फैले लद्दाख में सेना की भारी तैनाती है। इस साल लगातार आईटीबीपी के ऐसे प्रकाश पुंज देखे जाने की खबर से सेना की लेह स्थित 14वीं कोर में हलचल मच गई थी। जो प्रकाश पुंज आंखों से देखे जा सकते थे, वे रडार की जद में नहीं आ सके। इससे यह साबित हुआ कि इन पुंजों में धातु नहीं है। स्पेक्ट्रम एनालाइजर भी इससे निकलने वाली किसी तरंग को नहीं पकड़ सका। इस उड़ती हुई वस्तु की दिशा में सेना ने एक ड्रोन भी छोड़ा, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसे पहचानने में कोई मदद नहीं मिली। ड्रोन अपनी अधिकतम ऊंचाई तक तो पहुंच गया लेकिन उड़ते हुए प्रकाश पुंज का पता नहीं लगा सका। 
भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) पीवी नाइक कहते हैं कि हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें पता लगाना होगा कि उन्होंने कौन-सी नई तकनीक अपनाई है। भारतीय वायुसेना ने 2010 में सेना के ऐसी वस्तुओं के देखे जाने के बाद जांच में इन्हें ‘चीनी लालटेन’ करार दिया था। पिछले एक दशक के दौरान लद्दाख में यूएफओ का दिखना बढ़ा है। 2003 के अंत में 14वीं कोर ने इस बारे में सेना मुख्यालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। सियाचिन पर तैनात सैन्य टुकड़ियों ने भी चीन की तरफ तैरते हुए प्रकाश पुंज देखे हैं, लेकिन ऐसी चीजों के बारे में रिपोर्ट करने पर हंसी उड़ने का खतरा रहता है।-FB
 

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