ट्रंप की चाल: जेलेंस्की परेशान, यूरोप हैरान, पुतिन खुश हुआ लेकिन चीन क्यों चकराया!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां और बयानबाज़ी न सिर्फ यूक्रेन को, बल्कि पूरे यूरोप को असमंजस में डाल रही हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस खेल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शुक्रवार, 7 मार्च 2025 (14:35 IST)
यूक्रेन-रूस युद्ध अब केवल दो देशों के बीच की जंग नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक शक्ति संतुलन का एक अहम हिस्सा बन चुका है। इस संकट में डोनाल्ड ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल शुरू होते ही अमेरिकी नीतियों में तेज़ बदलाव देखने को मिला है। इस शतरंज की बिसात पर हर खिलाड़ी अपनी चाल चल रहा है, लेकिन सबसे बड़ी धौंसपट्टी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की दिख रही है। उनकी नीतियां और बयानबाज़ी न सिर्फ यूक्रेन को, बल्कि पूरे यूरोप को असमंजस में डाल रही हैं। दूसरी ओर, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस खेल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं। ALSO READ: चीन ने ठोंकी ताल, ट्रम्प के टैरिफ पर दी खुली जंग की चुनौती, कहा- हर मोर्चे पर तैयार
 
इस संकट में डोनाल्ड ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल शुरू होते ही अमेरिकी नीतियों में तेज़ बदलाव देखने को मिला है। नए नेतृत्व की तलाश, युद्ध शरणार्थियों को वापस भेजने की तैयारी, और कीव के साथ खुफिया जानकारी साझा करने पर रोक - ये सभी कदम एक बड़े भू-राजनीतिक खेल की ओर इशारा करते हैं। दूसरी ओर, यूरोप अपनी रक्षा को मज़बूत करने और यूक्रेन का साथ देने की कोशिश में जुटा है, जबकि रूस इस स्थिति का फायदा उठाने की फिराक में है। 
 
पहली चाल: दबदबा और दबाव: डोनाल्ड ट्रम्प का यूक्रेन के प्रति रवैया शुरू से ही सख्त रहा है। ट्रम्प का रवैया यूक्रेन के लिए किसी तूफान से कम नहीं है। हाल ही में उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के खिलाफ तीखे तेवर दिखाए और उनकी जगह किसी नए नेता की तलाश शुरू कर दी। पोलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रम्प प्रशासन के लोग यूक्रेन के विपक्षी नेताओं से संपर्क में हैं। ये वो लोग हैं, जो ज़ेलेंस्की की जगह ले सकते हैं और जिनके साथ अमेरिका आसानी से "डील" कर सके। इसका मतलब साफ है - ट्रम्प यूक्रेन को अपनी शर्तों पर झुकाना चाहते हैं। ट्रंप को ऐसा नेतृत्व चाहिए, जो अमेरिका की शर्तों पर काम करे और रूस के साथ शांति समझौते को आसान बनाए। 
 
दबाव बनाने के लिए ट्रम्प ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता पहले ही रोक दी थी, और अब खुफिया जानकारी साझा करने पर भी पाबंदी लगा दी गई है। यह जानकारी यूक्रेन के लिए बेहद अहम थी, क्योंकि इससे वह रूसी सेना की गतिविधियों का पता लगा सकता था और हमलों से बच सकता था। इस कदम से यूक्रेन की रक्षा क्षमता पर सीधा असर पड़ सकता है। ट्रम्प का तर्क है कि वह इस युद्ध को खत्म करना चाहते हैं, लेकिन उनकी रणनीति यूक्रेन को कमज़ोर करने की लग रही है। क्या यह शांति की राह है, या यूक्रेन को मजबूर करने की चाल? यह सवाल अभी अनसुलझा है। 
 
दूसरी चाल: यूक्रेनी शरणार्थियों का भविष्य:  ट्रम्प ने एक और बड़ा फैसला लिया - अमेरिका में रह रहे करीब 2,40,000 यूक्रेनी शरणार्थियों की अस्थायी कानूनी स्थिति खत्म करने का ऐलान। ये वो लोग हैं, जो युद्ध की विभीषिका से बचकर अमेरिका आए थे। ट्रम्प का कहना है कि उनकी "अमेरिका पहले" नीति में इन शरणार्थियों के लिए जगह नहीं। लेकिन यह कदम मानवीय संकट को गहरा सकता है। यूक्रेन में अभी हालात सामान्य नहीं हैं, और इन लोगों को वापस भेजना उन्हें फिर से खतरे में डाल सकता है।  इस फैसले से यूरोप में भी बेचैनी बढ़ी है, जहाँ पहले से ही लाखों यूक्रेनी शरणार्थी शरण लिए हुए हैं। ALSO READ: चीन ने ठोंकी ताल, ट्रम्प के टैरिफ पर दी खुली जंग की चुनौती, कहा- हर मोर्चे पर तैयार
 
