फनी कविता : काले रंग के कुत्ते राम‌

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
घर के बाहर रोज भौंकते,
काले रंग के कुत्तेराम।

रोज सुबह हाजिर हो जाते,
दरवाजे पर पूंछ हिलाते,
बासी खाते बड़े शौक से,
काले रंग के कुत्तेराम।

कई मित्र मिलने आ जाते,
हाय-हलो करके गुर्राते,
पर अपनी ही बात धौंकते,
काले रंग के कुत्तेराम।

चौराहे पर मीटिंग करते,
एक-दूजे से चीटिंग करते,
दिनभर गप्पे व्यर्थ ठोकते,
काले रंग के कुत्तेराम।

कहीं-कहीं रोटी मिल जाती,
कभी-कहीं बोटी मिल जाती,
जब तक दम है खूब नोंचते,
काले रंग के कुत्तेराम।

किंतु रात जब हो जाती है,
सारी दुनिया सो जाती है,
उठ-उठ करके बहुत चौंकते,
काले रंग के कुत्तेराम।
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