शांति भारत के डीएनए में है-नरेन्द्र मोदी

Webdunia
मंगलवार, 2 सितम्बर 2014 (18:37 IST)
टोक्यो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को यहां जापान सहित पूरी दुनिया को भरोसा दिलाते हुए कहा कि भगवान बुद्ध की धरती भारत में शांति और अहिंसा के लिए प्रतिबद्धता यहां के समाज के डीएनए में समाई है। ‘वसुधैव कुटुम्बेकम' की अवधारणा के उपासक जब हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं तो हम ऐसा कुछ करने के बारे में कैसे सोच सकते हैं, जिससे किसी का नुकसान हो अथवा किसी को ठेस पहुंचे। 
 
मोदी आज टोक्यो स्थित सैकरेड हार्ट महिला विश्वविद्यालय में एक विशेष व्याख्यान देने के बाद छात्रों के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। प्रधानमंत्री से यह सवाल पूछा गया था कि भारत एक गैर-परमाणु अप्रसार संधि वाले देश के रूप में अंतरराष्ट्रीय समुदाय का भरोसा कैसे बढ़ाएगा, प्रधानमंत्री ने भारत द्वारा परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत की कुछ चिंताओं के मद्देनजर सभी को भरोसा दिलाते हुए कहा कि शांति के लिए यह प्रतिबद्धता भारतीय समाज के डीएनए में है, किसी अंतरराष्ट्रीय संधि अथवा प्रक्रियाओं से इसका महत्व कहीं अधिक है। 
 
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत भगवान बुद्ध की धरती है, जिनका जीवन शांति के लिए समर्पित था। उन्होंने विश्व भर में शांति का संदेश दिया था। उन्होंने कहा कि भारत ने अहिंसा के माध्यम से अपनी आजादी प्राप्त‍ की थी। हजारों वर्षों से भारत ने ‘वसुधैव कुटुम्बककम- पूरा विश्व हमारा परिवार’ के सिद्धां‍त को माना है, जब हम पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं तो हम ऐसा कुछ करने के बारे में कैसे सोच सकते हैं, जिससे किसी का नुकसान हो अथवा किसी को ठेस पहुंचे।
 
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में प्रधानमंत्री ने भारत और जापान का आह्वान करते हुए कहा कि दोनों देशों को लोकतंत्र, विकास और शांति के साझा मूल्यों पर जोर देना चाहिए और यह प्रयास 'अंधेरे में एक चिराग जलाने के समान' होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक मेधावी व्यक्ति किसी कमरे में अंधेरे का मुकाबला झाड़ू, तलवार अथवा कंबल से नहीं करेगा, बल्कि एक छोटे दीये से करेगा। उन्होंने कहा कि यदि हम एक दीया जलाते हैं तो हमें अंधेरे से डरने की जरूरत नहीं होती।
 
पर्यावरण के मुद्दे पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रकृति से संवाद भारत की सदियों पुरानी परंपरा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लोग यह मानते हैं कि पूरा विश्व उनका परिवार है। बच्चे चांद को अपना मामा कहते हैं और नदियों को माता के रूप में पुकराते हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल मानव जाति ने अपनी आदतों को बदल लिया, जो प्रकृति के लिए शत्रुवत हो गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रकृति के साथ इस शत्रुता के कारण समस्याएं उत्पन्न हुईं। उन्होंने इस विषय पर अपनी लिखी एक पुस्तक- ‘कॉन्वेनिएंट एक्शन’ की चर्चा करते हुए छात्रों से कहा कि यदि उनकी रुचि हो तो वे इसे ऑनलाइन पढ़ें। 
 
प्रधानमंत्री ने छात्रों को आमंत्रित करते हुए कहा कि वे उनसे सोशल मी‍डिया पर भी प्रश्न पूछ सकते हैं और उन्हें उनका उत्तर देकर खुशी होगी। उन्होंने यह भी बताया कि वे और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे भी ऑनलाइन मित्र हैं।
 
इससे पहले यहां छात्राओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भारतीय परंपरा और संस्कृति में महिलाओं के प्रति सम्मान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में देवियों की अवधारणा है, जबकि इसके विपरीत विश्व के अधिकांश हिस्से ऐसे हैं, जहां सामान्यत: ईश्वर को केवल एक पिता के रूप में माना जाता है।
 
उन्होंने कहा कि यदि हमें विश्व भर के समाजों के बीच अंतर को समझना है, तो दो बातें महत्वपूर्ण हैं- उनकी शिक्षा प्रणाली और उनकी कला तथा संस्कृति, जो उनके विश्वविद्यालय में आने का कारण है। इस अवसर पर उन्होंने उन प्रयासों की भी चर्चा की जो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में बालिकाओं की शिक्षा के लिए किए थे। (वीएनआई)
 

 

-शोभना जैन

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