भगवान ऋषभदेव के निर्वाण दिवस पर किया जाता है मेरु त्रयोदशी व्रत, जानें महत्व और 10 खास बातें

WD Feature Desk
Adinath Bhagwan 
 
HIGHLIGHTS
 
• मेरु त्रयोदशी के दिन भगवान ऋषभदेव ने निर्वाण प्राप्त किया था। 
• यह पर्व पिंगल कुमार की याद में मनाया जाता है। 
• यह व्रत मोक्ष की प्राप्ति देने वाला माना गया है। 
 
Meru Trayodashi : वर्ष 2024 में मेरु त्रयोदशी व्रत 8 फरवरी 2024, गुरुवार को मनाया जा रहा है। जैन धर्म के अनुसार यह व्रत आत्मा की शांति तथा सांसारिक सुखों की प्राप्ति देने वाला माना गया है। मेरु त्रयोदशी व्रत जैन धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। जैन कैलेंडर के अनुसार तिथि एक-दिन आगे-पीछे हो सकती है।
 
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान ऋषभदेव, जिन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें माघ कृष्ण चतुर्दशी तिथि को कैलाश पर्वत क्षेत्र के अष्टापद में निर्वाण प्राप्त हुआ था। मेरु त्रयोदशी के दिन ही जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को निर्वाण प्राप्त हुआ था, जिस कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है, अत: इस दिन मेरु त्रयोदशी व्रत किया जाता है। 
 
जैन धर्म के अनुसार भगवान ऋषभदेव का जन्म कुलकरों की कुल परंपरा के 7वें कुलकर नाभिराज और उनकी पत्नी मरुदेवी के घर चैत्र मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी-नवमी तिथि को अयोध्या में हुआ था। तथा उन्होंने चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दीक्षा ग्रहण की और फाल्गुन कृष्ण अष्टमी के दिन उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। 
 
आइए जानते हैं जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और मेरु व्रत से संबंधित खास बातें- 
 
1. भगवान ऋषभदेव को आदिनाथ भगवान भी कहते हैं, इसमें आदि का मतलब ‘प्रथम’ से होता है और ऋषभदेव ही प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने धर्म जैन धर्म में तीर्थंकरों की रचना की थी।
 
2. भगवान ऋषभदेव के 2 पुत्र भरत और बाहुबली तथा 2 पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी थीं। 
 
3. भगवान ऋषभदेव के प्रतीक चिह्न- बैल, चैत्यवृक्ष- न्यग्रोध, यक्ष- गोवदनल, यक्षिणी- चक्रेश्वरी हैं।
 
4. जैन धर्म के अनुसार मेरु त्रयोदशी पर्व पिंगल कुमार, जिन्होंने पांच मेरु का संकल्प लिया और संकल्प के दौरान 20 नवाकारी के साथ 'ॐ ह्रीं श्रीं आदिनाथ पारंगत्या नमः' मंत्र का जाप किया था।
 
5. यदि कोई व्रतधारी पांच मेरू का संकल्प पूर्ण करें, तो वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, ऐसा भी माना जाता है। 
 
6. मेरु त्रयोदशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
 
7. मेरु त्रयोदशी की पूजन के लिए भगवान ऋषभदेव की मूर्ति से सामने चांदी से बने 5 मेरू रखे जाते हैं तथा इसमें बीचोंबीच एक बड़ा मेरु रखकर इसके चारों ओर छोटे-छोटे मेरु रखे जाते हैं और फिर बड़े मेरु (बीच में रखे) के चारों ओर छोटे-छोटे मेरु के सामने स्वास्तिक का चिह्न बनाकर प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का पूजन किया जाता है। इस दिन पूजा के दौरान मंत्र जाप करने शुभ माना गया है। 
 
8. मेरु त्रयोदशी पर निर्जल व्रत रखा जाता है। 
 
9. प्राचीन जैन ग्रंथों के अनुसार, पैदल यात्रा के समय भगवान आदिनाथ ने एक काल्पनिक गुफा का निर्माण करके यहां लंबे समय तक तपस्या करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया था।
 
10. यह व्रत उपवासकर्ता को 13 महीने या 13 वर्ष तक जारी रखना जरूरी होता है। तथा मठवासी को दान देने तथा कोई पुण्य कार्य करने के पश्चात ही व्रत खोलने की मान्यता है।
 
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संकलन और प्रस्तुति: राजश्री कासलीवाल

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