वाल्मिकी और तुलसीदास से पहले हनुमान जी ने लिखी थी रामायण

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क्या आप जानते हैं सर्वप्रथम हनुमानजी ने भी लिखी थी रामायण  
 
 
- पीएस शर्मा 
 
 
हनुमान को शिवावतार अथवा रुद्रावतार भी माना जाता है। रुद्र आंधी-तूफान के अधिष्ठाता देवता भी हैं और देवराज इंद्र के साथी भी। विष्णु पुराण के अनुसार रुद्रों का उद्भव ब्रह्माजी की भृकुटी से हुआ था। हनुमानजी वायुदेव अथवा मारुति नामक रुद्र के पुत्र थे।
 
'हनुमान' शब्द का ह ब्रह्मा का, नु अर्चना का, मा लक्ष्मी का और न पराक्रम का द्योतक है।
 
हनुमान को सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त था। वे सेवक भी थे और राजदूत, नीतिज्ञ, विद्वान, रक्षक, वक्ता, गायक, नर्तक, बलवान और बुद्धिमान भी। शास्त्रीय संगीत के तीन आचार्यों में से एक हनुमान भी थे। अन्य दो थे शार्दूल और कहाल। 'संगीत पारिजात' हनुमानजी के संगीत-सिद्धांत पर आधारित है।
 
कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी शिला पर। यह रामकथा वाल्मीकि जी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और हनुमन्नाटक के नाम से प्रसिद्ध है।
 
हनुमान के जन्म-स्थान के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों का कहना है कि हनुमानजी का जन्म रांची जिले के गुमला परमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था।

कर्नाटकवासियों की धारणा है कि हनुमानजी कर्नाटक में पैदा हुए थे। पंपा और किष्किंधा के ध्वंसावशेष अब भी हाम्पी में देखे जा सकते हैं।

अपनी रामकथा में फादर कामिल बुल्के ने लिखा है कि कुछ लोगों के अनुसार हनुमानजी वानर-पंथ में पैदा हुए थे।
 
हनुमानजी का जन्म कैसे हुआ इस विषय में भी भिन्न मत हैं। एक मान्यता है कि एक बार जब मारुति ने अजंनी को वन में देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। उसने अंजनी से संयोग किया और वह गर्भवती हो गई। एक अन्य मान्यता है कि वायु ने अंजनी के शरीर में कान के माध्यम से प्रवेश किया और वह गर्भवती हो गई।
 
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एक अन्य कथा के अनुसार महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त जो हवि अपनी रानियों में बाँटी थी उसका एक भाग गरुड़ उठाकर ले गया और उसे उस स्थान पर गिरा दिया जहां अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थी। हवि खा लेने से अंजनी गर्भवती हो गई और कालांतर में उसने हनुमानजी को जन्म दिया।
 
तुलसी और वाल्मीकि द्वारा वर्णित हनुमान-चरित की तुलना में कई अन्य रामकथाओं में वर्णित चरित इतना भिन्न है कि सर्वथा मिथ्या और काल्पनिक प्रतीत होता है। 
 
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तांत्रिकगण हनुमान की पूजा एक शिर, पंचशिर और एकादश शिर, संकटमोचन, सर्व हितरत और ऋद्धि-सिद्धि के दाता के रूप में करते हैं। आनंद रामायण के अनुसार हनुमानजी की गिनती आठ अमरों में होती है। अन्य सात हैं, अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, नारद, परशुराम और मार्कण्डेय। 

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