क्‍या है लाउडस्पीकर का इतिहास, कब हुआ आविष्‍कार और किस मस्‍जिद में बजा पहली बार?

Webdunia
गुरुवार, 28 अप्रैल 2022 (14:32 IST)
लाउडस्‍पीकर को लेकर देश में बवाल है, कई राजनीतिक दल आमने सामने आ गए हैं। महाराष्‍ट्र में तो नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा को तो इसके लिए जेल तक जाना पड गया है। वहीं यूपी में सीएम योगी आदित्‍यनाथ लाउडस्‍पीकर पर बेहद सख्‍त हैं, उन्‍होंने कई जगहों से लाउडस्‍पीकर उतरवा दिए हैं।

ऐसे में जानना दिलचस्‍प होगा कि आखिर लाउडस्‍पीकर का इतिहास है क्‍या और कब इसका अविष्‍कार हुआ। यह जानना भी दिलचस्‍प होगा कि दुनिया में सबसे पहली बार लाउडस्‍पीकर पर कहां और किस मस्‍जिद में अजान हुई थी।

लाउडस्पीकर का आविष्कार
बता दें कि लाउडस्पीकर का आविष्कार 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ था। इसके बाद इनका इस्‍तेमाल मस्जिदों में किया जाने लगा। हालांकि शुरुआत में इसका विरोध भी हुआ। कुछ लोगों का मानना था कि ईश्वर और अल्लाह की पूजा और इबादत में इन उपकरणों का क्‍या काम।

इस मस्‍जिद में बजा पहली बार
लाउडस्‍पीकर के लिए अक्‍सर ब्रायन विंटर्स की किताब The Bishop, the Mullah, and the Smartphone: The Journey of Two Religions into the Digital Age का हवाला दिया जाता रहा है। इस किताब में लिखे तथ्‍य की माने तो दुनिया में पहली बार अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिंगापुर की सुल्तान मस्जिद में किया गया था। ये साल 1936 की बात है। कहा जाता है कि तब वहां के अखबारों में खबरें प्रकाशित होती थीं कि लाउडस्पीकर से अजान की आवाज 1 मील तक सुनी जा सकेगी।

आज लाउडस्‍पीकर को लेकर देशभर में बवाल है। लेकिन उन दिनों में भी इसका विरोध हुआ था। तब इस नई तकनीक के इस्तेमाल का विरोध मस्जिद में नमाज पढ़ने वाले ही कुछ लोगों ने किया था। लेकिन लाउडस्पीकर के पक्ष मे ये बात भी कही गई कि शहर में शोर बढ़ रहा है। ऐसे में अजान की आवाज ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाती, इसलिए लाउडस्पीकर उपयोगी रहेगा। यानि तब भी इसे लेकर सहमति और असहमति होती रही है।

तुर्की-मोरक्को में क्‍यों नहीं बजता भोंगा?
दरअसल कई देशों में अजान के नियम अलग अलग हैं। तुर्की और मोरक्को में कोई ऐसी मस्जिद नहीं है, जहां लाउडस्पीकर से अजान दी जाती हो। जबकि नीदरलैंड में महज 07-08 प्रतिशत मस्जिदों में ही  लाउडस्पीकर से अजान होती है।

क्‍या है सुल्‍तान मस्‍जिद का इतिहास?
सुल्तान मस्जिद या मस्जिद सुल्तान सिंगापुर के रोशोर जिले में मौजूद है। इसका नाम सुल्तान हुसैन शाह के नाम पर रखा गया था। 1975 में इस मस्जिद को देश का राष्ट्रीय स्मारक भी घोषित किया गया था। इस मस्जिद को बनाने की शुरुआत तो 19वीं सदी में ही की जा चुकी थी लेकिन इसका निर्माण 1932 में पूरा हुआ।

अजान पर इन देशों में क्‍या है नियम?
मुस्लिम हालांकि पूरी दुनिया में हैं, लेकिन नीदरलैंड्स, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रिया, नार्वे और बेल्जियम में लाउडस्पीकर पर अजान तो होती है, लेकिन इसकी आवाज तय है कि वो कितने डेसीबल तक रह सकती है। लेकिन इन्हीं देशों में कुछ शहरों ने स्वतंत्र तौर पर इन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसमें नाइजीरिया का शहर लाओस और अमेरिका का मिशिगन राज्य भी है, जहां इस पर प्रतिबंध है।

इजरायल में भी आराम के समय में लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों पर नहीं बजाया जा सकता है। ब्रिटेन में लंदन में आठ मस्जिदों को लाउडस्पीकर इस्तेमाल की अनुमति अजान के दौरान है, वो भी रमजान में। लेकिन बाद में इस अनुमति को कोर्ट के एक फैसले के बाद 19 मस्जिदों तक बढ़ा दिया गया। हालांकि इसका जबरदस्त विरोध भी है।

सऊदी अरब के नियम
सऊदी अरब में अजान के लिए मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के कड़े नियम हैं। अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो सकता है लेकिन एक तय आवाज में। इसके अलावा इसका और प्रयोग अगर हुआ तो वो प्रतिबंधित है। अगर किसी ने इसका नियम के खिलाफ इस्तेमाल किया तो पेनल्टी लगाई जाती है।

जर्मनी में सख्‍त विरोध
अजान को लेकर सबसे तीखा विरोध जर्मनी में देखने को मिला। दरअसल यहां की कोलोन सेंट्रल मस्जिद के कंस्ट्रक्शन के दौरान ही आसपास के लोगों ने अजान को लेकर शिकायत की थी। लोगों ने कहा कि मस्जिद के निर्माण के बाद यहां अजान दी जाएगी जिससे दिक्कतें होंगी। बाद में प्रशासन ने मस्जिद बनाने की छूट इसी बात पर दी कि इसमें लाउडस्पीकर के जरिए अजान नहीं दी जाएगी।

इंडोनेशिया की कहानी
दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिमों की जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया में जब एक महिला ने अजान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर शिकायत की थी तो उसे ईशनिंदा में 18 महीने की सजा भुगतनी पड़ी थी। गुस्साई भीड़ ने 14 बौद्ध मंदिरों में आग लगा दी थी। हालांकि बाद में सरकार ने मस्जिदों में अजान के इस्तेमाल पर दिशानिर्देश जारी किए।

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