सड़क किनारे जलते थे चिमनी लैंप

अपना इंदौर
इंदौर में नगर पालिका की स्‍थापना के बाद ही उसे नगर में स्वच्छता व प्रकाश व्यवस्था का दायित्व सौंप दिया। था। नगर की अधिकांश सड़कें 1884-85 तक की कच्ची थीं। उन पर दिनभर वाहनों के आवागमन से धूल उड़ा करती थी। इस धूल को रोकने के लिए इन कच्ची सड़कों पर प्रतिदिन पानी छिड़का जाता था।
 
नगर की इन सड़कों पर रात्रि में प्रकाश करने के लिए चिमनी वाले लैंप लगाए गए थे। इन लैंपों को प्रतिदिन सायंकाल साफ किया जाता और उनके कांचों को खूब चमकाया जाता था। रातभर चिमनी के जलने से जो धुआं उठता था, वह कांच पर शेष रह जाता तो संबंधित कर्मचारी दंडित किया जाता था।

ऐसे लैंपों में इतना ही तेल भरा जाता था कि वह रातभर जलता रहे और प्रात: अपने आप बुझ जाए। 1884-85 की सेंट्रल इंडिया एजेंसी रिपोर्ट में ऐेसे लैंपों की नगर भर में 253 संख्या बताई गई है। प्रकाश की यह व्यवस्था 1903 ई. तक चलती रही। 1903 ई. के पश्‍चात स्ट्रीट लाइट के लिए गैस बत्तियों का उपयोग किया जाने लगा जिनका प्रकाश अपेक्षाकृत अधिक था किंतु यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं चल पाई।
 
होलकर महाराजा ने इंदौर नगर को विद्युत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए एक विद्युतगृह की स्थापना करवाई (जिसे लोग आज भी जूना पॉवर हाउस कहते हैं)। इसके निर्माण व उपकरणों पर राज्य द्वारा 2 लाख 71 हजार 64 रु. का खर्च किया गया। इस विद्युतगृह से उत्पन्न बिजली का उपयोग 1906 ई. से स्ट्रीट लाइट के लिए किया जाने लगा।

नगर भर के प्रमुख मार्गों पर लकड़ी के खंभे गाड़कर बिजली के लट्टू लगाए गए। इन्हें जलते हुए देखना नगरवासियों के लिए बड़े कौतूहल का विषय था। रात्र‍ि में निश्चित अ‍वधि के बाद इन लट्टुओं को बुझा दिया जाता था। 1914 में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई और सारी रात विद्युत प्रकाश रखा जाने लगा। इस प्रकाश व्यवस्था के लिए नगर पालिका राज्य को प्रतिवर्ष 3000 रु. का भुगतान करती थी। मोहल्लों की कच्ची सड़कों पर पानी छींटने व गलियों में चिमनी वाले लैंप जलाने की परंपरा तो 1950-55 तक जारी रही।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

इंदौर के समस्त महलों का सिरमौर लालबाग पैलेस

इंदौर का प्राचीनतम गणेश मंदिर, खतों के आईने में

इंदौर नगर की महत्वपूर्ण इमारतें

इंदौर नगर की होलकरकालीन प्रमुख छत्रियां

इंदौर में ऐसे आई होलकर राज्य की रेलवे

गांधी दूल्हा 1 लाख के दहेज के लालच में बड़वाह से मोटर में दौड़ पड़े!

जब सिंधिया की फौज ने इंदौर को लूटा

सन् 1784 में सराफा में डाकुओं ने डाका डाला था

तात्या सरकार : राजसी गुणों-अवगुणों की मिसाल

इंदौर की पहचान दानवीर राव राजा सर सेठ हुकुमचंद

अगला लेख