साइकिल से ऑफिस जाते हैं वैंकटरमन

Webdunia
गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009 (12:37 IST)
विश्व का लब्धप्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार अपने नाम कर देश को गौरवान्वित करने वाले भारतवंशी वैज्ञानिक वैंकटरमन रामकृष्णन घर से ऑफिस साइकिल पर जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वैंकी (दोस्त वैंकटरमन को इसी नाम से पुकारते हैं) वैज्ञानिक बनें। उनकी रुचि अपने बेटे को चिकित्सक बनाने में थी।

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रेडिफ डॉट कॉम को दिए खास साक्षात्कार में सीनियर वैंकटरमन के पिता सीवी रामकृष्णन से बताया कि करीब चालीस साल पहले उनका परिवार बड़ोदा (गुजरात) में रहता था। वे बताते हैं हाईस्कूल की परीक्षा पास करने पर वैंकी को नेशनल टैलेंट अवॉर्ड दिया गया। इससे उत्साहित होकर उन्होंने उनका दाखिला बड़ोदा के मेडिकल कॉलेज में करा दिया।

उन्होंने कहा वैंकी की माता राजलक्ष्मी और मैं दोनों चूँकि एक वैज्ञानिक थे, इसलिए चाहते थे कि वैंकटरमन भी चिकित्सा जगत में नाम कमाए, विज्ञान में नहीं। लेकिन वैंकी को मेडिकल की पढ़ाई रास नहीं आई।

वैंकी के पिता ने कहा जब वे और उनकी पत्नी बड़ोदा से बाहर थे, वैंकी ने अचानक बड़ोदा विश्वविद्यालय जाकर फिजिक्स के अंडरग्रेज्युएट कोर्स में नामांकन करा लिया।

कालांतर में वैंकी बड़ोदा से यूएस आ गए और यहाँ की ओहियो यूनिवर्सिटी से भौतिकशास्त्र में पीएचडी की। बाद में इसी में सेन डिएगो की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री भी ली। इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

गणित में होशियार थे वैंकी : उनके पिता ने बताया कि वैंकटरमन गणित में बहुत अच्छे थे। वे हर विषय की तह तक जाकर ही दम लेते थे। उन्होंने कहा कैंब्रिज की जिस एमआरसी लैबोरेटरी फॉर मॉलेक्यूलर बॉयोलॉजी ने उन्हें नोबल दिया। वे यहाँ कभी भ्रमण के लिए गए थे।

इसलिए मिला नोबल : सीनियर रामकृष्णन ने बताया वैंकी को राइबोसोम की संरचना और कार्यों पर अध्ययन के लिए नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। यह मानव शरीर में पाई जाने वाली कोशिका है, जो सिंथेसाइज प्रोटीन क े रू प मे ं मौजू द रहत ी है।

उन्होंने कहा राइबोसोम पर अध्ययन की शुरुआत वैंकी ने 1978 में की। उनके साथ येले यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक थॉमस ए. शीट्ज और इसराइल के विजमैन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस से एदा ए. योनाथ भी दोनों (नोबल पुरस्कार प्राप्त) थे।

विश्वास ही नहीं हुआ : उन्होंने कहा जब नोबल पुरस्कार समिति के सचिव ने लंदन में वैंकी को फोन कर नोबल पुरस्कार देने की बात कही तो उन्हें एकबारगी यकीन ही नहीं हुआ। वैंकी ने उनसे कहा- क्या आप मुझे मूर्ख बना रहे हैं।

उन्होंने कहा इसके पीछे भी दिलचस्प वजह थी। हुआ यह कि पहले कई मर्तबा वैंकी के मित्रों ने उन्हें नोबल पुरस्कार मिलने की झूठी खबरें देकर खूब चिढ़ाया था। इसके बाद खुद समिति के चेयरमैन ने वैंकी से बात कर पुरस्कार की पुष्टि की। उस वक्त भी उन्हें विश्वास नहीं हुआ।

25 मील साइकिल से जाते हैं : उनके पिता ने बताया कि वैंकी बहुत बड़े प्रकृतिप्रेमी हैं। उनके पास अपनी खुद की कार भी नहीं है। वे साइकिल से कार्यस्थल तक जाते हैं। वे हमेशा लो प्रोफाइल में रहना पसंद करते हैं। युवाओं की मदद के लिए वे हमेशा तैयार रहते हैं। चाहे फिर बात पढ़ाई के लिए सलाह की हो या और किसी मुद्दे की। ( फोटोः एमआरसी लैबोरेटरी फॉर मॉलेक्यूलर बॉयोलॉजी से साभार)

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