Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

श्रीकृष्ण के जन्म के समय घटी थी ये 10 घटनाएं

हमें फॉलो करें श्रीकृष्ण के जन्म के समय घटी थी ये 10 घटनाएं

अनिरुद्ध जोशी

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्‍ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 30 अगस्त 2020 सोमवार को उनका 5248वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा। आओ जानते हैं उनके जन्म के समय घटी 10 महत्वपूर्ण घटनाएं जिसे देवता लोग भी देख रहे थे।
 
 
1. 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में श्री कृष्ण विष्णु के 8वें अवतार थे। जब उनका जन्म हुआ तब भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में उन्होंने जन्म लिया। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में उनका जन्म हुआ था। ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था।
 
2. स्वयं भगवान विष्णु ने कारागार में प्रकट होकर देवकी और वसुदेव को दर्शन देकर उन्हें उनके पूर्वजन्म की तपस्या के बारे में बताया था और उसी के पुण्यफल हेतु पूर्वजन्म में ही उनके यहां तीन बार अवतार लेने का वचन भी दिया था। वचनानुसार विष्णुजी देवकी माता से कहते हैं कि पहले जन्म में वृष्णीगर्भ के नाम से आपका पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में जब आप देव माता अदिति थी तो मैं आपका पुत्र उपेंद्र था। मैं ही वामन बना और राजा बलि का उद्धार किया। अब इस तीसरे जन्म में मैं आपके पुत्र रूप में प्रकट होकर अपना वचन पूरा कर रहा हूं।
 
 
3. श्रीकृष्ण जन्म के समय भयंकर बारिश हो रही थी और यमुना नदी में तूफान था। कहते हैं कि ऐसी बारिश इसे पहले कभी नहीं हुई थी।
 
4. श्रीकृष्‍ण जन्म के समय श्री हरि विष्णु की आज्ञा से माता योगमाया प्रकट होकर देवकी और वसुदेवजी को उनके द्वरा श्री विष्णु के दर्शन और पूर्वजन्म की यादों को मिटा देती हैं। योगमाया के प्रभाव से ही उस वक्त शेषनाग बलराम के रूप में रोहिणी के गर्भ में चले जाते हैं। बलराम के जन्म के बाद श्रीकृष्ण का जन्म होता है। यह पता चलते ही कंस बालक का वध करने के लिए निकल जाता है। यह देख योगमाया अपनी माया से वसुदेव को जगाती है।

 
5. वसुदेव जागते हैं तो वह कहती हैं कि कंस के आने के पहले तुम इस बालक को लेकर गोकुल चले जाओ। वसुदेव बालक को प्रणाम करते हैं और फिर योगमाया से कहते हैं कि परंतु देवी माता मैं जाऊंगा कैसे? मेरे हाथ में तो बेड़ियां पड़ी हैं और चारों और कंस के पहरेदार भी खड़े हैं। तब देवी माता कहती हैं कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे। गोकुल जाकर तुम यशोदा के यहां इस बालक को रख आओ और वहां से अभी-अभी जन्मी बालिका को उठाकर यहां लेकर आ जाओ।
 
 
6. योगमाया के प्रभाव से पहरेदारों को नींद आ जाती है, वसुदेवजी की बेड़ियां खुल जाती हैं और फिर वे बालक को उठाकर कारागार से बाहर निकल जाते हैं। बाहर आंधी और बारिश हो रही होती है। चलते-चलते वे यमुना नदी के पास पहुंच जाते हैं। तट पर उन्हें एक सुपड़ा पड़ा नजर आता है जिसमें बालक रूप श्रीकृष्ण को रखकर पैदल ही नदी पार करने लगते हैं। तेज बारिश और नदी की धार के बीच वे गले गले तक नदी में डूब जाते हैं तभी शेषनाग बालकृष्ण के सहयोग के लिए प्रकट हो जाते हैं। 
 
7. माता यमुना भी प्रकट होकर बाल कृष्ण के चरण छुकर नीचे उतर जाती है और उनके लिए यमुना पार करने का मार्ग बना देती हैं। 
 
8. वसुदेवजी रात्रि के अंधकार में बालकृष्ण को लेकर यशोदा मैया के कक्ष में पहुंच जाते हैं। द्वार अपने आप ही खुल जाते हैं। गहरी नींद में सोई यशोदा मैया के पास वह बालकृष्ण को सुलाकर वहां सोई हुई बालिका को ले जाते हैं। पुन: कारागार में जाकर वे बालिका को गहरी नींद में सोई देवकी के पास सुला देते हैं। तब योगमाया प्रकट होकर उनकी बेढ़ियां फिर जस की तस कर देती हैं और कहती हैं कि हमारी माया से तुम्हें ये सब याद नहीं रहेगा। फिर वसुदेवजी भी सो जाते हैं। उधर योगामया के प्रभाव से ही यशोदा और उनके पति नंदराय यह समझते हैं कि यशोदा के यहां पुत्र का जन्म हुआ है।
 
 
9. बाद में कंस को पता चलता है कि देवकी ने फिर एक बच्चे को जन्म दिया है तो वह कारागार में उसका वध करने के लिए पहुंच जाता है। कारागार में पहुंचकर वह देवकी से पूछता है क्या ये लड़की है? देवकी कहती हैं हां भैया। तब वह कहता है झूठ। इस बार लड़की कैसे हुई? आकाशवाणी झूठ नहीं हो सकती। उसने आठवें पुत्र की बात कही थी। फिर लड़की कैसे आ गई? अवश्य लड़का हुआ होगा। कहां छिपा दिया है तुमने? तब वसुदेव कहते हैं कि जब मेरी आंख खुली तो मैंने इसी बालिका को देखा। मैं सत्यवादी हूं कभी झूठ नहीं बोलता।
 
 
10. यह सुनकर कंस कहता है, हां तो ये भी विष्णु की एक चाल है जिससे मेरी मति भ्रमित हो जाए। चाहे वह कुछ भी कर ले लेकिन मुझे मेरे लक्ष्य से हटा नहीं सकता। चाहे किसी भी रूप में आ जाए वह मेरे हाथों नहीं बच सकता। यह कहकर कंस बालिका को देवकी के हाथ से छुड़ाता है। वह कन्या को एकांत में ले जाकर एक भूमि पर पटककर मारने ही वाला रहता है कि कन्या उसके हाथ से छुटकर आकाश में उड़ जाती और आकाश में योगमाया प्रकट होकर अट्टाहास करने लगती है। यह देखकर कंस भयभीत हो जाता है। फिर योगमाया कहती है, रे मूर्ख मुझे मारने से तुझे कुछ नहीं होगा। तुझे मारने वाला तो कोई ओर है और वो इस धरती पर जन्म भी ले चुका है। वही तेरा संहार करेगा। हे मंद बुद्धि दुष्ट तू व्यर्थ बिचारी देवकी को कष्ट न दें और निर्दोष, दीन एवं असहायों की हत्या करना छोड़ दें। यह कहकर योगमाया अदृश्य हो जाती है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आ रही है जन्माष्टमी : जरूरी है यह पूजन सामग्री, पढ़ें सूची