यह नीति ट्रम्प की रणनीति का हिस्सा लगती है। वह यूक्रेन पर दबाव बनाकर उसे शांति समझौते के लिए मजबूर करना चाहते हैं, भले ही इसके लिए ज़ेलेंस्की को हटाना पड़े। लेकिन क्या यह दबाव काम करेगा? यूक्रेन के लोग और सरकार अभी भी रूस के खिलाफ डटकर खड़े हैं। ट्रम्प की यह सख्ती यूरोप में भी चिंता का सबब बन रही है, जहाँ यूक्रेनी शरणार्थियों को पहले ही भारी समर्थन मिल चुका है। अगर अमेरिका ने यह कदम उठाया, तो यूरोप पर दबाव बढ़ेगा कि वह इन शरणार्थियों को संभाले। लेकिन क्या यूरोप इसके लिए तैयार है? और क्या यह ट्रम्प की रणनीति का हिस्सा है, ताकि यूक्रेन शांति समझौते के लिए झुक जाए? यह नीति न सिर्फ यूक्रेन, बल्कि वैश्विक शरणार्थी संकट को भी प्रभावित कर सकती है। 
 
तीसरी चाल: यूरोप को किया हैरान: जब अमेरिका यूक्रेन से दूरी बना रहा है, यूरोप ने एकजुटता दिखाई है। ब्रसेल्स में हुई बैठक में यूरोपीय नेताओं ने यूक्रेन का समर्थन दोहराया और रक्षा खर्च बढ़ाने का फैसला किया। पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने कहा, "हम रूस से हर तरह से मज़बूत हैं। हमें यह सैन्य प्रतिस्पर्धा जीतनी होगी।" यूरोप ने 150 अरब यूरो के संयुक्त ऋण का प्रस्ताव पास किया, जो रूस के खतरे के खिलाफ तैयारी को दिखाता है। 
 
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोपीय देशों को अपने परमाणु सुरक्षा कवच में शामिल करने की पेशकश की, जिसे लिथुआनिया ने "रूस के लिए चेतावनी" बताया। जर्मनी ने भी रक्षा बजट बढ़ाने के लिए संवैधानिक नियमों में बदलाव की मंजूरी दी। यूरोपीय नेताओं ने ज़ेलेंस्की का गर्मजोशी से स्वागत किया, जो ट्रम्प के ठंडे रवैये के उलट था। लेकिन यूरोप के सामने चुनौतियां भी कम नहीं। नाटो के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल यूक्रेन को मिली 40% से ज़्यादा सैन्य मदद अमेरिका से आई थी। पूर्व जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज़ ने कहा, "अमेरिका का साथ ज़रूरी है, वरना यूक्रेन की रक्षा मुश्किल होगी।" यूरोप भले ही एकजुट दिख रहा हो, लेकिन अमेरिकी समर्थन के बिना उसकी राह आसान नहीं। 
 
चौथी चाल: रूस और ट्रम्प का गठजोड़ या कुछ और? : ट्रम्प का रुख अब रूस के करीब जाता दिख रहा है। ये अमेरिका की 80 साल पुरानी विदेश नीति से बिलकुल उलट है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प और उनके सहयोगी रूसी प्रचार से प्रभावित हो रहे हैं। एटलांटिक की लेखिका एन एपलबाम का मानना है कि ट्रम्प और उनके सहयोगी अब वही बातें दोहरा रहे हैं, जो रूसी प्रचार में सुनाई देती हैं। ट्रम्प ने ज़ेलेंस्की को "विश्व युद्ध-3 शुरू करने वाला" कहा, जो रूस के पुराने दावों से मिलता-जुलता है। क्या ट्रम्प सचमुच पुतिन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं? यह अभी साफ नहीं है, लेकिन उनकी नीतियाँ रूस को फायदा पहुंचाती दिख रही हैं।
 
