गोपाचल ग्वालियर गढ़ के शासक

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( मध्यप्रदेश जिला गजेटियर ग्वालियर, जिला गजेटियर विभाग, भोपाल प्रथम संस्करण 1968) सामान्य- ग्वालियर में किला है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण सूर्य सैन द्वारा किया गया था। यह कथानक है कि एक साधु ग्वालिय ने कुष्ठ रोग से ग्रसित राजा सूर्य सैन को इस रोग से मुक्ति दिलाई थी। इस अनुश्रुति की पुष्टि में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

उस साधु के आदेशानुसार सूरज सैन ने किले का निर्माण कराया, जिसका नाम साधु के नाम पर ग्वालियर रखा। उसने उस तालाब को भी बड़ा करवाया और अपने नाम पर उसका नाम सूरजकुंड रखा। तत्पश्चात उस साधु ने उसका नाम सुहनपाल रखा तथा आशीर्वाद दिया कि उसके बाद 84 वंशज राज्य करेंगे, जब तक उसके वंशज पाल युक्त नाम ग्रहण किए रहेंगे, तब तक वे राज्य करेंगे। तदनुसार उसके 83 वंशजों के पाल युक्त नाम ग्वालियर के राजाओं के रूप में अभिलिखित हैं।

इसके बाद तेजकर्ण नाम 84वें वंशज को अपने राज से हाथ धोना पड़ा, क्योंकि उसने यह नाम धारण नहीं किया था। ग्वालियर किले का इतिहास पुस्तक हिस्ट्री ऑफ फोर्टेस ग्वालियर के अनुसार इस किले पर विभिन्न राजवंशों का अधिकार रहा है-

पाल वंश- सूरज पाल (सूर्य सेन) ने 36 वर्ष राज्य किया। इसका वंश पाल वंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस पाल वंश का राज्य 989 वर्ष रहा।

परिहार वंश- पाल वंश के अंतिम राजा बुद्धपाल ने अपना नाम तेजकरण रखा। इसके भांजे (बहिन के लड़के) रामदेव ने धोखे से ग्वालियर राज्य हथिया लिया, तभी से प्ररिहार वंश प्रशासन चला, जो 102 वर्ष तक रहा।

प्रतिहार वंश- चतुर्भुज मंदिर के शिलालेख वि.सं. 932-33 से पता चलता है कि प्रतिहार राजा भोज ने इसे जीतकर कन्नौज राज्य में मिला लिया।

कच्छपघाट वंश- विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी से कच्छपघाट वंशी वज्रनामन नामक नरेश (वि.सं. 1007- 1037) ने ग्वालियर जीतकर अपने अधिकार में लिया।

प्रतिहार वंश का पुनः शासन- प्रतिहार वंश की दूसरी शाखा ने इस पर पुनः अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात यह किला सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश के हाथों में पहुँच गया। यह कुतुबुद्दीन का एक दास था।

तोमर वंश- वि.सं. 1455 में तोमर वंश का राज्य हुआ, जो वि.सं. 1593 तक रहा।

लोदी वंश- तोमर वंश के राजा मानसिंह ने सुल्तान सिकंदर लोदी की अधीनता स्वीकार कर ली। राजा मानसिंह के पश्चात उसका लड़का विक्रमजीत गद्दी पर बैठा। उसे दिल्ली दरबार बुलाया गया, परन्तु उसके न आने पर शाही दरबार के आजम हुमायूँ ने ग्वालियर पर हमला किया। विक्रमजीत को शमशाबाद का परगना दे दिया गया। आजम हुमायूँ को ग्वालियर का शासक नियुक्त किया गया। इस प्रकार ग्वालियर किले से तोमर वंश का 105 वर्ष का शासन समाप्त हुआ।

मुगल वंश- बाबर के सेनापति रहीम दादू खाँ ने सन्‌ 1557 में लोदी वंश के सूबेदार तातार खाँ को पराजित कर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। बाबर ने ही किले की जैन मूर्तियों को खंडित किया था।

शेरशाह सूरी- बाबर के पुत्र हुमायूँ के फारस पलायन के पश्चात शेरशाह सूरी ने ग्वालियर दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया।

अकबर- हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अकबर गद्दी पर बैठा। उसने ग्वालियर को अपने अधीन कर लिया। अकबर से लेकर उसके वंशज मोहम्मद शाह तक मुगल साम्राज्य रहा।

मराठों का अधिकार- मुगल शासन के पश्चात किले पर मराठों का अधिकार हो गया। परन्तु इस काल में किले के अधिकार के लिए झगड़े होते रहे। अंत में सरह्यूज रोज ने ग्वालियर पर धावा बोला और सन्‌ 1886 में किला जयाजीराव संधिया के सुपुर्द कर दिया। 30 जून सन्‌ 1886 में जयाजीराव का देहांत हो गया।

उसके बाद उनके पुत्र माधवराव गद्दी पर बैठे, परन्तु उस समय उनकी आयु 10 वर्ष की थी अतः ब्रिटिश सरकार ने एक कौंसिल की नियुक्ति की। 15 दिसंबर 1894 में माधवराव ने कार्यभार संभाला। इनकी मृत्यु के पश्चात जीवाजीराव राजगद्दी पर बैठे। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार और सिंधिया वंश ग्वालियर का शासन चलाते रहे।

मध्य भारत- 15 अगस्त 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ और जब रियासतों का विलीनीकरण हुआ तो ग्वालियर मध्यभारत में विलीन हो गया।

मध्यप्रदेश- भारत गणराज्य की स्थापना 26 जनवरी 1950 को हुई। उसके बाद प्रदेशों का पुनर्गठन कर सन्‌ 1956 में मध्यप्रदेश का निर्माण हुआ। ग्वालियर का विलीनीकरण होकर एक जिला बना।

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