नन्ही एलिसा रखेगी 'मंगल' पर पहला कदम...

Webdunia
गुरुवार, 29 दिसंबर 2016 (19:44 IST)
नई दिल्ली। चंदा मामा को मुट्ठी में कैद करने के लिए मचलने की उम्र में 'लाल मामा' की गोद में बैठने के सपने देखने वाली अमेरिका की नन्ही एलिसा कार्सन अंतरिक्ष यात्रियों के जरूरी प्रशिक्षण के अलावा मंगल ग्रह की आबोहवा के अनुकूलन से संबंधित कई चुनौतीपूर्ण ट्रेनिंग कर चुकी है और यह सिलसिला जारी है। 
लुइसियाना के बैटन रूज की 15 वर्षीय एलिसा ने 3 साल की उम्र में अपनी ललाट पर लटक रहे सुनहरे 'गुलदस्ते' को एक तरफ करते हुए पापा बर्ट कार्सन से सवाल किया था कि पापा, मंगल ग्रह पर कोई गया है क्या? उसके पापा ने भी उसी 'गंभीर' अंदाज में जवाब दिया, नहीं बेटा, मंगल पर तो नहीं, इंसान चांद पर जरूर पहुंच गया है। फिर क्या था, इसके बाद एलिसा का मंगल पर बस्ती बसाने का जुनून परवान चढ़ने लगा। 
 
वह मंगल पर कदम रखने वाले पहले लोगों में शामिल होने और इस ग्रह पर एक नई दुनिया की नींव रखे जाने में अहम भूमिका निभाने के लिए ऐसे-ऐसे प्रशिक्षण से गुजर रही है जिसके बारे में इसके हमउम्रों ने सुना भी नहीं होगा। वह सपने नहीं बुन रही बल्कि 'मंगल की हकीकत' जीने लगी है।
 
अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश एवं चायनीज भाषाओं में धारा प्रवाह बोलने और लिखने वाली एलिसा ने बुधवार शाम विशेष बातचीत में उसके हिन्दी के ज्ञान के बारे में पूछे जाने पर कहा कि मंगल पर भारत की ऐतिहासिक पहल और अंतरिक्ष में इसकी महत्वपूर्ण दखल को देखते हुए मैं जल्द ही हिन्दी की कक्षाएं लेने वाली हूं। मुझे उस दिन का इंतजार है, जब अपने मंगल मिशन के बारे में बताने के लिए मुझे भारत आमंत्रित किया जाएगा। वह मेरे लिए बेहद खुशी का पल होगा। फिलहाल मैं रूसी भाषा की शिक्षा ले रही हूं।
 
'एस्ट्रोनॉट इन मेकिंग' कुछ-कुछ तुर्की और पुर्तगाली भी जानती है। एलिसा यह बखूबी जानती है कि एक बार मंगल पर जाने के बाद उसका धरती पर लौटना शायद संभव नहीं होगा, फिर भी धरती से करीब 40 करोड़ किलोमीटर दूर मंगल पर पहुंचने की उसकी जिद अटल है। उसके ही सपने जीने वाले बर्ट कार्सन ने अपने जज्बातों को गहरे समुद्र में 'दफन' करके 'अंतरिक्ष बिटिया' के सपने को साकार करने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया है।
 
हम उसी मंगल ग्रह की बात कर रहे हैं, जहां 24 सितंबर 2014 को मंगलयान के पहुंचने के साथ ही अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नया इतिहास रच दिया और भारत पहले ही प्रयास में सफल होने वाला पहला तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया। 
 
सबसे कम बजट से भारत की 'मंगल फतह' ने विश्व को हैरत में डाल दिया है जिस पर कुल खर्च 450 करोड़ रुपए आया। यह नासा के पहले मंगल मिशन का 10वां और चीन-जापान के नाकाम मंगल अभियानों का एक-चौथाई भर है और यह अकादमी पुरस्कार विजेता फिल्म 'ग्रैविटी' पर आए खर्च से भी कम है। 
 
पड़ोसी ग्रह मंगल पर फूल-पौधे लगाने और कई तरह के अनुसंधान करने की बात करने वाली एलिसा के दिल में मंगल पर कदम रखने की ख्वाहिश 3 साल की उम्र में उस समय हिलोरे मारने लगी जब उसने बच्चों के टेलीविजन शो 'द बैकयार्डिगंस : मिशन टू मार्स' देखा। किसे पता था कि इस शो को देखकर बर्ट कार्सन की 'मासूम एलिसा' मंगल पर बसने का 'कठोर' एवं बेहद चुनौतीपूर्ण सपना देखने लगेगी, सपने को ओढ़ने, बिछाने और जीने लगेगी तथा खेलने-कूदने की मासूम उम्र से ही कड़ी ट्रेनिंग लेने लगेगी।
 
वर्ष 2027 में मंगल पर इंसानों की कॉलोनी बसाने की तैयारी करने में जुटे संगठन 'मार्स वन' की एम्बेसेडर एलिसा खुशी-खुशी बेहद मुश्किल प्रशिक्षण से गुजर रही है। बैटन रुज इंटरनेशनल स्कूल की 10वीं की छात्रा ने यह पूछने पर कि वह इतनी भाषाओं पर क्यों अधिकार करना चाहती है, एलिसा ने झट से कहा कि आज से 20 साल बाद मैं जब मंगल पर जाऊंगी तो संसार के कोने-कोने से लोग मुझसे कई तरह के सवाल करेंगे और न जाने कितनी बातें करना चाहेंगे। मुझे कई भाषाओं की जानकारी होनी चाहिए कि नहीं?
 
एलिसा नासा के विश्व के सभी स्पेस कैंप में ट्रेनिंग ले चुकी है और नासा का पासपोर्ट प्रोग्राम पूरा करने वाली पहली व्यक्ति बन गई हैं। स्पेस कैंप में अंतरिक्ष और खास करके मंगल के आबो-हवा में सांस लेने से लेकर विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हुए जिंदा रहने की ट्रेनिंग दी जाती है।
 
उसने कहा कि मंगल पर ऑक्सीजन बेहद कम है। वहां 95 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड है इसलिए मुझे कम ऑक्सीजन में रहने का भी प्रशिक्षण दिया गया है। उसने कहा कि स्पेस कैंप में प्रशिक्षण के दौरान ऑक्सीजन की मात्रा कम कर दी गई यानी 'हाइपोक्सिया' की स्थिति में रखा गया ताकि यह देखा जा सके कि ऑक्सीजन की कमी होने पर मुझमें कौन-से लक्षण सामने आते हैं। इस दौरान मुझमें 'यूफोरिया' देखा गया जिसमें आप खूब हंसते हैं और चुप होना मुश्किल होता है। मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ गया। यह बेहद ही दिलचस्प अनुभव था।
 
एलिसा बताती है कि वह स्वयं को 'बच्चा' महसूस करने के लिए अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलती है और खाली समय में पियानो बजाती है। वह सामान्य बच्चों की तरह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है। कुशाग्र बुद्धि की धनी एलिसा ट्रेनिंग के दौरान मुश्किल से मुश्किल बारीकियों को आसानी से समझ जाती है और यही कारण है कि उसके स्पेस ट्रेनर और स्कूल के शिक्षकों को विश्वास हो गया है कि एलिसा जरूर मंगल पर कदम रखने वाले पहले व्यक्तियों में शुमार होगी। (वार्ता)
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