चीन। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से NATO के सभी देश एक दूसरे के करीब आ गए हैं। पिछले कुछ सालों में इस संगठन की गतिविधियों को लेकर एशिया-प्रशांत क्षेत्रीय देशों ने कई सवाल उठाए हैं। लेकिन, रूस से मिल रही चुनौतियों ने NATO के अंतर्गत आने वाले पश्चिमी देशों को और अधिक एकजुट करके रख दिया है। इसके अलावा रूस और चीन के मजबूत संबंधों ने पश्चिमी देशों को अपनी सुरक्षा के विषय में सोचने पर मजबूर कर दिया है। इन परिस्थितियों के चलते कई देश NATO की सदस्यता लेना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर NATO भी रूस को कड़ी टक्कर देने के लिए अपना दायरा बढ़ाना चाहता है।
क्या है NATO?
NATO या नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन एक सैन्य गठबंधन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को की गई थी। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में स्थित है। NATO बेल्जियम, कनाडा, इटली, फ्रांस, डेनमार्क, अमेरिका, ब्रिटेन और पुर्तगाल आदि 30 देशों का संगठन है, जो सामूहिक सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है। NATO के अंतर्गत आने वाले देश बाहरी आक्रमण की स्थिति में एक दूसरे को आर्थिक और सैन्य सहयोग प्रदान करने के लिए सहमत होंगे। वर्तमान में NATO के पास करीब 35 लाख से ज्यादा सैनिक मौजूद हैं।
जापान और दक्षिण कोरिया के NATO में जुड़ने की अटकलें:
ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब जापान और दक्षिण कोरिया NATO के शिखर सम्मलेन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। इस पर उत्तर कोरिया ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि दक्षिण कोरिया का NATO के शिखर सम्मलेन में हिस्सा लेना 'एशियाई NATO' को बढ़ावा देने जैसा है। वहीं चीन भी इस बात से नाखुश है कि अगर दक्षिण कोरिया और जापान आगे चलकर NATO के सैन्य गठबंधन का हिस्सा बन गए तो अमेरिका चीन के पड़ोस में डेरा डाल लेगा। और ऐसा चीन सपने में भी नहीं होता देखना चाहेगा।
दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा तो NATO है - चीन
चीनी मीडिया इन दोनों देशों के इस कदम से बौखलाया हुआ है। चीनी विदेश मंत्रालय ने तो NATO को ही दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ताओं का कहना है कि पश्चिमी देश हमारे द्वारा दी जा रही चुनौती को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। NATO वर्तमान में दुनियाभर के देशों के लिए सबसे बड़े खतरा है और आगे चलकर एक नए युद्ध को बुलावा देने में लगा हुआ है।