पुरुषों से अधिक मेहनत करती हैं महिलाएं, काम का रहता है काफी अधिक बोझ

Webdunia
मंगलवार, 10 जनवरी 2023 (17:37 IST)
लंदन। दुनियाभर में ज्यादातर लोगों के लिए शारीरिक काम में हर दिन काफी समय और ऊर्जा लगती है। लेकिन यह कैसे निर्धारित होता है कि घर में पुरुष ज्यादा मेहनत कर रहे हैं या महिलाएं? अधिकतर शिकारी-संग्रहकर्ता समाजों में पुरुष शिकारी और महिलाएं संग्राहक होती हैं जिसमें लगता है कि पुरुष ज्यादा काम कर रहे हैं। महिलाओं पर काम का काफी अधिक बोझ रहता है।
 
लेकिन दूसरे समाजों में परिश्रम का विभाजन किस तरह होता है? शिकारी-संग्रहकर्ता व्यवस्था पुरापाषाण काल में जन्मी एक प्रकार की सामाजिक व्यवस्था थी जिसमें मनुष्य छोटे समूहों में घूमते हुए खाद्य सामग्री संग्रहीत करते थे। हमने चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में तिब्बती सीमांत क्षेत्र में खेती और पशुपालन करने वाले समूहों का अध्ययन किया। इसमें यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि वास्तव में कौन से कारक तय करते हैं कि किसी घर में कौन ज्यादा परिश्रम करता है और क्यों?
 
'करेंट बायलॉजी' में प्रकाशित हमारे अध्ययन के परिणाम विभिन्न तरह के समाज में काम के लिंग आधारित विभाजन पर रोशनी डालते हैं। दुनिया में अधिकतर वयस्क शादीशुदा हैं। विवाह एक अनुबंध है यानी दोनों पक्षों के मिलने से मोटे तौर पर समान खर्च और लाभ की उम्मीद की जाती है। लेकिन किसी घर में सौदेबाजी करने के असमान अधिकार संबंधों में असमानता ला सकते हैं। उदाहरण के लिए एक पक्ष द्वारा तलाक की धमकी देना।
 
घर छोड़ना : हमने इस अवधारणा का परीक्षण करने का फैसला किया कि विपरीत लिंगी विवाह के बाद अपने पति के परिवार के साथ रहने के लिए महिला को अपनी पैदायशी जगह छोड़नी पड़ती है और काम का बोझ अधिक हो जाता है। ऐसी शादियों में अपने नए घर से पहले ताल्लुक नहीं होना, नए घर में किसी के साथ अतीत साझा नहीं करना और अपने आसपास खून के संबंध वाले रिश्तेदारों का नहीं होना सौदेबाजी के लिहाज से नुकसानदेह हो सकता है।
 
दुनियाभर में विवाह का सबसे आम रूप वह है, जहां महिलाएं अपने पैतृक घर को छोड़कर 'डिस्परसर्स' (फैलाने वाली) होती हैं जबकि पुरुष अपने परिवार के साथ अपने पैतृक क्षेत्र में रहते हैं। इसे पितृसत्तात्मकता के रूप में जाना जाता है।
 
नियोलोकलिटी : जिसमें दोनों लोग विवाह के बाद अलग हो जाते हैं और युगल अपने-अपने परिवारों से दूर किसी नए स्थान पर रहते हैं। यह दुनिया के कई हिस्सों में एक और आम प्रथा है। मातृसत्तात्मकता, जहां महिलाएं जन्म से अपने ही परिवार में रहती हैं और पुरुष, पत्नी और उसके परिवार के साथ रहता है और ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। और एक है द्वैतवाद- जहां दोनों में से कोई घर नहीं छोड़ता है और पति-पत्नी अलग-अलग रहते हैं और ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है।
 
संयोग से विविधतापूर्ण तिब्बती सीमावर्ती क्षेत्रों में  ये चारों अलग-अलग फैलाव पैटर्न विभिन्न जातीय समूहों में पाए जा सकते हैं। हमारा अध्ययन 6 अलग-अलग जातीय संस्कृतियों वाले गांवों पर केंद्रित था। चीन में लान्झोऊ विश्वविद्यालय के हमारे सहयोगियों के साथ हमने शादी के बाद उनके फैलाव की स्थिति के बारे में 500 से अधिक लोगों के विवाह के बाद घर छोड़ने के पैटर्न का पता लगाने के लिए उनका साक्षात्कार किया और उनके काम के बोझ का आकलन करने के लिए उन्हें एक गतिविधि ट्रैकर (फिटबिट की तरह) पहनने के लिए आमंत्रित किया।
 
महिलाएं अधिक परिश्रम करती हैं : हमारा पहला निष्कर्ष यह था कि महिलाएं, पुरुषों से अधिक परिश्रम करती हैं और उनकी इस मेहनत का फल उनके परिवारों को मिलता है। यह जानकारी उनकी खुद की रिपोर्ट और उनके गतिविधि ट्रैकर दोनों से सामने आई।
 
महिलाएं रोजाना औसतन 12,000 से अधिक कदम चलीं, वहीं पुरुष केवल 9,000 से अधिक कदम चले। अत: पुरुषों ने भी मेहनत की, लेकिन महिलाओं की तुलना में कम। उन्होंने आराम करने या सामाजिक गतिविधियों में ज्यादा समय बिताया।
 
संभवत: महिलाएं औसतन शारीरिक रूप से पुरुषों से कमजोर होती हैं और इसलिए उनकी सौदेबाजी की क्षमता कम होने की यह आंशिक वजह हो सकती है। लेकिन हमें ऐसे लोग भी मिले (महिला या पुरुष) जो शादी के बाद घर छोड़कर जाते हैं और अपने परिवारों के साथ रहने वाले लोगों से अधिक काम का बोझ सहते हैं।
 
इसलिए अगर आप महिला हैं और शादी के समय अपने पैतृक घर से दूर चली जाती हैं (जैसा कि दुनियाभर में ज्यादातर महिलाएं करती हैं) तो आप न केवल अपने परिवार को खोने के मामले में बल्कि काम के बोझ के मामले में भी पीड़ित हैं। जब दोनों लोग अपने पैतृक परिवारों के साथ नहीं रहते हैं तो दोनों कड़ी मेहनत करते हैं (क्योंकि रिश्तेदारों से थोड़ी मदद मिलती है) लेकिन महिलाएं फिर भी कड़ी मेहनत करती हैं। हमारे अध्ययन के अनुसार काम के बोझ में पूर्ण लैंगिक समानता केवल उन उदाहरणों में होती है, जहां पुरुष अपना घर छोड़ते हैं, महिलाएं नहीं।
 
काम के बोझ में लैंगिक असमानता घर और बाहर दोनों जगह बनी रहती है। अब हमारे अध्ययन ने एक विकासवादी परिप्रेक्ष्य दिया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को काम का भारी बोझ क्यों उठाना पड़ता है? लेकिन चीजें धीरे-धीरे बदल रही हैं। महिलाएं अपने परिवार से और अपने पति के परिवार से अलग रह रही हैं और उनकी सौदेबाजी की क्षमता बढ़ रही है।
 
इसके साथ ही खुद के बूते अर्जित धन, शिक्षा और स्वायत्तता के बढ़ते स्तर से भी इस तरह की प्रवृत्ति को मजबूती मिली है। अंततोगत्वा ये बदलाव पुरुषों को कई शहरी, औद्योगिक या उत्तर-औद्योगिक समाजों में काम का अधिक बोझ लेने की ओर प्रवृत्त कर रहे हैं।(भाषा/ द कन्वरसेशन)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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