न दाढ़ी रख सकते हैं, न टोपी पहन सकते। न मस्जिद में नमाज की आजादी और न ही किसी और तरह की धार्मिक आजादी। ये सूरते हाल है चीन में मुसलमानों का। चीन में मुसलमानों की हालत के बारे में पूरी दुनिया जानती है, लेकिन अब वहां जो हो रहा है वो बेहद खतरनाक है।
इतना ही नहीं चीन में मुसलमानों को डिटेंशन कैंपों में रखकर जबरन उनकी नसबंदी करवाई जाती है। चीन ने सरकारी मीडिया के जरिए मुसलमानों पर हो रही बर्बरता पर पर्दा डालने की कोशिश करते हुए अपनी करतूतों को 'इस्लाम का चीनीकरण' बताया है।
चीनी मीडिया का यह भी कहना है कि उसने यह भी कहा है कि मुसलमानों में देशभक्ति को बढ़ाने के लिए वह स्थानीय हालातों के मुताबिक इस्लाम में बदलाव कर रहा है।
चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने चाइना इस्लामिक एसोसिएशन के प्रेजिडेंट यांग फामिंग का इंटरव्यू किया है और उनके हवाले से मुसलमानों पर अत्याचार को लेकर लगने वाले आरोपों को खारिज करने की कोशिश की है।
यांग के मुताबिक चीन में अब 2 करोड़ मुस्लिम हैं। यांग के हवाले से बताया गया है कि क्यों चीन में इस्लाम और मुसलमानों की जीवनशैली में बदलाव किया जा रहा है।
उनसे पूछा गया कि इस्लाम के चीनीकरण की पंचवर्षीय योजना की मौजूदा स्थिति क्या है और यह क्यों अहम है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इस्लाम के सही विकास और समाज में इसकी बेहतर स्वीकार्यता की वजह से चाइना इस्लामिक असोसिएशन ने पंचवर्षीय (2018-22) योजना बनाई। देशभक्ति को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिक योजनाओं की रूपरेखा बनाई गई है।
चीनी विशेषताओं के साथ इस्लाम की एक प्रणाली का निर्माण किया जा रहा है। इस्लाम के नियम कायदों में सुधार किया जा रहा है। इन सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय काम किए गए हैं।
यांग ने आगे कहा कि दुनियभार में धर्म का स्थानीयकरण एक सामान्य प्रक्रिया है। इसके जरिए ही धर्म सही दिशा में बढ़ सकता है।
गौरतलब है कि धार्मिक कट्टरता रोकने के नाम पर चीन ने शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों के लंबी दाढ़ी रखने और सार्वजनिक स्थानों पर बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगा चुका है। शिनजियांग में उइगर मुस्लिमों की बहुलता है। शिनजियांग में रमजान के दौरान रोजा रखने पर भी पाबंदी लगाई गई थी। बच्चों को स्कूल की बजाय घरों में पढ़ाने पर रोक लगाई जा चुकी है। चीन में लाखों मुसलमानों को कैद करके रखा गया है। उनकी जबरन नसबंदी कर दी जाती है और अन्य कई तरह के जुल्म उन पर किए जाते हैं।
खास बात है कि चीन के यह अत्याचार जगजाहिर हैं, लेकिन इसके खिलाफ दुनिया के किसी भी कोने से कोई आवाज नहीं उठती है। न तो मानवाधिकार ही इनके लिए आवाज उठाता है और न ही किसी देश की सरकार या वहां की जनता।
वहीं भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के खिलाफ कभी भी हैशटैग चल जाता है तो कई बार सोशल मीडिया पर और अखबारों में खबरें बन जाती हैं।