पाकिस्तान बेवफा और दोगला निकला, ईरान को ठेंगा दिखा बैठा ट्रम्प की गोद में

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शुक्रवार, 20 जून 2025 (12:53 IST)
US Pakistan relations : पाकिस्तान से न अमेरिका को छोड़ते बन रहा है न ईरान को, वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में पाकिस्तान की विदेश नीति एक तार पर चलने जैसी है। एक तरफ देश का सैन्य नेतृत्व अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ व्हाइट हाउस में भोजन कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान की नागरिक सरकार ईरान-इज़रायल संघर्ष में खुलकर ईरान का समर्थन कर रही है। ALSO READ: Iran Israel War : ईरान ने क्लस्टर बम दागे, इजराइल का खामेनेई के बंकर वाले लवेजान पर हमला
 
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की हालिया अमेरिकी यात्रा ने सुर्खियां बटोरीं। यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख को, जो देश का राष्ट्राध्यक्ष नहीं है, व्हाइट हाउस में मेजबानी दी है। यह घटना न केवल कूटनीतिक प्रोटोकॉल को तोड़ती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि अमेरिका पाकिस्तान में सेना को वास्तविक शक्ति के रूप में स्वीकार करता है। अल जजीरा ने लिखा है कि यह कदम पाकिस्तान की सैन्य शक्ति की अमेरिकी मान्यता को रेखांकित करता है।
 
दूसरी ओर, पाकिस्तान की नागरिक सरकार, जिसके मुखिया प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ हैं, ने ईरान-इज़रायल संघर्ष में ईरान का खुला समर्थन किया है। जून 2025 में जब इज़रायल ने ईरानी शहरों पर हवाई हमले किए, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इसे "क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन" और "खुला उकसावा" करार दिया। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इज़रायल को जवाबदेह ठहराने की मांग की। यह रुख अमेरिका की इज़रायल-समर्थक नीति के बिल्कुल विपरीत है।
 
पाकिस्तान का यह रुख कई कारणों से है:  सीमा सुरक्षा की चिंता: पाकिस्तान और ईरान के बीच 905 किलोमीटर की साझा सीमा है। इज़रायल का बढ़ता सैन्य प्रभाव, खासकर अगर वह तेहरान के आसमान पर नियंत्रण का दावा करता है, पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी है। ALSO READ: ईरान में तबाही मचा सकता है अमेरिका का बंकर बस्टर बम, क्यों है इजराइल के लिए जरूरी?
 
बलूचिस्तान का मसला: बलूचिस्तान प्रांत, जो तेल, गैस और खनिजों से समृद्ध है, दशकों से अलगाववादी आंदोलनों का गढ़ रहा है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे समूह यहां सक्रिय हैं। अगर ईरान-इज़रायल संघर्ष बढ़ता है, तो इन समूहों के ईरानी सीमा से घुसपैठ की आशंका बढ़ सकती है। इस डर से पाकिस्तान ने 15 जून 2025 से अपनी पांच सीमा क्रॉसिंग बंद कर दीं।  
 
शरणार्थी संकट का डर: 1979 के सोवियत आक्रमण के बाद से लाखों अफगान शरणार्थियों ने पाकिस्तान में शरण ली थी। हाल ही में इन शरणार्थियों को वापस भेजा गया है, और पाकिस्तान नहीं चाहता कि ईरान के साथ सीमा पर वैसी ही स्थिति बने।
 
आंतरिक राजनीति का दबाव : पाकिस्तान की 15% से अधिक शिया आबादी भी इस नीति को प्रभावित करती है। सुरक्षा विश्लेषक इहसानुल्लाह टीपू महसूद के अनुसार, "ईरान के खिलाफ खुला रुख अपनाने से देश में सांप्रदायिक तनाव भड़क सकता है।" शिया-बहुल ईरान के खिलाफ कोई सैन्य कार्रवाई का समर्थन करने से आंतरिक अस्थिरता का खतरा है, जो पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक संकटों से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए घातक हो सकता है।  
 
पाकिस्तान और अमेरिका का नया प्रेम-प्रसंग या बेवफाई भरी चालबाजी? पाकिस्तान की विदेश नीति हमेशा से "लेन-देन" पर आधारित रही है। जब अमेरिका को जरूरत होती है, वह पाकिस्तान के करीब आता है, और काम निकलने पर दूरी बना लेता है। इस बार भी पाकिस्तान अपने सभी विकल्प खुले रख रहा है। वह न तो अमेरिका को पूरी तरह छोड़ना चाहता है और न ही ईरान से रिश्ते खराब करना चाहता है। यह दोहरी रणनीति तब तक काम कर सकती है जब तक अमेरिका और ईरान के बीच सीधा टकराव नहीं होता। लेकिन अगर स्थिति बिगड़ती है, तो पाकिस्तान को एक पक्ष चुनना पड़ सकता है, जो उसके लिए आसान नहीं होगा।

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