काबुल समेत अफगानिस्तान के ज्यादातर इलाकों पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है, लेकिन पंजशीर वो इलाका है जिस पर तालिबानियों का साया भी नहीं जा सकता। इसके पीछे कारण है पंजशीर के लड़ाके जो अहमद मसूद के नैतृत्व में अपने देश से तालिबानियों को भगाने के लिए लड़ रहे हैं।
पंजशीर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा एक ऐसा प्रांत है जहां से तालिबान के खिलाफ विद्रोह की आवाज बुलंद हो रही है। अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और बल्ख प्रांत के पूर्व गवर्नर अता मुहम्मद नूर इस विद्रोह का नेतृत्व कर रहे हैं।
ऐसे में जानना जरूरी है कि कौन थे अहमद शाह मसूद जिनका बेटा अहमद मसूद आज तालिबान से ठीक उसी तरह लड़ रहा है, जैसे वे खुद कभी लड़े थे।
अहमद शाह मसूद अफगानिस्तान के वो हीरो थे जिन्हें रूस और तालिबान कभी नहीं हरा पाए। अहमद शाह मसूद ताजिक समुदाय से ताल्लुकात रखने वाले सुन्नी मुसलमान थे। इंजीनियरिंग किए हुए अहमद शाह मसूद साम्यवाद के कट्टर आलोचक थे। 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया तब उन्होंने विद्रोही ताकतों की कमान संभाली और एक के बाद एक कई सफलताएं भी हासिल की।
सोवियत सेना ने इन्हें पकड़ने के लिए पंजशीर में नौ बार अभियान भी चलाए, लेकिन किसी में भी उन्हें सफलता नहीं मिली। सोवियत सैनिक जो भी असलहे और गोला-बारूद मंगवाते थे उन्हें मसूद के लड़ाके बारूदी सुरंग बिछाकर उड़ा देते थे। सोवियत सेना को करारी शिकस्त देने के कारण अहमद शाह मसूद को पंजशीर का शेर की उपाधि दी गई। सोवियत सेना के जाने के बाद पेशावर समझौते के तहत अहमद शाह मसूद को 1992 में अफगानिस्तान का रक्षा मंत्री बनाया गया।
1995-96 में जब काबुल को तालिबान ने पूरी तरह से घेर लिया, तब अहमद शाह मसूद ने कट्टर इस्लामी विचारधारा को ठुकराकर खिलाफत की आवाज बुलंद की। वे संयुक्त इस्लाम मोर्चे के नेता बन गए। इसे ही नॉर्दन एलायंस का नाम दिया गया। उनके साथ मजार-ए-शरीफ का शेर के नाम से मशहूर अब्दुल रशीद दोस्तम भी थे। इन लोगों ने तालिबान के चार गुना छोटी सेना होने के बावजूद ऐसी लड़ाई लड़ी जिसे आज भी याद किया जाता है। तालिबान को उस समय भी पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त था।
1999 में जब तालिबान ने अहमद शाह मसूद की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया तब वे वापस अपने गढ़ पंजशीर लौट गए। तालिबान से पहले पंजशीर पहुंचने के लिए लगभग पांच लाख लोग पूरी रात पैदल चलते रहे। बाद में उन्होंने पंजशीर पहुंचकर वहां टनल को विस्फोटकों के उड़ा दिया। इतना ही नहीं वे पूरे इलाके में घूम-घूमकर खुद ही लोगों को तालिबान के खिलाफ लड़ाई के लिए जागरूक करते रहे।
अफगानिस्तान के वर्तमान उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह, तालिबान के साथ सरकार के वार्ता टीम के प्रमुख अब्दुला अब्दुल्ला अहमद शाह मसूद के खास थे। 1960 में जन्मे अब्दुल्ला अब्दुल्ला का संबंध जनजातीय ताजिक समुदाय से है। पेशे से डॉक्टर अब्दुल्ला अब्दुल्ला अस्सी के दशक में अहमद शाह मसूद के करीब आए। नॉर्दन एलायंस का शासन में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया।
सोवियत संघ के हमले के समय अहमद शाह मसूद और अलकायदा चीफ ओसामा बिन लादेन एक ही उद्देश्य के लिए साथ लड़े। जब सोवियत सेनाओं की वापसी हो गई, तब लादेन ने तालिबान और मसूद के बीच दोस्ती करवाने की कई कोशिशें की। ओसामा की नजदीकी शुरू से ही तालिबान के साथ थी, इसलिए वह मसूद के खिलाफ हो गया। सितंबर 2001 में पत्रकार बनकर आए अलकायदा के दो आत्मघाती हमलावरों के हमले में उनकी मौत हो गई।