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मकास्सर। इंडोनेशिया के एक गांव में रहने वाली मामा हासरिया अपनी कमर पर करीब 200 खाली बोतलें बांधकर रोज तैरते हुए 4 किलोमीटर का सफर तय करती है और छोटे से द्वीप सुलावेसी पर अपने समुदाय के लिए स्वच्छ पेयजल लेकर आती है। हासरिया की तरह अन्य स्थानीय महिलाएं भी ऐसा ही करती हैं।
झुलसाने वाली गर्मी के बीच हासरिया मंदार नदी पर 1 घंटे का सफर तय करके साफ पानी लाने के लिए नदी के किनारे पर स्थित कुओं तक जाती हैं। 46 वर्षीय हासरिया आसपास की मिट्टी से अपनी बोतलों में पीने योग्य साफ पानी भरती हैं। मिट्टी प्राकृतिक फिल्टर का काम करती है।
हासरिया और उनकी साथी महिलाओं को प्रत्येक कैन के लिए मात्र 2.50 रुपए मिलते हैं। टीनाम्बुंग प्रांत में रहने वाले करीब 5,800 परिवारों के लिए यह काम काफी अहम है। आज गुरुवार, 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' है और इस साल इसका फोकस वैश्विक रूप से पीने योग्य जल के स्रोतों के लिए प्राकृतिक समाधान खोजना है।
टीनाम्बुंग के लिए यह एक चुनौती है, जहां कई वर्षों से लोग स्वच्छ पेयजल तक सीमित पहुंच की शिकायत कर रहे हैं। हासरिया ने कहा कि हमें पीने और खाना पकाने के लिए पानी लाने धारा प्रवाह के विपरीत दिशा में जाना पड़ता है। इंडोनेशिया में अन्य समुदाय भी ऐसी ही चुनौतियों से दो-चार हो रहे हैं। (भाषा)