हंगरी के नेता विक्टर ओर्बान, जो ट्रम्प के समर्थक हैं, ने यूक्रेन के समर्थन में यूरोपीय एकता पर वीटो की धमकी दी। लेकिन उन्होंने रक्षा खर्च बढ़ाने के कदम का समर्थन किया। इससे लगता है कि ट्रम्प का प्रभाव यूरोप में भी फैल रहा है। दूसरी ओर, यूरोपीय देशों में अमेरिका के प्रति भरोसा कम हो रहा है। फ्रांस में 75% लोग अमेरिका को "मित्र" नहीं मानते, और ब्रिटेन जैसे पारंपरिक सहयोगी देशों में भी नकारात्मक राय बढ़ रही है। यह बदलाव यूरोप को अपनी रक्षा के लिए आत्मनिर्भर होने की ओर धकेल सकता है। 
 
पांचवी चाल: यूक्रेन के बहाने चीन पर निशाना या शांति की कोशिश: अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि अमेरिका एक बड़ी नई रणनीति पर काम कर रहा है जो रूस को चीन से दूर करने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने एक वेबसाइट ब्रेटबार्ट से कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन रूस और चीन के बीच संबंधों को कमज़ोर करना चाहते हैं। रूबियो ने ये भी कहा कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नाम से चीन जो वैश्विक व्यापार नेटवर्क बना रहा है, अमेरिका उसे चुनौती देगा।

इसके लिए ट्रम्प की रणनीति यूक्रेन को कमज़ोर करके रूस के साथ समझौता कराने की हो सकती है। वह इसे अपनी "शांति जीत" के तौर पर पेश करना चाहते हों। लेकिन यूक्रेन और यूरोप इसके लिए तैयार नहीं दिखते। यूक्रेन अपनी ज़मीन और नाटो में शामिल होने के सपने को छोड़ने को राज़ी नहीं। रूस भी चार इलाकों पर पूरा कब्ज़ा चाहता है, जो अभी उसके पास पूरी तरह नहीं हैं। अमेरिकी थिंक टैंक, काउंसिल फ़ॉर फ़ॉरेन रिलेशंस का कहना है कि, ऐसा लगता है कि व्हाइट हाउस और इसमें मौजूद चीन के कट्टर विरोधी चीन को दुनिया से अलग थलग करने और उसके बढ़ते वैश्विक प्रभाव को कम करने के लिए रूस के साथ मिलकर काम कर सकते हैं। 
 
विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन को ऐसा समझौता चाहिए, जिसमें सुरक्षा की गारंटी हो। लेकिन रूस नाटो सैनिकों को शांति बल के तौर पर स्वीकार नहीं करेगा। बिना अमेरिकी समर्थन के यूरोप कितना मज़बूत रहेगा, यह भी बड़ा सवाल है। यूक्रेन की सैन्य स्थिति कमज़ोर हो रही है, और रूस धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। ऐसे में समझौता एकमात्र रास्ता हो सकता है, लेकिन बिना ठोस गारंटी के यह कितना टिकाऊ होगा? 
 
पुतिन क्यों खुश हुआ: पुतिन के लिए यह मौका अनमोल है। वह पश्चिमी एकता को कमज़ोर होते देख रहा है और ट्रम्प के साथ रिश्ते बेहतर करने की उम्मीद कर रहा है। लेकिन यूरोप की तैयारी और यूक्रेन का जज़्बा अभी भी रूस के लिए चुनौती बने हुए हैं। 
 
अनिश्चितता की बिसात पर बिछे इस खेल की कहानी अभी अधूरी है। ट्रम्प की चालें, यूरोप की एकजुटता, और रूस की मंशा - सब मिलकर एक जटिल खेल बना रहे हैं। यूक्रेन इस बिसात पर मोहरा बनकर रह गया है, जिसे हर तरफ से दबाव झेलना पड़ रहा है। क्या ट्रम्प अपनी "डील" में कामयाब होंगे? क्या यूरोप अकेले रूस को रोक पाएगा? और क्या पुतिन सचमुच शांति चाहते हैं? अभी तक चीन इस सारे घटनाक्रम पर चुप्पी साधे बैठा है लेकिन कब तक? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेंगे। तब तक यह वैश्विक शक्ति संतुलन का खेल जारी रहेगा, जिसमें हर कदम का असर यूरोप के लाखों लोगों की ज़िंदगी पर पड़ेगा।

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