104 साल के वैज्ञानिक को मिली आखिर मृत्यु

Webdunia
गुरुवार, 10 मई 2018 (17:32 IST)
ऑस्ट्रेलिया के 104 साल की उम्र के वैज्ञानिक डेविड गुडऑल का आज स्विट्जरलैंड में निधन हो गया। गुडऑल ने खुद मरने की इच्छा व्यक्त की थी। डेविड गुडऑल बॉटनी और इकोलॉजी के प्रख्यात वैज्ञानिक हैं। उन्हें कोई बड़ी बीमारी नहीं थी लेकिन वो अपने जीवन का सम्मानजनक अंत चाहते थे।

 
 
पिछले बुधवार को 104 साल के वैज्ञानिक डेविड गुडऑल ने ऑस्ट्रेलिया में अपने घर से विदा ली थी और अपनी जिंददगी खत्म करने के लिए दुनिया के दूसरे छोर के लिए रवाना हो गए थे। बीते महीने अपने जन्मदिन के मौक़े पर उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन को बताया था, "मुझे इस उम्र में पहुंचने का पछतावा है। मैं ख़ुश नहीं हूं, मैं मरना चाहता हूं। ये वाकई में दुखी होने वाला तो नहीं है लेकिन अच्छा होता अगर इसे टाला जा सकता।"

 
 
2 मई बुधवार को ऑस्ट्रेलिया से बाहर अपनी यात्रा पर निकले डॉ. गुडऑल के साथ उनकी दोस्त कैरल ओ'नील भी थीं, जो असिस्टेड डाइंग एडवोकेसी समूह एक्सिट इंटरनेशनल की प्रतिनिधि हैं। लंबे वक्त तक चले विवाद के बाद, बीते साल ऑस्ट्रेलिया में एक राज्य में 'असिस्टेड डाइंग' को कानूनी मान्यता दे दी थी। डॉ. गुडऑल का कहना है कि वह स्वैच्छिक रूप से अपने जीवन को ख़त्म करने के लिए स्विट्जरलैंड में एक क्लिनिक में जाएंगे। हालांकि उन्हें ऐसा करने के लिए ऑस्ट्रेलिया छोड़ने का मलाल था।
 
स्विट्जरलैंड ने 1942 से 'असिस्टेड डेथ' को मान्यता दी हुई है। कई अन्य देशों ने स्वेच्छा से अपने जीवन को ख़त्म करने के कानून तो बनाए हैं लेकिन इसके लिए गंभीर बीमारी को शर्त के रूप में रखा है।
 
क्या कारण था इच्छामृत्यु लेना का?
डॉ. गुडऑल के अपनी ज़िंदगी को ख़त्म करने का फ़ैसला बीते महीने हुई एक घटना के बाद लिया। एक दिन वो अपने घर पर गिर गए और दो दिन तक किसी को नहीं दिखे। इसके बाद डॉक्टरों ने फ़ैसला किया कि उन्हें 24 घंटे की देखभाल की ज़रूरत है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होना होगा। कैरल ओ'नील कहती हैं, "वे स्वतंत्र व्यक्ति रहे हैं। हर समय अपने आसपास किसी को वो नहीं चाहते, वो नहीं चाहते कि कोई अजनबी उनकी देखभाल करे।"
 
कौन है गुडऑल?
लंदन के पैदा हुए डेविड गुडऑल कुछ हफ्ते पहले तक पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में अपने एक छोटे से फ्लैट में अकेले रहते थे। उन्होंने 1979 में नौकरी छोड़ दी थी लेकिन इसके बाद वो लगातार फील्ड वर्क में लगे रहे। हाल के सालों में उन्होंने 'इकोलॉजी ऑफ़ द वर्ल्ड' नाम की 30 वॉल्यूम की पुस्तक सिरीज़ का संपादन किया था। 102 साल की उम्र में 2016 में उन्होंने पर्थ के एडिथ कोवान विश्वविद्यालय में परिसर में काम करने के संबंध में क़ानूनी लड़ाई जीती। यहां वो अवैतनिक मानद रिसर्च असोसिएट के तौर पर काम कर रहे थे।

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