Kshamavani Parv 2025: आध्यात्मिक वीरता का प्रतीक क्षमावाणी पर्व, जानें परंपरा, धार्मिक महत्व और उद्देश्य
जैन धर्म में क्षमावाणी पर्व क्यों मनाया जाता है
इस दिन, जैन अनुयायी एक-दूसरे से और सभी जीवित प्राणियों से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और उन्हें क्षमा करते हैं। यह दिन 'उत्तम क्षमा' कह कर समाप्त होता है, जिसका अर्थ है 'मेरे सभी बुरे कर्मों को क्षय हो तथा मैं सभी से क्षमायाचना करता हूं। यह आध्यात्मिक शुद्धि और मानसिक शांति का एक अनूठा अवसर है।
क्षमावाणी का उद्देश्य:
• आत्म-शुद्धि और आत्म-चिंतन: क्षमावाणी का मुख्य उद्देश्य अपनी गलतियों, अहंकार और द्वेष को पहचानना और उनसे मुक्ति पाना है। यह पर्व व्यक्ति को आत्म-शुद्धि का अवसर प्रदान करता है।
• कर्मों से मुक्ति: जैन धर्म के अनुसार, जब तक व्यक्ति के मन में किसी के प्रति द्वेष या बैर का भाव रहता है, तब तक उसके कर्मों का बंधन नहीं टूटता। क्षमा मांगने और क्षमा करने से व्यक्ति के कर्मों का भार हल्का होता है।
जैन धर्म की परंपरा:
• उत्तम क्षमा: इस दिन, जैन समुदाय के लोग एक-दूसरे से व्यक्तिगत रूप से मिलकर या फोन, मैसेज आदि के माध्यम से 'उत्तम क्षमा' कहते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है 'मेरे द्वारा जाने-अनजाने में किए गए सभी गलत कार्यों के लिए मैं आपसे क्षमा चाहता/चाहती हूं।"
• अहिंसा का पालन: यह पर्व अहिंसा के सिद्धांत को मजबूत करता है। क्षमा करना और क्षमा मांगना अहिंसा का ही एक रूप है, क्योंकि यह मन से हिंसा के भाव को समाप्त करता है।
• उपवास और पूजा: पर्युषण पर्व के अंतिम दिन, जैन धर्म के कई अनुयायी उपवास रखते हैं और भगवान महावीर की पूजा करते हैं, उनसे भी अपने पापों के लिए क्षमा मांगते हैं।
क्षमा का धार्मिक महत्व : जैन धर्म में क्षमा को एक महान गुण माना गया है। भगवान महावीर ने कहा था कि क्षमा वीर का आभूषण है। क्षमावाणी पर्व हमें सिखाता है कि क्षमा न केवल दूसरों को बल्कि स्वयं को भी शांति प्रदान करती है। यह हमें अहंकार से मुक्त करती है और जीवन में सरलता और नम्रता लाती है।
इस पर्व के माध्यम से जैन समुदाय के लोग आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में आगे बढ़ते हैं और अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाते हैं। यह पर्व हमें यह भी याद दिलाता है कि जीवन में कभी भी किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना चाहिए।
जैन धर्म का 'क्षमा वीरस्य भूषणम्' मात्र एक शब्दभर नहीं, बल्कि क्षमा वीरों का आभूषण है यह कहा जाता है, जिसका अर्थ जैन धर्म में क्षमा को कमजोरी नहीं, बल्कि 'आध्यात्मिक वीरता' का प्रतीक माना गया है।
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
ALSO READ: पर्युषण महापर्व 2025: जानें धार्मिक महत्व और जैन धर्म के 5 मूल सिद्धांत