ईरान में हिजाब पर जारी बवाल थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। महिलाएं सड़कों पर उतर आईं हैं, प्रदर्शन किए जा रहे हैं, बुर्का और हिजाब जलाए जा रहे हैं। इसके साथ ही कई महिलाएं अपने लंबे बालों को कटवा रही हैं। इन प्रदर्शनों के रोकने के लिए पुलिस फायर कर रही है, कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। हिंसक घटनाओं में अब तक 5 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं। पुलिस ने इस मामले में 300 लोगों को गिरफ्तार किया है। जानिए क्या है ईरान में हिजाब का इतिहास? क्यों मचा है इस देश में हिजाब पर बवाल?
क्या है मामला : दरअसल, हिजाब के नाम पर ईरान में एक लड़की को पीट-पीटकर मार दिया गया। 22 साल की महासा अमीनी 13 सितंबर को अपने परिवार के साथ तेहरान घूमने आई थी। महासा अमीनी ने हिजाब पहना हुआ था, लेकिन उसके हिजाब से उसके कुछ बाल बाहर आ रहे थे। इसी वजह से कुछ हिजाबधारी महिलाओं और ईरान पुलिस ने महासा को जबरदस्ती पकड़कर बुरी तरह से मारा पीटा। जिसके बाद पुलिस कस्टडी में उसकी मौत हो गई।
जिस महसा अमीनी की मौत के बाद यह प्रदर्शन हो रहे हैं, उसे हिजाब नहीं पहनने के लिए कुछ लोगों ने पीटा था, बाद में सिर न ढकने के आरोप में पुलिस ने 22 साल की महसा अमीनी को कस्टडी में ले लिया था। महसा कुर्द मूल की थीं। हिरासत में ही वे कोमा में चली गईं और 16 सितंबर को उनकी मौत हो गई। इसके बाद महिलाओं का गुस्सा भड़क गया और देश भर में नो टू हिजाब कैपेंन शुरू हो गया।
ईरान में हिजाब पर सख्त सजा का प्रावधान : दुनिया के 195 देशों में 57 मुस्लिम बहुल देश हैं। इनमें केवल 2 देश ईरान और अफगानिस्तान ही ऐसे हैं जहां हिसाब पहनना अनिवार्य है। ईरान में किसी महिला द्वारा इस कानून को तोड़ने पर उसे बेहद सख्त सजा दी जाती है। 74 कोड़े मारने से लेकर 16 साल की जेल तक हो सकती है। इस सख्ती के खिलाफ ईरान में पिछले कई सालों से महिलाएं प्रदर्शन कर रही है। बहरहाल अमीनी की मौत से महिलाओं का गुस्सा भड़क गया और ईरान में नो हिजाब कैंपेन एक नए मुकाम पर पहुंच गया है।
हिजाब का इतिहास : ईरान में हिजाब का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। पहले यहां भी महिलाएं अन्य देशों की तरह बगैर हिजाब कही भी आ जा सकती थी। यहां राजशाही के दौरान महिलाओं को ज्यादा आजादी थी, लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद महिलाओं को धार्मिक कट्टरवाद का गुलाम बना दिया गया। जिन महिलाओं ने विरोध किया, उनको कैद किया गया और जिन्होंने मजबूरीवश इसे अपना लिया, उन्हें ईरान की आदर्श नारी के तौर पेश किया गया।
43 साल पहले जब धार्मिक नेता अयातुल्लाह खोमैनी ने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले ली और पूरे देश में शरिया कानून लागू कर दिया। हाल ही में 15 अगस्त को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने एक आदेश पर साइन किए और हिजाब को सख्ती से ड्रेस कोड के रूप में लागू करने को कहा गया।