सौरमंडल से बाहर जीवन? आकाशगंगा के कई ग्रहों पर मिले जल के संकेत...

राम यादव
हमारी आकाशगंगा में जल-समृद्ध ग्रहों का होना अब तक के अनुमानों की तुलना में कहीं अधिक सामान्य बात हो सकती है। खगोलविदों को नई गणनाओं से इसके संकेत मिले हैं। हालांकि, यह ज़रूरी नहीं है कि जहां पानी हो, वहां किसी न किसी रूप में जीवन भी अवश्य होना चाहिए।
 
यह सनसनीखेज़ खोज अमेरिका में शिकागो विश्वविद्यालय के दो वैज्ञानिकों ने मिलकर की है। रफ़ाएल ल्यूक और एनरिक पाले नाम के दोनों वैज्ञानिकों ने विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में लिखा है कि हमारी आकाशगंगा में वास्तव में आश्चर्यजनक संख्या में ऐसे खगोलीय पिंड हैं, जिन पर बड़ी मात्रा में पानी है। यह पानी कभी-कभी तो इन ग्रहों के आधे द्रव्यमान के बराबर तक की मात्रा में भी हो सकता है।
 
अंकड़ों का जोड़-तोड़ :  हालांकि, दोनों शोधकर्ताओं ने अकाशगंगा में हमारे सौरमंडल से बाहर वाले बाह्यग्रहों (एक्सो-प्लैनेट) पर पानी होने को सीधे तौर साबित नहीं किया है। इसके बदले, उन्होंने इन ग्रहों के व्यास (डाइमिटर) और उनकी द्रव्यराशि (मास) के आधार पर उनकी बनावट का परिकलन (कैल्क्युलेशन) किया है। परिकलन में इस बात को भी शामिल किया है कि ये ग्रह, सूर्य जैसे अपने जिन तारों की परिक्रमा करते हैं, इन ग्रहों की छाया पड़ने पर उन तारों की चमक में कैसे और कितने बदलाव नज़र आते हैं। यह भी देखा कि ग्रहों की अपनी परिक्रमा कक्षाओं में भी क्या कोई बदलाव दिखाई पड़ते हैं। इन सारे पहलुओं को विधिवत मापा गया। 
 
अलग-अलग ग्रहों के इस प्रकार एकत्रित तथ्यों और आंकडों का विश्लेषण खगोल विज्ञान में आम बात है। ल्यूक और पाले ने कई आकाशीय पिंडों के एक पूरे समूह का अध्ययन किया। अध्ययन में शामिल 34 बाह्यग्रह, हमारे सौरमंडल के नेप्चून ग्रह से छोटे थे। वे लाल बौने (रेड ड्वार्फ़) कहलाने वाले तारों की परिक्रमा करते हैं।
 
लाल बौने कैसे तारे हैं : लाल बौने ही तारों का सबसे सामान्य वर्ग हैं। वे हमारे सूर्य की अपेक्षा कहीं छोटे, हल्के और कम चमकीले होते हैं। उनकी चमक हमारे सूर्य की चमक के 0.01 प्रतिशत से ले कर 5 प्रतिशत तक के बराबर ही होती है। उनकी द्रव्यराशि कम होने के कारण उनके भीतर हाइड्रोजन के जल कर हीलियम बनने की क्रिया, हमारे सूर्य जैसे बड़े तारों की अपेक्षा धीमी होती है, इसीलिए उनकी चमक भी कम होती है।
 
अनुमान है कि हमारी अकाशगंगा के तीन-चौथाई तारे लाल तारे ही हैं। वे हमारे सूर्य जितने बड़े और गरम नहीं होते, इसलिए उनके ग्रहों पर पानी और किसी प्रकार का जीवन होने की संभावना अधिक मानी जा सकती है। रफ़ाएल ल्यूक और एनरिक पाले ने ऐसे ही तारों के जिन 34 ग्रहों का अध्ययन किया, उनमें से प्रत्येक के अनुमानित घनत्व (डेन्सिटी) के आधार पर, दोनों शोधकों ने उनमें से अधिकांश को 'जल संसार' के रूप में वर्गीकृत किया। उन्होंने पाया कि पूरी तरह ठोस और चट्टानी कहलाने के लिए वे हल्के थे, किंतु पूरी तरह गैसीय कहलाने के लिए बहुत भारी और छोटे भी।
 
अकाशगंगा में रहने योग्य अनेक बाह्यग्रह! : रफ़ाएल ल्यूक को यह बात बहुत आश्चर्यजनक लगी कि आकाशगंगा में इतने सारे पानी वाले ग्रह सबसे आम प्रकार के तारों के फेरे लगा रहे हैं। उनका कहना है कि इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारी आकाशगंगा में ही कितने सारे ऐसे बाह्यग्रह हो सकते हैं, जिन्हें रहने योग्य माना जा सकता है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि जिन बाह्यग्रहों का अध्ययन किया गया है, उनकी सतह पर पानी के या उससे मिलती-जुलती किसी दूसरी चीज़ के अणु उन्हें नहीं मिले।
 
ऐसी स्थिति में, एक अनुमान यह है कि अपने-अपने सूर्य से निकटता के कारण इन ग्रहों पर का पानी भाप बन कर गैसीय रूप में बदल गया होना चाहिए। यदि ऐसा है, तो इन ग्रहों का अर्धव्यास (रेडियस) बढ़ा हुआ होना चाहिए। रफ़ाएल ल्यूक के मापनों ने किंतु ऐसा नहीं दिखाया। इसलिए उनका मानना है कि इन ग्रहों पर पानी तो हो सकता है, पर बड़े-बड़े महासागरों के होने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
 
और अधिक खोज की आवश्यकता है : कुछ वैज्ञानिक रफ़ाएल ल्यूक और एनरिक पाले की इस अनपेक्षित खोज पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका में ही शिकागो विश्वविद्यालय के बाह्यग्रह विशेषज्ञ जैकब बीन का कहना है कि सही प्रमाण के अभाव में कथित 'पानी की दुनिया' की अभी और अधिक जांच-परख करने की ज़रूरत है। तब भी, जो कुछ सामने आया है, वह भी 'आश्चर्यचकित' करने वाला है। वे तथा खगोल विज्ञान जगत के बहुत से दूसरे लोग भी लाल बौनों वाले बाह्यग्रहों को अब तक ऐसी 'चट्टानी शुष्क दुनिया' मान रहे थे, जहां पानी नहीं हो सकता।
 
विभिन्न शोधकर्ता पहले भी 'लाल बौने' कहलाने वाले तारों के आस-पास पृथ्वी से दूर जीवन की तलाश करने के सुझाव दे चुके हैं। इसलिए माना जा रहा है कि रफ़ाएल ल्यूक और एनरिक पाले के विश्लेषणों ने 'लाल बौने' तारों के आस-पास छोटे ग्रहों के बनने और उनके विकसित होने की पहेली को सुलझाने का एक महत्वपूर्ण सुराग प्रदान किया है। आशा की जा रही है कि और अधिक शक्तिशाली दूरबीनों की सहायता से निकट भविष्य में और अधिक जानकारी मिल सकती है।

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