अमेरिका ने किया मोदी की 'भगवा क्रांति' का समर्थन

Webdunia
मंगलवार, 29 जुलाई 2014 (12:20 IST)
वाशिंगटन। गुजरात दंगों के बाद लगातार नरेन्द्र मोदी का बहिष्कार करने वाले अमेरिका ने अब एकदम यूटर्न ले लिया है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश में जुटा अमेरिका अब यह कहने में भी गुरेज नहीं कर रहा है कि वह मोदी की 'भगवा क्रांति' के साथ है।

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नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की मुलाकात से पहले भारत आ रहे अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने न सिर्फ मोदी सरकार की नीतियों का समर्थन किया है, बल्कि उनकी 'भगवा क्रांति' में साथ देने की घोषणा की है। हालांकि केरी का कहना है कि भगवा रंग ऊर्जा का रंग है और वे ये क्रांति अपारंपरिक ऊर्जा स्रोतों से लाएंगे।

अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने अपनी भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर कहा कि जो विकास की योजना भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी नारे 'सबका साथ, सबका विकास' में दिखाई पड़ती है, वह एक महान सोच है। केरी अपनी भारतीय समकक्ष सुषमा स्वराज के साथ पांचवी वार्षिक भारत-अमेरिका रणनीतिक वार्ता की सहअध्यक्षता करने के लिए नई दिल्ली पहुंचेंगे।

मोदी के समावेशी विकास वाले विकास एजेंडे की प्रशंसा करते हुए केरी ने भारत के संदर्भ में विदेश नीति पर दिए एक बड़े भाषण में कहा कि अमेरिका भारत की नई सरकार के इस प्रयास में उसके साथ साझेदारी करने के लिए तैयार है।

केरी ने अमेरिका के एक शीर्ष थिंक टैंक सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस द्वारा आयोजित समारोह में वाशिंगटन के श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की नई सरकार की योजना 'सबका साथ, सबका विकास' एक ऐसा सिद्धांत और एक ऐसी सोच है, जिसका हम समर्थन करना चाहते हैं। हमारा मानना है कि यह एक महान सोच है और हमारा निजी क्षेत्र भारत के आर्थिक सुधार में उत्प्रेरक का काम करने के लिए उत्सुक है।’

केरी ने कहा कि अमेरिकी कंपनियां उन प्रमुख क्षेत्रों में अग्रणी हैं, जिनमें भारत विकास करना चाहता है। ये क्षेत्र हैं उच्च स्तरीय निर्माण, अवसंरचना, स्वास्थ्य सेवा, सूचना तकनीक। ये सभी विकास के चरण आगे बढ़ाने के लिए जरूरी हैं, तो आप ज्यादा तेजी से ज्यादा लोगों को उपलब्ध करवा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत एक ज्यादा प्रतिस्पर्धी कार्यबल भी तैयार करना चाहता है और लगभग एक लाख भारतीय पहले ही हर साल अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिकी सामुदायिक कॉलेज असल में 21वीं सदी के कौशल प्रशिक्षण में एक महत्वपूर्ण मानक तय करते हैं।

उन्होंने कहा कि हमें अपने शैक्षणिक संबंधों को विस्तार देना चाहिए और दोनों देशों के युवा लोगों के लिए अवसरों को बढ़ाना चाहिए। मैं जानता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनाव अभियान के दौरान भारतीय युवाओं से उर्जा ली। उन्होंने बार-बार इस ओर इशारा किया कि भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है और इसके पास विश्व की सबसे युवा जनसंख्या है।

केरी ने कहा, 'प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि युवा लोगों में एक ज्योति की तरह जलने की प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है और उन्होंने उस प्रवृत्ति का पोषण करने के भारत के कर्तव्य के बारे में भी कहा है। हमारा मानना है कि यह कर्तव्य दोनों देशों का है।'

केरी ने आगे कहा, 'और इसका अर्थ तकनीकी शिक्षा, उच्च कौशल व्यापारों के लिए कौशल कार्यक्रमों में आदान प्रदान से है। यह खासतौर पर उन क्षेत्रों के बारे में हैं, जिनमें हम दोनों ही देशों की उद्यमी और अनवेषणात्मक भावना का इस्तेमाल कर सकते हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि हर कोई भारत के लोगों में मौजूद कामकाज के प्रति असाधारण मूल्यों, ऐसा कर सकने की क्षमता और इस अवसर को हासिल करने के बारे में जानता है।

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उन्होंने कहा, 'तो भारत और अमेरिका के बीच जिस संभावना का जिक्र मैंने अभी किया, वह प्रधानमंत्री मोदी के उस नजरिए में पूरी तरह फिट बैठती है, जिसका वर्णन उन्होंने अभियान के दौरान किया। मोदी के इस नजरिए का उनके देश के लोगों ने जबरदस्त ढंग से समर्थन किया। यह वही सोच है, जिसे हमें अब अंगीकार करने की जरूरत है। यही वजह है कि यह अवसर असल में बहुत फलदायी है।'

केरी ने कहा कि सहयोग का यह क्षेत्र रोमांचकारी है। मैं इन अवसरों को लेकर आश्वस्त हूं क्योंकि भारत और अमेरिका की तरह रचनात्मकता को महत्व देने वाले देश ही संभवत: हॉलीवुड और बॉलीवुड को शुरू कर सकते थे। उन्होंने कहा कि केवल वही देश सिलिकॉन वैली और बेंगलुरु को वैश्विक अन्वेषण केंद्र के रूप में स्थापित कर सकते थे, जो देश हमारी तरह उद्यमिता को महत्व देते हैं।

उन्होंने कहा कि अन्वेषण और उद्यमिता हम दोनों देशों के खून में है और ये हमें प्राकृतिक साझेदार तो बनाते ही हैं, साथ ही हमें ऐसे विश्व में प्राकृतिक लाभ भी देते हैं, जो अनुकूलन और लचीलेपन की मांग करता है। केरी ने कहा कि यदि भारत की सरकार निजी प्रयासों के लिए ज्यादा समर्थन देने की योजना को पूरा करती है, यदि यह पूंजी प्रवाह के लिए ज्यादा उन्मुक्तता पैदा करती है, स्पर्धा को कम करने वाली सब्सिडी को सीमित करती है और मजबूत बौद्धिक संपदा अधिकार देती है तो यकीन मानिए, और ज्यादा अमेरिकी कंपनियां भारत में आएंगीं। वे भारत आने के लिए आपस में स्पर्धा भी कर सकती हैं। एक स्पष्ट और महत्वाकांक्षी एजेंडे के साथ हम निश्चित तौर पर ऐसी स्थितियां लाने के लिए मदद कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हम दुनियाभर में अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए काम करते हैं, अब भारत को यह तय करना है कि वह वैश्विक व्यापार व्यवस्था में कहां खड़ा होता है। नियमों पर आधारित व्यापारिक व्यवस्था को समर्थन करने और अपने कर्तव्यों का निवर्हन करने के प्रति भारत की इच्छा अमेरिका और दुनिया के बाकी देशों से ज्यादा निवेश लाने में मददगार साबित होगी। (भाषा)

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