अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक महावीर स्वामी...

राजश्री कासलीवाल
भगवान महावीर का महान संदेश - 'जियो और जीने दो' 
 

 
 
करीब ढाई हजार साल पुरानी बात है। ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को वर्धमान का जन्म हुआ। यही वर्धमान बाद में स्वामी महावीर बना। महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है।
 
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओत-प्रोत था। उन्होंने एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जाति-पांति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में ही भगवान महावीर ने जन्म लिया। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। पूरी दुनिया को उपदेश दिए।
 
उन्होंने दुनिया को पंचशील के सिद्धांत बताए। इसके अनुसार- सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और क्षमा हैं। उन्होंने अपने कुछ खास उपदेशों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाने की ‍कोशिश की। अपने अनेक प्रवचनों से दुनिया का सही मार्गदर्शन किया।
 
 
आगे पढ़ें पंचशील सिद्धांत 

 


 


सत्य
 
सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
 
 


 


अहिंसा
 
इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इंद्रिय वाले जीव) आदि की हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
 
 


 


अपरिग्रह
 
परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं कि जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह के माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
 

 


 


ब्रह्मचर्य
 
महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
 
 


 


क्षमा
 
क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूं। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूं। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूं।'
 
वे यह भी कहते हैं- 'मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियां प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियां की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियां विफल हों। मेरे वे सारे पाप मिथ्या हों।'
 
 

 


धर्म
 
धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं- 'जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।'
 
भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया।

 
Show comments

Astrology: कब मिलेगा भवन और वाहन सुख, जानें 5 खास बातें और 12 उपाय

अब कब लगने वाले हैं चंद्र और सूर्य ग्रहण, जानिये डेट एवं टाइम

Akshaya tritiya 2024: अक्षय तृतीया कब है, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में क्या होगा देश और दुनिया का भविष्य?

Jupiter Transit 2024 : वृषभ राशि में आएंगे देवगुरु बृहस्पति, जानें 12 राशियों पर क्या होगा प्रभाव

Akshaya tritiya 2024: अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय और शुभ मुहूर्त जानिए

Aaj Ka Rashifal: आज कैसा गुजरेगा आपका दिन, जानें 29 अप्रैल 2024 का दैनिक राशिफल

29 अप्रैल 2024 : आपका जन्मदिन

29 अप्रैल 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Forecast 29-05 May: मई माह की शुरुआ‍‍त में किसकी किस्मत का चमकेगा सितारा, जानें 12 राशियां