॥ परमर्षि स्वस्ति मंगलपाठ॥

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नित्याप्रकंपाद्भुत-केवलौघाः स्फुरन्मनः पर्यय-शुद्धबोधाः।
दिव्यावधिज्ञान-बलप्रबोधाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।1।
( यहाँ से प्रत्येक श्लोक के अंत में पुष्पांजलि क्षेपण करना चाहिए।)

कोष्ठस्थ-धान्योपममेकबीजं संभिन्न-संश्रोतृ-पदानुसारि।
चतुर्विधं बुद्धिबलं दधानाः स्वस्ति-क्रियासुः परमर्षयोनः।2।

संस्पर्शनं संश्रवणं च दूरादास्वादन-घ्राण-विलोकनानि।
दिव्यान्‌ मतिज्ञान-बलाद्वहंतः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।3।

प्रज्ञा-प्रधानाः श्रमणाः समृद्धाः प्रत्येकबुद्धा दशसर्वपूर्वैः।
प्रवादिनोऽष्टांग-निमित्त-विज्ञाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।4।

जंघावलि-श्रेणि-फलांबु-तंतु-प्रसून-बीजांकुर-चारणाह्वाः।
नभोंगण-स्वैर-विहारिणश्च-स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।5।

अणिम्नि दक्षाः कुशला महिम्नि लघिम्नि शक्ताः कृतिनो गरिम्णि।
मनो-वपुर्वाग्बलिनश्च नित्यं, स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।6।

सकामरुपित्व-वशित्वमैश्यं प्राकाम्यमन्तर्द्धिमथाप्तिमाप्ताः।
तथाऽप्रतीघातगुणप्रधानाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।7।

दीप्तं च तप्तं च तथा महोग्रं घोरं तपो घोरपराक्रमस्थाः।
ब्रह्मापरं घोर-गुणाश्चरन्तः-स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।8।

आमर्ष-सर्वोषधयस्तथाशीर्विषंविषा दृष्टिविषंविषाश्च।
सखिल्ल-विड्जल्ल-मलौषधीशाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयोनः।9।

क्षीरं स्रवंतोऽत्र घृतं स्रवंतो मधु स्रवंतोऽप्यमृतं स्रवंतः।
अक्षीणसंवास-महानसाश्च स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः।10।

॥ इति परमर्षिस्वस्तिमंगलं-विधान ॥


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