कैसे हमारा मस्तिष्क हमें दुनिया के दूसरे प्राणियों बनाता है अलग, रिसर्च में मिला जवाब

Webdunia
रविवार, 29 मई 2022 (18:38 IST)
लंदन, ज्ञान के मामले में मनुष्य का कोई मुकाबला नहीं है। आखिरकार, किसी अन्य प्रजाति ने न तो दूसरे ग्रहों पर खोज की है, न जीवनरक्षक टीके बनाए हैं और न ही कविताएं लिखी हैं।

इन कार्यों को संभव बनाने के लिए मानव मस्तिष्क जानकारी को कैसे संसाधित करता है, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब हर कोई जानना चाहता है, लेकिन आज तक इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं मिला है।

हमारे मस्तिष्क के काम करने की समझ समय बीतने के साथ बदलती रही है। लेकिन वर्तमान सैद्धांतिक मॉडल में मस्तिष्क को एक ऐसी प्रणाली के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका काम सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना होता है।

इसका मतलब यह है कि इसमें अलग-अलग घटक होते हैं, जो मस्तिष्क की नसों के माध्यम चलते हैं। एक-दूसरे से मुखातिब होने के लिए इनपुट और आउटपुट सिग्नल प्रणाली के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। हालांकि यह एक अधिक जटिल प्रक्रिया का मात्र एक छोटा सा हिस्सा है।

'नेचर न्यूरोसाइंस' पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में हमने विभिन्न प्राणियों और कई तंत्रिका विज्ञान (न्यूरो साइंस) साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हुए हमने यह दिखाया कि मस्तिष्क में केवल एक प्रकार का सूचना प्रसंस्करण तंत्र नहीं होता।

किसी जानकारी को कैसे संसाधित किया जाता है यह भी मनुष्यों और अन्य प्राणियों के बीच भिन्न होता है, जिससे इस बात का पता चल सकता है कि हमारी सोचने-समझने की क्षमताएं इतनी बेहतर क्यों हैं।

हमने पाया कि मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से होते हैं, जो वास्तव में एक-दूसरे के साथ संवाद करने के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करते हैं। मस्तिष्क के कुछ हिस्से कुछ इनपुट और आउटपुट प्रणाली का उपयोग करके बहुत ही पुराने तरीके से दूसरों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि ये सिग्नल सूचनाओं की प्रतिलिपि तैयार करने और भरोसेमंद तरीके से इसे मस्तिष्क के दूसरे हिस्से में पहुंचा देते हैं।

ऐसा मस्तिष्क के उन हिस्सों के मामले में होता है, जो संवेदी और मोटर कार्यों (जैसे ध्वनि, दृश्य और आवाहाजी की जानकारी को संसाधित करने) में माहिर होते हैं।

उदाहरण के तौर पर आंखें मस्तिष्क के पिछले हिस्से को सिग्नल भेजती हैं। आंखें जो सिग्नल भेजती हैं, उनमें से अधिकतर डुप्लीकेट होते हैं, जिन्हें दोनों आंखों के द्वारा भेजा जाता है। इस सिग्नल या सूचना में से आधी सूचना की जरूरत नहीं होती, लिहाजा हम इसे 'अनावश्यक' मानते हैं। हालांकि इसका अपना अलग महत्व होता है।
यह क्षमता जीवन के लिए आवश्यक होती है। वास्तव में, यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि मस्तिष्क के ये हिस्से पहले से ही नसों के जरिये एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, जैसे तारों के जरिये टेलीफोन जुड़े होते हैं।

हालांकि आंखों के जरिये प्रदान की गईं सभी जानकारियां अनावश्यक नहीं होतीं, लेकिन दोनों आंखों द्वारा प्रदान की गई जानकारी मस्तिष्क को वस्तुओं के बीच गहराई और दूरी को समझने में सक्षम बनाती है। सिनेमाघरों में 3डी चश्मों से फिल्म देखने के दौरान यह प्रक्रिया काम करती है। यह सूचना को संसाधित करने के मौलिक रूप से भिन्न तरीके का एक उदाहरण है, जो इसके भागों के योग से अधिक है।

हम इस प्रकार के सूचना प्रसंस्करण को 'सहक्रियाशीलता' प्रक्रिया कहते हैं, जिसके तहत मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों से मिले जटिल संकेतों को एकीकृत किया जाता है। मस्तिष्क के हिस्सों में 'सहक्रियाशीलता' प्रक्रिया सबसे अधिक प्रचलित है जो अधिक जटिल संज्ञानात्मक कार्यों में मदद करती है, जैसे कि ध्यान लगाना, पढ़ाई, कार्यशील स्मृति, सामाजिक व संख्यात्मक अनुभूति आदि।

कुल मिलाकर हमारे काम से पता चलता है कि मानव मस्तिष्क विश्वसनीयता और सूचनाओं को किस तरह इकट्ठा करके इसका विश्लेषण करता है। हमें दोनों की आवश्यकता होती है। हमने जो ढांचा विकसित किया है, वह सामान्य ज्ञान से लेकर विकारों तक और न्यूरो-साइंस से संबंधित प्रश्नों को लेकर महत्वपूर्ण समझ पैदा करता है।
(इमैनुएल ए. स्टेमेटेकिस, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज/एंड्रिया ल्यूपी, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज/डेविड मेनन, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज)

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