यह है श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने की शास्त्रोक्त विधि और मंत्र

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ज्ञानियों में परम ज्ञानी, दुष्टों के लिए कठोर तथा भक्तों के लिए परम दयालु राम के प्रिय भक्त हनुमानजी, देवों के सेनापति मंगल के स्वामी हैं। मंगल को प्रसन्न करने के लिए मंगल के स्वामी रुद्रावतार श्री हनुमानजी की आराधना परम फलदायी है। कहा गया है कि जब स्वामी प्रसन्न हों तो सेवक स्वत: ही प्रसन्न हो जाता है अर्थात् श्री हनुमानजी को प्रसन्न करने से सर्वसुख प्राप्त हो जाता है। साधक निम्नलिखित विधि से मंत्रों का उच्चारण करते हुए ध्यान, पूजन एवं जपादि कम करें। ध्यान रहे- हनुमत् पूजन में लाल रंग प्रधान होता है जैसे लाल वस्त्र, लाल पुष्प, सिंदूर आदि। श्री हनुमानजी को सिंदूर अवश्य चढ़ाएं।


 
विनियोग
 
ॐ अस्य श्री हनुमत्कवचोस्तोत्र
मंत्रस्य श्री रामचन्द्र ऋषि:,
अनुष्टुपछन्द:, श्री महावीरो हनुमान
देवता, मरुतात्मज इति बीजम्,
ॐ अन्जनी सुनुरिति शाक्ति:,
ॐ ह्रैं ह्रां ह्रौं कवचम्
ॐ फट् स्वाहा कीलकम्,
लक्ष्‍मण प्राणदाता बीजम्,
सकलकार्य सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
मंत्र- ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रों ह्रूं ह्रैं ह्रं
 
करन्यास
अब निम्नलिखित विधि से करन्यास करें:-
 
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:।
-अपने अंगूठों को नमस्कार करें।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नम:।
-अपनी तर्जनी उंगलियों को नमस्कार करें।
ॐ ह्रं मध्यमाभ्यां नम:।
-मध्‍यमा उंगलियों को नमस्कार करें।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नम:।
-अनामिका उंगलियों को नमस्कार।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
-छोटी उंगलियों को नमस्कार।
ॐ ह्रं करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।
- हथेलियों के पृष्ठ भाग को परस्पर मिलाकर नमस्कार करें।
 
हृदयादिन्यास
 
ॐ अंजनीसूतवे हृदयाय नम:।
 
-हृदय स्पर्श करें।
 
-ॐ रूद्र मूर्तये शिरसे स्वाहा।
 
-दाएं हाथ की उंगलियों से सिर का स्पर्श करें।
 
ॐ वायुसुतात्मने शिखायै वषट्‍।
 
-शिखा (चोटी) को स्पर्श करें।
 
ॐ वज्रदेहाय कवचम् हुं।
 
-दोनों भुजाओं का स्पर्श करें।
 
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्‍।
 
-दोनों नेत्रों के बीच स्पर्श करें (तीसरे नेत्र को)
 
ॐ ब्रह्मास्त्र निवारणाय अस्त्राय फट् स्वाहा।
 
-ॐ ब्रह्मास्त्र को लौटा देने वाले कहकर उनका आवाहन करें।
 
रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि।
 
-हम श्री रामचन्द्रजी के विद्यामान होने का अनुभव करते हैं और वानरराज हनुमान का ध्यान करते हैं।
तन्नोहनुमान प्रचोदयात् ॐ हुं फट्‍।
 
-चारों ओर चुटकी बजाते हुए दिशाओं को कवच से रक्षित करें।

ध्‍यान 
 
हृदयादिन्यास करने के बाद निम्न मंत्र का पाठ करते हुए श्री हनुमानजी का ध्‍यान करें।
'वज्रांग पिंगकेशं कनक मलयसत्कुण्डलाकांतगंडं। नाना विद्याधिनार्थ करतल विधृतं पूर्ण कुंभं दृढ़ं च। भक्ता भीष्टाधिकारं विदधति त्रैलोक्य त्राणकारं सकल भुवगं रामदूतं नमामि।'
अर्थ- वज्र के समान शरीर, पीले सुनहरे बाल, स्वर्णमयकुण्डलों से शोभायमान, अनेक विद्याओं के ज्ञाता, भरे हुए जल-कलश को धारण करने वाले, तीनों लोकों की रक्षा करने वाले, सर्वव्यापक श्री रामदूत (हनुमानजी) को नमस्कार करता हूं।
 
उपरोक्त विधि से श्री हनुमानजी का ध्‍यान करें। पीड़ाहारी श्री हनुमान जी समस्त विघ्न बाधाओं का शमन करते हैं।
 
साधकजन प्रात:काल स्नानादि के पश्चात श्री हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक, बजरंग वाण आदि का पाठ अवश्य करें। यह क्रिया प्रतिदिन संपन्न करें तो अति उत्तम है।
 
हनुमानजी के मंदिर पर जाकर पूजा-पाठ करके हनुमान चालीसा बांटें।
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