ढाल

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ढाल

पहले गजवर दीठो, बीजे वृषभ पईठो।
त्रीजे केशरी सिंह, चोथे लक्ष्मी अविह ॥1॥

पांचमे फूलनी माला, छठ्ठे चंद्र विशाला।
रवि रातो ध्वज म्होटो, पूरण कलश नहीं छोटो ॥2॥

दशमे पद्म सरोवर, अगियारमे रत्नाकर।
भुवन विमान रत्नगंजी, अग्निशिखा धूमवर्जी ॥3॥

स्वप्न लई जइ रायने भाखे, राजा अर्थ प्रकाशे।
पुत्र तीर्थंकर त्रिभुवन नमशे, सकल मनोरथ फलशे ॥4॥

वस्तु छंद

अवधिनाणे अवधिनाणे,उपना जिनराज!
जगत जस परमाणुआ, विस्तर्या विश्वजंतु सुखकार,

मिथ्यात्व तारा निर्बला, धर्मउदय परभात सुंदर।
माता पण आणंदिया, जागति धर्म विधान,

जाणंती जगतिलक समो, होशे पुत्र प्रधान ॥

दोहा

शुभ लग्ने जिन जनमीया, नारकीमां सुख ज्योत।
सुख पाम्यां त्रिभुवन जना, हुओ जगत उद्योत ॥2॥

सांभळो कलश जिन, महोत्सवनो इहां,
छप्पन कुमरी दिशि, विदिशि आवे तिहां।
माय सुत नमीय, आणंद अधिको धरे,
अष्ट संवर्तवायुथी कचरो हरे ॥1॥

वृष्टि गंधोदके, अष्टकुमरी करे,
अष्टकलशा भरी, अष्ट दर्पण धरे।
अष्ट चामर धरे, अष्ट पंखा लही,
चार रक्षा करी, चार दीपक ग्रही ॥2॥

घर करी केळनां, माय सूत लावती,
करण शुचि कर्म जल, कलशे न्हवरावती।
कुसुम पूजी, अलंकार पहेरावती,
राखडी बाँधी जई, शयन पधरावती ॥3॥

नमीय कहे माय तुज, बाल लीलावती,
मेरु रवि चंद्र लगे, जीवजो जगपति।
स्वामी गुण गावती, निज घर जावती,
तेणे समे इंद्र-सिंहासन कंपती ॥4॥

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