कविता : चन्दा मामा

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- गिरीशदत्त शर्मा
 
चन्दा मामा अच्छे मामा
दूर-दूर क्यों रहते हो।
मेरी अम्मा रोज बुलाती
क्यों रूठे-रूठे रहते हो।।
 

 
गोल-गोल सा चेहरा है
और ठंडी-ठंडी चांदनी
नन्ही-नन्ही बांह पसारे
गोद तुम्हारी मांगती।।
 
देखो, मैंने कितनी सारी,
चॉकलेट भर रखी है
तुम आ जाओ जरा धरा पर
सबको मिलकर खानी है।।
 
आओगे जब आसमान से
खूब कहानी सुनाएंगे
खेलकूद कर और मचलकर
सरपट दौड़ लगाएंगे।।
 
साभार- देवपुत्र 
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