ब्रिटिश पीएम ने जारी किया 'हिन्दू धर्म विश्व कोष'

Webdunia
मंगलवार, 28 अक्टूबर 2014 (17:59 IST)
-अनुपमा जैन
 
लंदन। (वीएनआई) ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने कल रात यहां भारतीय सांस्कृतिक छटा वाले एक कार्यक्रम में दीप प्रज्जवलित करके प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरू स्वामी चिदानंद सरस्वती की इंडिया हैरिटेज रिसर्च फाउंडेशन द्वारा तैयार हिन्दू धर्म विश्व कोष के 11 खंडों वाले एक ग्रंथ को जारी किया
यह कार्यक्रम वेस्टमिंस्टर के क्वीन एलिजाबेथ कांफ्रेंस सेंटर में हुआ, जहां इसका आयोजन ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी के अध्यक्ष लार्ड एंड्रयू फील्डमैन ने किया। इस अवसर पर बड़ी तादाद में भारतीय मूल के लोगो के अलावा ब्रिटेन के अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। 
 
केमरून तथा उनकी पत्नी सामंथा ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। फील्डमैन ने 20 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद तैयार इस ग्रंथ को 'असाधारण उपल्ब्धि' बताया। ग्रंथ मे लगभग 1000 विद्वानों के हिन्दू धर्म के सभी पहलुओं, इतिहास, दर्शन, संस्कृति, संगीत, अध्यात्म विज्ञान को समेटे शोध लेख हैं।
 
गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह मे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को इस विश्व कोष की प्रथम अंतराष्ट्रीय प्रति भेंट की गई थी। ग्रंथ इन्डिया हेरीटेज रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष और परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती की प्रेरणा से लिखा गया है।
 
समारोह मे राष्ट्रपति ने इस ग्रंथ को 'ऐतिहासिक महत्वपूर्ण दस्तावेज़' बताते हुए कहा था कि विभिन्नता में एकता हिन्दू धर्म का मूल आधार है उन्होंने महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहा था कि 'अगर उन्हे हिन्दू की व्याख्या करने को कहा जाए तो वे केवल इतना कहेंगे कि अहिंसक मार्ग से सत्य की खोज करो। हिन्दू धर्म दरअसल सत्य का धर्म है और सत्य ही ईश्वर है, सत्य की अनवरत खोज ही हिन्दू धर्म का सार है। उन्होंने कहा था कि भारत अनेक धर्मो की भूमि है। सभी धर्मो के लोग यहाँ रहते हैं।
 
स्वामी चिदानन्द सरस्वती के अनुसार '21वी सदी भारत की सदी है, हम न केवल अपने लिए, बल्कि अपनों के लिए सोचते हैं। सबकी बात, सबका साथ, सब के विकास की बात करते हैं। पूरा विश्व हमारा परिवार है। वसुधैव कुटुम्बकंम इसी भावना का द्योतक है।'
 
उन्होंने कहा कि आठ वर्ष की आयु से हिमालय की कंदराओं, कलकल बहती गंगा, वहाँ विचरते रहस्यमयी मौन साधकों व अपने गुरू के ज्ञान दान से शुरू हुई उनकी साधक यात्रा में ये सभी उनकी प्रेरणा स्रोत रहे। 
 
इस ग्रन्थ की कल्पना से लेकर इसके प्रकाशन के यज्ञ से जुड़ी स्वामीजी की अमरीकी मूल की शिष्या व साधिका साध्वी भगवती ने कहा कि पिछले 20 वर्ष से लिखे जा रहे इस ग्रंथ के लिए जो 'यज्ञ' हो रहा है, उसकी अब पूर्णाहुति दी गई है। उन्होंने कहा 'हिन्दू धर्म व संस्कृति का पूरा सार इस ग्रंथ में अंतर्निहित है।' (वीएनआई)
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